कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना अखरता है.
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है.
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.
जब तक सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम.
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
-हरिवंश राय बच्चन

आज की नारी कहा गई साड़ी

आज की नारी कहा गई साड़ी
छोर शर्म और पी रही पानी
कहते थे अबला जिसको हम
आज जाने कहा से आगया हें इसमे दम
आज की नारी ........................
पहनती हें मर्दों जेसे कपड़े
रोड पर करती हे झगडे
करती हे मन मानी
कहलाती हे कलयुग की रानी
आज की नारी ..............................
केसा आजकल का पहनावा हे
लड़को को ख़ुद देती बढावा हे
लड़के देखकर मरते हे सेटी
आखो मैं अ़ब नही शर्म का पानी
आज की नारी ...........

भारत प्यारा देश हमारा

भारत प्यारा देश हमारा
सब देशों में सबसे न्यारा
हम सबका बस एक ही नारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
भारत प्यारा... ..........

रहे सलामत गणतंत्र हमारा
बजे हमेशा लोकतंत्र का नगारा
कितना सुंदर कितना प्यारा
इससे से तो हर दुश्मन हारा
भारत प्यारा... ..........

ये बेचारा देश हमारा
नेताऒ के बोझ का मारा
इसे चाहिए युवाओं का सहारा
नेता मिले भगत, सुभाष सा प्यारा
भारत प्यारा... ..........

मिलजुलकर सब एक हो यारा
बस यही हो संकल्प हमारा
भारत माँ का बनो दुलारा
सबने
मिलकर यही पुकारा
भारत प्यारा... ..........

अब तो फांसी देदो जनाब

हां मैंने ही बरसाई मौत चुप्पी तोड़ बोला कसाब क़बूल कर लिया अपना गुनाह अब तो फांसी देदो जनाब बहुत खेल लिया मौत का खेल अब नहीं रहना मुझको जेल ऊपर जाकर देना है खुदा को अपने कर्मो का हिसाब अब तो फांसी देदो जनाब अब मुझसे सहन नहीं होती ये रोज रोज की रिमांड बार बार इस पूछताछ से हो गया है दिमाग ख़राब अब तो फांसी देदो जनाब जो कुछ था सब बता दिया है अब क्या है मेरे पास बहुत हो गई मुकदमा बाजी बंद करो ये मेरी किताब अब तो फांसी देदो जनाब क़बूल कर लिया अपना गुनाह अब तो फांसी देदो जनाब

ऐ जिंदगी

तुम बिन
जी रहे हैं जिंदगी
कि साँसों में तुम हो ......
जब आँखें बंद करते हैं
तो ख़्वाबों में तुम हो ..........
जब बोलते हैं
तो बातों में तुम हो ......
लिखते हैं कुछ तो
हर लफ्ज़ में तुम हो .......
धड़कता हैं दिल
तो हर धड़कन में तुम हो ........
जी रहे हैं अभी तक
क्यों कि जान तुम हो.....
( शशि ,जयपुर )

मेरा दिल कब से भटक रहा है


अधि शूली पर लटक रहा है
मेरा दिल कब से भटक रहा है
पवन समां से जल न जाये
गिर्द ह्रदय से मटक रहा है
वजूद मेरा भी फनी है क्या
सवाल बर्षो से खटक रहा है
और ये दुनिया अजीब जगह है
पर दिल क्यों इसको झटक रहा है
- रश्मि सरावगी (काठमांडू)

मौत का खेल .. (६ अगस्त १९४५ नागासाकी)

सहसा हुआ एक धमाका....
सोते से वे सब जगे,
उगता आग का गोला देखा..
पर कुछ पलो के लिए.
अचानक गर्मी बढ़ी.
झुलश गए सब चेहरे..
वे चिल्लाये
पर कुछ पलो के लिए..
"लिटिल बॉय" ने कर दिखाया कमाल,
६ अगस्त कि रात को बना दिया शमसान..
लाखो कि चिता जली,
गल गए हड्डी मांस,
कुछ पलो के बाद हो गया सब समाप्त,
बचा सिर्फ एक निशान...
हैवान सिर्फ हैवान....
पल में लाख कॉल के गाल समाये
पर इन अतातइयो को दया नहीं आई.
९ अगस्त कि रात को किया फिर कमाल...
लाख फिर घबराए,चीखे और चिल्लाये,
पर कुछ पलो के लिए,
फिर वे भी बन गए मौत के ग्रास..
हो गयी चारो तरफ शांति...
क्यूकि,
शोर के लिए चाहिए जान....
जो तब हो चुकी थी समाप्त
जो तब हो चुकी थी समाप्त।!!
- ममता अग्रवाल

दिल चाहता है ..................

दिल चाहता है आज फिर छोटी बच्ची बन जाऊं,
रोज़ सुबह छुट्टी के बहाने बनाऊ
और असेम्बली में आँखें खोल कर प्रयेर गाऊं....

वोह चुपके चुपके क्लास में टिफिन खोलू
और पकड़े जाने पर पेट -दर्द का झूठ बोलूं ...

दिन भर स्कूल में मस्ती मारूं
और बस में जूनियर्स पर रॉब झाडूं .....

वो हर दिन होमवर्क अधुरा रह जाए
और अगले दिन मेरी कॉपी घर पर रह जाए .....

हर रोज़ दोस्तों से रूठ जाऊं
और ज़िन्दगी भर साथ वाला तुम जैसा
एक साथी बनाऊ ......!!!!!!!
- शशि (शेडो ऑफ़ द मून) जयपुर

न जाने चाँद पूनम का...



न जाने चाँद पूनम का, ये क्या जादू चलाता है
कि पागल हो रही लहरें, समुंदर कसमसाता है


हमारी हर कहानी में, तुम्हारा नाम आता है
ये सबको कैसे समझाएँ कि तुमसे कैसा नाता है


ज़रा सी परवरिश भी चाहिए, हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है


ये मेरे और ग़म के बीच में क़िस्सा है बरसों से 
मै उसको आज़माता हूँ, वो मुझको आज़माता है


जिसे चींटी से लेकर चाँद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर, सबक़ मुझको पढ़ाता है


नहीं है बेईमानी गर ये बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर, जाने कहाँ पानी गिराता है


पता अनजान के किरदार का भी पल में चलता है
कि लहजा गुफ्तगू का भेद सारे खोल जाता है


न जाने चाँद पूनम का...........

- राहुल सिंह

जीने के लिए भी वक़्त नही...

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वक़्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िंदगी के लिए ही वक़्त नही.

माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ केहने का वक़्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हे दफ़नाने का भी वक़्त नही.

सारे नाम मोबाईल में हैं
पर दोस्ती के लिए वक़्त नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनो के लिए ही वक़्त नही.

आँखों मे है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नही.
दिल है गमो से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नही.

पैसों की दौड़ मे ऐसे दौड़े,
की आराम का भी वक़्त नही.
पराए एहसासों की क्या क़द्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नही.

तू ही बता ए ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी का क्या होगा,
की हर पल मरनेवालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नही...
-राहुल सिंह

अपनी खुशियां कम लिखना


अपनी खुशियां कम लिखना।
औरों के भी गम लिखना।

हंसते अधरों के पीछे,
कितनी आंखें नम लिखना।

किसका अब विश्वास करें,
झूठी हुई कसम लिखना।

महलों में तो मौजें हैं,
कुटियों के मातम लिखना।

तंत्र-मंत्र में डूबे सब,
लोकतंत्र बेदम लिखना।

नेताओं के पेट बड़े,
सब कुछ करें हजम लिखना।

मतलब हो तो गैरों की,
भरते लोग चिलम लिखना।

अब तक पूज्य बने थे जो,
वे भी हुए अधम लिखना।

भर दे सबके घावों को,
अब ऐसा मरहम लिखना।
- राहुल सिंह

फिर नज़र से ............


फिर नज़र से पिला दिजीये!
होश मेरे उडा दिजीये...

छोडीये दुश्मनी की रज़िश
अब जरा मुस्कुरा दिजीये..

बात अफसाना बन जायेगी
इस कदर मत हवा दिजीये..

आइए खुल के मिलीए गले
सब तखल्लुक हटा दिजीये..

कब से मुस्ताके दिदार हूं
अब तो जलवा दिखा दिजीये॥

-जगजीत सिंह की 'आयना' से

दोस्त ... जिसे ढूंढ रही थी ...

इस वीरान अँधेरी दुनिया में
अपनी इन पलकों को झपका कर
एक ऐसे साथी को ढूंढ रही थी
जो दिल की हर बात समझ सके
उससे में अपनी हर बात कह सकू
उस पर इतना विश्वास कर सकू
उसको अपना बना सकू
जिसे में जानती नही पहचानती नही
उस स्वप्न की काल्पनिकता को
पलके झपका कर ढूंढ रही हूँ
जब मै उसकी आँखों की तरफ़ देखू
कुआ सा प्यारा लगे वो
बाँट सकू उससे अपने जीवन का हर पहलु

उस दोस्त को जिससे मै कभी मिली भी नही अभी
हर वायदा पूरा करने को हर दूरी मिटा दू
उस ज़िन्दगी में जो इसके रूप में चेतन हो गई है
हर दूरी से दूर जो एक दोस्त मेरा बैठा है
अब वो यहाँ है
मै भी यहाँ हूँ
इस अजनबी दुनिया का करने को आलिंगन
अब ये दुनिया लगती है मुझे सतरंगी
जिसमे है मेरा वो दोस्त अजनबी
हाँ वो तुम्ही हो तुम्ही हो तुम्ही हो
- ममता अग्रवाल

एक मंत्र बस भारत होता


तेरा मेरा कुछ होता, अब कुछ कितना अच्छा होता।
ये सब होता अपना सबका, कोई फिकर न कोई चिंता
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।

मेरी बोली तेरी भाषा, मेरा प्रान्त तुम्हारा क्षेत्र
मेरा वेश तुमहारी भूषा, मेरा धर्म तुम्हारी जाती
कोई कहता मेरा तेरा, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।

एक झण्डे के तले खड़े हो, एक राष्ट्र के प्रेम पगे हो
अपनी अपनी बान भुलाकर, आन पर जान लिये चले हो
एक साथ को अपने खुशियाँ, फ़िर कोई दुखी ना होता
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।

समीर में ज्यों गंध घुली हो, नीर क्षीर मिल मित्रता घनी हो
पानी की चंदन से प्रीति, संस्कृतियों की आस मिली हो
अरब दीप मिल बनते भानु, मिलजुल कर सब करना होता
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।

आनंद भर के देखिये

जिन्दगी के सफर में आनंद भर के देखिये
सर्जना में कल्पना के छंद भरके देखिये
खिल जाएँगे फिर रेत में संभावना के कमल
अपनी लगन की आप थोंडी गंध भर के देखिए
सारे दुश्मन आपके फिर दोस्त ही बन जाएँगे
प्यार का व्यवहार में मरकंद भर के देखिए
नफरतें इतनी मिलेंगी देश के इतिहास की
आप भूल से ही जयचंद बनके देखिए
सिर्फ घाटे ही मिलेंगे आजकल संबंध में
नए चलन में आप भी अनुबंध बनके देखिए
बहती नदिया कह रही है, जोहड़ों के कान में
आप प्रभु और भक्त का संबंध बनके देखिए।
खुद समंदर आप है, निर्बंध बनके देखिए
बेटा बेटी उम्रभर इज्जत करेगें आपकी
श्रम के आनंद में गुलकंद भरके देखिये

तुम्हारा साथ मिल जाए .................

तुम्हारा साथ मिल जाए तो सब दुःख भूल जाऊँगा ......
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....

न्योछावर खवाब करदूंगा तुम्हारे हर इशारे पर ....
कभी पीपल की छावं में कभी नदिया किनारे पर .....
मुझे तुमसे मोहब्बत है मैं लोगों को बताऊंगा ....
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....

मेरी ठंडी सी तन्हाई सुलगती रात जैसी हो .....
मुझे बस साथ ले जाओ भले बरात जैसी हो .....
तुम्हे सुर्ख जोड़े में मैं दुल्हन बना कर लाऊंगा ...
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....

मैं चहुँगा तुम्हें जाना ...उमंगो से उजालो तक
खुदी के चाह से लेकर हमारे सात जन्मों तक
मुझे तुमसे मोहब्बत है में लोगों को बताऊंगा .....
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....

सच का सामना


जीवन की हर सच्चाई से 
खबरदार हो जाइये 
क्योकि शुरू हो गया है 
स्टार पर सच का सामना 

एक भोला सा बुद्धुराम 
फस गया उनके जाल में 
केबीसी जैसा शो होगा 
उसने सोचा १५ की बजाये 
२१ सवाल ही तो पूछेगें

झटपट उत्तर दे दूगां 
हाँ / ना ही तो कहना है 
करोड़पति बन गए तो ठीक
नही तो राजीव से ही मिल लेगें

बहुत कर चुका ये काम काज 
अब तो टीवी पर दिखना है
यही सोचकर जा पंहुचा वो 
करने 'सच का सामना

  पर ये क्या हो गया 
पहला ही प्रश्न पूछ लिया 
तुम्हारी दो पत्निया है 
उसका दिमाग घूम गया 
ज़माने से छुपाकर रखा जिसे 
अब सब सामने गया 
सच का सामना करने के लिए 
हाँ कहना ही पड़ गया 
और कोई चारा भी नही था 
मन में बार बार ख्याल रहा था 
मैं ये कहाँ गया 
कार्यक्रम देखने वाले तो मज़े ले रहे है 
और मैं यहाँ झूठ और सच में फंसा हुआ हूँ 
एक करोड़ के लालच में 
सबके सामने नंगा खड़ा हूँ 
पैसे तो नही कम पाउँगा 
पर रिश्तो से जाऊंगा 
जो जमा किए थे रिश्ते नाते 
हाँ / ना मैं मिट जायेंगे 

  लाइ डिटेक्टर के फंदे में 
फंस गया बुद्धुराम 
एक सवाल के ही उत्तर में
याद गए राम 
छोड़ के सब कुछ बोल पड़ा 
नही करना मुझे सच का सामना 
बहुत हो गया बहुत हो गया 
मुझे माफ़ करना 
रिश्ते बाकी रहे तो 
फ़िर कभी करेगें "सच का सामना"

आया सावन झूम के

धरती बोली अम्बर से
क्या करेगा मुझे चूम के
कुछ मेघ ही बर्षा दे
आया सावन झूम के

सावन में सब सुंदर सुंदर
झांक न मेरे मनके अन्दर
घुमड़ घुमड़ आजा अब तो
आया सावन झूम के

अब तो मानसून भी आया
प्यासी है ये मेरी काया
काया की ये प्यास बुझा दे
आया सावन झूम के

थक गए तेरी बात निहारत
इंतज़ार अब नही होता है
रस पावन सा टपका दे
आया सावन झूम के

ये कैसे तेरी लीला है
कहीं गीला कहीं सुखा है
अब तो नीर तो बरसा दे
आया सावन झूम के ......

संपूर्ण दुष्ट्ता संपन्न भीड़तंत्रात्मक नंगा राज

हमारे प्राथमिक स्कूल के शिक्षक ने ही बता दिया था कि हम एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश के निवासी हैं। हमारा शासन हैं, हम ही चलाते है और हमारे लिए ही चलाया जाता है। शिक्षक जब ऐसा कहते थे तो आंखों में सपने ऐसे तैरते थे जैसे फूल पर आई सरसों के खेत पर हवा तैरती है। खुशबू समेटते हुए कोसों दूर तक बसंती राग सुनाती हुई। चलो हम बड़े होंगे, हमारी सरकार होगी, हमारी संस्कृति से चलेगी, हमारे सांस्कृतिक वैभव को और ऊंचाइयां मिलेगी, हम ''राम अभी तक हैं नर में, नारी में अभी तक सीता है को और मस्ती से गुनगनाएंगे। हमारे देश को शक, मुगल, हूण और अंग्रेजों ने जो दंश दिए हैं, उनसे उबर लेंगे। सब ठीक हो जाएगा।
यह विश्वास इसलिए और जमता चला गया कि जिस मंच पर देखो यही सुनते-सुनते हम बड़े हो गए कि ''कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। आज जब सुनने की बजाय देखने की बारी आई है तो जिधर, जिस मंच पर देखो यही, दिखाई दे रहा कि ''कुछ ऐसा करो कि मिट ही जाए हस्ती हमारी। विवाह पूर्व साथ-साथ रहो, समलैंगिकता पर गंभीरता से विचार करो, पबों में नंगी नाचने वालियों के अधिकारों की रक्षा करो, रियलिटी शो के नाम पर यह भी पूछ लो कि क्या आपकी इच्छा कभी किसी गैर के साथ सोने की होती है। यह सब पूरी चिंता के साथ करो। इसमेंं कहीं कोई लापरवाही हो गई तो फिर हम अपनी हस्ती नहीं मिटा पाएंगे।
पूरे देश में इन दिनों 'संपूर्ण दुष्टïता संपन्न भीड़तंत्रात्मक नंगा राज स्थापित होता दिखाई दे रहा है। सत्ता के भूखे, पैसे के भूखे, शरीर के भूखे भेडिय़ों के हाथों समूची व्यवस्था चेरी होती दिखाई दे रही है। इन भेडिय़ों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है और जाहिर है लोकतंत्र बनाम भीड़तंत्र में इस बढ़ती संख्या का मतलब क्या होता है। ताजा उदाहरण है कि आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमले को लेकर भारत सरकार को हरकत में आने में भले ही समय लगा हो, लेकिन समलैंगिकता के समर्थन में एक प्रदर्शन ने सरकार से सहानुभूतिपूर्वक विचार का बयान जारी करवा दिया। सरकार के भीतर इस प्रवृति से किसकी सहानुभूति क्यों है, यह गंभीर विषय है।
इसी कड़ी में मध्यप्रदेश का शहडोल जिला जुड़ गया है, जहां सामाजिक संवेदना के सामने 'होम करते हाथ जलेÓ जैसी स्थिति पैदा कर दी गई है। कथित कौमार्य परीक्षण को लेकर हंगामा सड़क से संसद तक हो रहा है। वैसे तो सरकार की तरफ से स्पष्टï किया जा चुका है कि ऐसा कोई परीक्षण नहीं हुआ है। फिर भी हंगामा मचाने वाले तो मचाएंगे ही। पहले भोपाल में इस बात की जमकर शिकायतें हुईं कि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत सरकारी पैसा लूटने के लिए कई शादीशुदा जोड़े फिर से शादी कर रहे हैं। जांच करने में शिकायत सहीं पाई गईं। तब सरकार ने निर्णय लिया कि इस मामले में सावधानी बरती जाए कि अपात्र लोग इसका दुरूपयोग न कर सकें। ऐसा बताया गया है कि शहडोल जिले में हाल ही में इस योजना के तहत 152 कन्याओं के विवाह की योजना बनी । इस विवाह से पूर्व कुछ डाक्टरों ने पूर्व सावधानी के तौर पर लड़कियों से पूछताछ की तो 14 युवतियों ने गर्भ होना स्वीकार किया और जांच में पाया भी गया। अब इसका क्या कारण होना चाहिए, या तो युवतियां शादीशुदा है या फिर वे शादी से पूर्व शारीरिक संबंधों की समर्थक हैं। अब ऐसे में उन लोगों को जो शहडोल प्रकरण पर हायतौबा कर रहे हैं पहले यह तय कर लेना चाहिए कि वे शादीशुदा की पुन: सरकारी खर्च से शादी कराना चाहते हैं या फिर विवाह पूर्व यौन संबंधों के वकील बनना चाहते हैं।
दलीलें कोई कुछ भी दे सकता है लेकिन विरोध करने वालों में यदि तनिक भी नैतिकता है तो वे अपने आप से पूछें कि इन दोनों में से एक भी परिस्थिति अपनी बहिन बेटी के साथ स्वीकार करेंगे क्या? मर जाएंगे, जमीन में धंस जाएंगे, जब कभी स्वयं के बारे में ऐसी कल्पना भी कर लेंगे। दूसरों के लिए कहना बहुत आसान है लेकिन क्या कोई चाहेगा कि उसका बेटा और बेटी समलैंगिक शादी करके घर में घुस आंए। छाती फट जाएगी, आसमान टूट पड़ेगा, उस घर के ऊपर।
अकेले में बात करो तो इस अपसंस्कृति पर चिंता करने वालों की कमी नहीं मिलेगी। लेकिन फिर भी आज कथित समाज सेवी संस्थाओं और मानवाधिकार वादियों के हाथों में जिनके समर्थन की तख्तियां दिखाई देंगी, वे होंगी, आतंक से जूझ रही सेना के विरोध में, जेल में सजा काट रहे अपराधियों के समर्थन में, पबों में नाचने वाली लड़कियों की अस्मिता (?) बचाने के लिए, यौन शिक्षा के समर्थन में। न तो कभी ये लोग कश्मीरी शरणार्थियों की बात करेंगे। इन्हें बर्फीली पहाडिय़ों पर लडऩे वाले सैनिक का दर्द कभी दिखाई नहीं देता। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जो स्पष्टï करते हैं कि हमारे देश में कुछ पेशेवर हैं, कुछ गद्दार हैं, जिनका अपना एक सशक्त नैटवर्क है। यह नेटवर्क बड़ी चालाकी से हमारे सामाजिक तानेबाने में और सत्ता के गलियारों में विध्वंस की चिंगारियां छोड़ आता है, फिर दूर से तमाशा देखता है, ठहाके लगाता है। देखो देखो ये हिंदुस्तानी खुद की मर्यादाओं, संस्कृति और पुरा वैभव को कैसे धू-धू कर जला रहे हैं। दोषी कौन है? यह तलाश अब पूरी होनी चाहिए।
-लोकेन्द्र पाराशर, संपादक - दैनिक स्वदेश

!! बिना पुस्तक का विमोचन !!

किताब नहीं थी पर उसका विमोचन होना था। अगर आप सोच रहे हैं, ऐसा कैसे हो सकता है, तो साहब, हिंदी और हिंदुस्तान में

कुछ भी हो सकता है। आखिर हिंदी राष्ट्रभाषा ऐसे ही तो नहीं है। जो राष्ट्र में हो सकता है, वह राष्ट्रभाषा में भी हो सकता है। अब देखिए न, हमारे देश में रोज़ विकास हो रहा है, पर प्रगति नहीं हो रही। जब बिना प्रगति के विकास हो सकता है, तो बिना पुस्तक के विमोचन क्यों नहीं हो सकता?

तो, विमोचन का कार्यक्रम था, पर पुस्तक कोई नहीं थी। चर्चा करने के लिए मंच पर दस विद्वान विराजमान थे। कोई भी असहज महसूस नहीं कर रहा था। असहज महसूस करने का कोई नैतिक कारण भी नहीं था। बहुत-से हिंदी के विद्वान सर्वज्ञानी होते हैं। वे पुस्तक को बिना पढ़े भी उस पर चर्चा कर सकते हैं। हर विमोचन में करीब आधे विद्वान ऐसे होते हैं जिन्होंने वह पुस्तक नहीं पढ़ी होती। फिर भी वे बड़े अधिकार से अपना वक्तव्य देते हैं। इसलिए, यहां कोई समस्या ही नहीं थी। कोई पुस्तक ही नहीं थी कि बोलने के लिए पढ़नी पड़े।

विद्वान गंभीर मुद्रा में मंच पर बैठे थे। हिंदी विद्वानों की यह खास विशेषता है। विषय कैसा भी हो, उनकी मुद्रा हमेशा गंभीर होती है। उनकी गंभीरता की तुलना सिर्फ देश के नेताओं की गंभीरता से की जा सकती है। जिस तरह नेता देश के प्रति गंभीर रहते हैं, उसी तरह हिंदी के विद्वान भी हिंदी के प्रति गंभीर रहते हैं।

तो, दस विद्वान चर्चा करने के लिए मंच पर बैठे थे। दो वक्ता दूसरे शहर से आए थे। वैसे, वे आए किसी और काम से थे, पर विमोचन की खबर मिली, तो यहां भी आ गए। जैसे नेता कभी कुर्सी नहीं छोड़ता, वैसे ही वक्ता कभी बोलने का मौका नहीं छोड़ता। दूसरे शहर के वक्ताओं के आने से विमोचन का स्तर उठ गया। अब वह स्थानीय नहीं रहा, अखिल भारतीय हो गया।

अगर आपने दो-चार विमोचन देख लिए हैं, तो आप पहले से जान सकते हैं कि कौन सा वक्ता क्या बोलेगा। जैसे कि जो कमिटेड किस्म का वक्ता होता है, उसे इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि किताब कैसी है? वह सिर्फ सरोकार से मतलब रखता है। किताब नीरस हो, पठनीय न हो, एकदम बचकानी हो, लेखक को भाषा-शिल्प की जानकारी न हो, पर सरोकार सही हो तो उसके लिए किताब अच्छी है।

कुछ वक्ता राजनीति के गलियारे से आते हैं। वे हमेशा आगे बढ़ने की बात करते हैं। चाहे किताब का विमोचन हो या पार्टी की सभा, वे हर जगह सबको आगे बढ़ाते रहते हैं - 'हमें आगे बढ़ना है, देश को आगे ले जाना है'। पुस्तक को बिना पढ़े भी वे जानते हैं कि यह पुस्तक देश को आगे ले जाएगी। वैसे, देश को आगे ले जाना कोई मुश्किल काम नहीं है। नेता तो यह काम रोज ही करते हैं।

कुछ वक्ता हर दो वाक्य के बाद बात दोहराते हैं कि शाम को उन्हें वापस जाना है -'मैं आप सबका बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे इस मंच से बोलने का अवसर दिया, पर मैं ज्यादा देर तक रुक नहीं सकता, क्योंकि शाम को मुझे वापस जाना है। लेखक ने बड़ी सुंदर पुस्तक लिखी है, पर मैं अभी इसे पढ़ नहीं पाया हूं, क्योंकि शाम को मुझे वापस जाना है। मैं ज्यादा देर बोल नहीं पाऊंगा, क्योंकि शाम को मुझे वापस जाना है।' और वे सचमुच ज्यादा देर नहीं बोलते। सिर्फ पचास मिनट बोलते हैं। जो आदमी आधे घंटे से कम बोलता है, हिंदी में उसे अज्ञानी समझा जाता है।

एक विमोचन में एक ऐसे विद्वान आए जिन्होंने गीता पढ़ रखी थी। वे कोई और किताब पढ़ना जरूरी नहीं समझते थे। जिस पुस्तक की चर्चा होनी थी, उसे भी नहीं। गीता में भी उन्हें एक श्लोक सबसे ज्यादा पसंद था- 'कर्मण्येवाधिकारस्ते...।' बिना पुस्तक के विमोचन पर यह श्लोक बिल्कुल फि़ट बैठता है। श्लोक लेखक से कहता है- 'हे लेखक, विमोचन कर्म है, वह करो। पुस्तक फल है, उसकी इच्छा मत करो।' वैसे, हिंदी की पुस्तक वह फल है जिसकी इच्छा लेखक के सिवाय कोई नहीं करता!

बायें हाथ कर खेल



अब तक ऐसा माना जाता था कि बचपन से हम जिस हाथ से काम करना प्रारंभ करते हैं, उसी हाथ से काम करने की आदत हमें पड़ जाती है। दुनिया में उल्टे हाथ वाले किन्तु सीधी बुद्धि वाले मात्र तेरह प्रतिशत लोगों की एकरुपता को प्रदर्शित करने के लिए तेरह अगस्त को विश्व लेफ्ट हैंडर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
आज तक कोई भी व्यक्ति यह नहीं जान पाया कि दुनिया में कुल कितने लोग बाएं हाथ से लिखते और कार्य करते है पर कुछ समय पूर्व हुए सवेü के नतीजों से ज्ञात हुआ कि विश्व की कूल जनसँख्या में से तेरह प्रतिशत लोग लेफ्ट हैंडर हैं। इसीलिए अगस्त माह की तेरह तारिख को लेफ्ट हैडर्स डे के रूप में मनाया जाने लगा है।
पूरी दुनिया में बाहें हाथ का खेल निराला है। एक विचित्र संयोग यह भी है कि तेरह अगस्त कुल मिलाकर चार और आठ का घोलमेल है। चार- आठ और तेरह के अंक को अधिकाशतज् अशुभ माना जाता है- कारण पता नहीं।

कोई पूछे कौन हूँ मैं तो ...........

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .

जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .

जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .

यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.. ..............

समलेंगिकता पर भोजपुरी गीत

इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई
नर नर संगे, मादा मादा संगे जाई .
हाई कोर्ट देले बाटे अइसन एगो फैसला
गे लो के मन बढल लेस्बियन के हौसला
भइया संगे मूंछ वाली भउजी घरे आई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...

खतम भइल धारा अब तीन सौ सतहत्तर
घूमतारे छूटा अब समलैंगिक सभत्तर
रीना अब बनि जइहें लीना के लुगाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...

पछिमे से मिलल बाटे अइसन इंसपिरेशन
अच्छे भइल बढी ना अब ओतना पोपुलेशन
बोअत रहीं बिया बाकि फूल ना फुलाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...

जानवर से यौनाचार के नियम इक दिन टूटी
आदमी से जानवर के रिस्ता ओह दिन जुटी
फेर जे बिआई , ऊहे देश के चलाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...

यमराज का इस्तीफा

एक दिन यमदेव ने दे दिया अपना इस्तीफा। 
मच गया हाहाकार बिगड़ गया सब संतुलन, 
करने के लिए स्थिति का आकलन, 
इन्द्र देव ने देवताओं की आपात सभा बुलाई 
और फिर यमराज को कॉल लगाई। 

डायल किया तो 
कृपया नम्बरजाँच लें की आवाज आई 
नये ऑफ़र में नम्बर बदलने की आदत से 
इन्द्रदेव को गुस्सा आई 
पर मामले की नाजुकता को देखकर, 
मन की बात उन्होने मन में ही दबाई। 
किसी तरह यमराज के नए नंबर की जुगाड़ लगाई , 
फिर से फोन लगाया गया तो '
झलक दिखलाजा झलक दिखलाजा ' की 
कॉलर टयून दी सुनाई 

सुन-सुन कर ये धुन सब बोर हो गये 
ऐसा लगा शायद यमराज जी सो गये। 
तहकीकात करने पर पता लगा, 
यमदेव पृथ्वीलोक में रोमिंग पर हैं, 
शायद इसलिए नहीं दे रहे हैं हमारी कॉल पे ध्यान, 
क्योंकि बिल भरने में निकल जाती है उनकी भी जान। 

जब यमराज हुये इन्द्र के दरबार में पेश, 
तब पूछा-यम क्या है ये इस्तीफे का केस? 
यमराज जी ने अपना मुँह खोला और बोले- 
हे इंद्रदेव। 
'मल्टीप्लैक्स' में जब भी जाता हूँ, 
'भैंसे' की पार्किंग न होने की वजह से 
बिन फिल्म देखे, ही लौट के आता हूँ। 
'मैकडोन्लड' वाले तो देखते ही इज्जत उतार देते हैं 
और ढ़ाबे में जाकर खाने-की सलाह दे देते हैं। 
मौत के काम पर जब पृथ्वीलोक जाता हूँ 
'भैंसे' पर देखकर पृथ्वीवासी भी हँसते हैं 
और कार न होने के ताने कसते हैं। 

भैंसे पर बैठे-बैठे झटके बड़े रहे हैं 
वायुमार्ग में भी अब ट्रैफिक बढ़ रहे हैं। 

रफ्तार की इस दुनिया मैं, भैंसे से कैसे काम चलाऊ 
आप कुछ समझ रहे हो या कुछ और बात बताऊ 

अब तो पृथ्वीवासी भी कार दिखा कर चिडाते है 
चकमा देकर मुझेसे आगे निकल जाते है 
हे इन्द्रदेव। मेरे इस दु:ख को समझो और 
चार पहिए की जगह चार पैरों वाला दिया है 
कह कर अब मुझे न बहलाओ, 
और जल्दी से 'मर्सिडीज़' मुझे दिलाओ। 

वरना मेरा इस्तीफा अपने साथ ले जाओ। 
और मौत का ये काम अब किसी और से कराओ

अगर कोई लुटारे आप से जबरदस्ती आप के ATM से पैसा निकलने को मजबूर करे तो ?

यार आज कल के ज़माने मे लुटारे भी समझदार हो गए है , आप भले ही खली हाथ हो , पर साले आप की जेब से झाकते ATM CARD को देखते ही आप को लुटने का प्लान बना लेते है , अब आप के पास कोई OPTION तो है नही , चुप चाप चलो , ATM BOOTH पर , मशीन मे कार्ड डालो , अब ............... रुको यही तो समझ दरी दिखानी है , आप को अपना कोड उल्टा डालना है , मतलब यदि आप का कोड है 12345 तो आप कोड डालोगे 54321 इससे आत्म मशीन आप को पैसा तो दे ही देगी साथ मे पुलिस को भी तुंरत आप के लुटे जाने की ख़बर कर देगी , ये आप्शन सभी ATM MACHINO मे लगा है , पर जानकारी का आभाव हमे पंगु बना देता है

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बॉलीवुड की पुकार "मैं झुकेगा नहीं साला"

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