कलयुग में ईश्वर की वन्दना

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हे प्रभु आनन्दमय हमको यही उपहार दो,
सिर्फ मैं जीवित रहूँ, तुम और सबको मार दो।
भक्त हूँ मैं अपका अर्जी प्रभु सुन लीजिए,
और जितनी अर्जियाँॅ हो फाड उनको दीजिए।
सी डी लगाकर मैं प्रभु भजन आपके कर रहा,
ब्रत भी हूँ आजकल केवल फलों से पेट भर रहा।
पुष्प, चन्दन, भोग-मेवा आप सब ले लीजिए,
सौ-पाँच सौ के नोट जितने हो मुझे ही दीजिए।
और हमारा कौन है सब कुछ हमारे आप हैं,
आप हमारे बाप क्या बाप के भी माई-बाप हैं।
मुझे अगले जन्म में बेटा बनाना सेठ का,
या प्रभु नेता बनाना मुझे भारत देश का।
भक्त बनकर रक्त जनता का सदा पीता रहूँ,
दो मुझे आशीष डेढ़-दो सौ वर्ष जीता रहूँ।
ब्लैक रिश्वत आदि से जेब को भरता रहूँ,
नोट लेकर, बोट लेकर, चोट भी करता रहूँ।
एक झण्डा, चार गुण्डा, आठ मोटर कार दो,
हे प्रभु आनन्दमय हमको यही उपहार दो।
दोस्त ऐसे हों जो कि बुदधिमानी छोड दें,
आँख जो मुझसे मिलाये वो उसी को फोड दें।
देश सारा मेरे हिसाब से चलता रहे,
मुझे ‘हउआ’ जानकर संसार सब डरता रहे।
लिस्ट लम्बी है जरा मैं अभी फैक्स करता हूँ,
साथ में दो किलों देशी घी मिठाई रखता हूँ।
इस समय जरा जल्दी है और प्यास मुझे सता रही,
असल में टी वी पर एक नयी फिल्म आ रही।
कोक पीकर ब्रेक में फिर आउँगा ये वचन है,
आखिर ये मेरी फ्यूचर लाइफ का प्रश्न है।
इस भक्त की अर्जी पर प्रभु प्राथमिकता से विचार हो,
हे प्रभु आनन्दमय हमको यही उपहार दो,
हे प्रभु आनन्दमय हमको यही उपहार दो।

3 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

bade hee nirbhay hokar bhagvan jee se farmaaish kee hai .par ......apane teerthankar jee to prasad ,bhog grahan karenge nahee .........
pad ker khoob hansee aatee rahee ....badhai

SACCHAI ने कहा…

"bahut bahut badhai ho aapko aapki is shandar rachana { vyang } ke liye .bahut hi badhiya "


----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Suresh Gupta ने कहा…

बचपन में हमने भी यह कविता बचपन में पढ़ा है।
मूल रूप से यह कुछ इस तरह है।
हे प्रभु आनंदमय बस यह मुझे उपहार दो।
सिर्फ मैं जीवित रहूं और सब को मार दो।।
पुष्प चंदन और तुलसी आप सबसे लीजिए।
₹100 के नोट जितने हो मुझे दे दीजिए।।
मांगने आए कोई जो तो उसे फटकार दो।
हे प्रभु आनंदमय बस यह मुझे उपहार दो।।
हे प्रभु अगले जन्म में बेटा बनाना लाट का।
अगर मैं खटमल बनू तो सेठ जी के खाट का।।
आठ गुंडा, चार झंडा दस बीस मोटर कार दो।
हे प्रभु आनंदमय बस यह मुझे उपहार दो।
और भी लंबी कविता है मगर मुझे अच्छी तरह
याद नहीं है। अगर यह बात सही है तो कृपया कमेंट
करके बताएं

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