ह्रदय योग कर दे ,हमें मीत कर दे
चलो कोई ऐसा ,लिखें गीत, गायें।
सूखी पडी है, नहर नेह रस की
पतित पावनी गीत गंगा बहायें ॥
दृग्वृत पे मन के दिवाकर जी डूबे
उचटते हुए प्रीत बंधन हैं ऊबे ।
कुसुम चाव के ,घाव खाए पड़े हैं
गीत संजीवनी कोई इनको सुनाएँ ॥
ह्रदय योग कर दे ......
चकाचोंध चारों तरफ़ ,फ़िर भी कोई
तिमिर के घटाटोप पे आँख रोई ।
कहींपर निबलता कहीं भूख बिखरी
इन्हे ज्योति के गीत देकर जगाएं ॥
ह्रदय योग कर दे ......
घटाओं को तृप्ति बरस कर ही मिलती
हमीं पड़ गए संचयों में अधिकतम ।
इसी से हुए प्राण बेसुध विकल कृष
गीत अमृत इन्हें आज जी भर पिलायें ॥
ह्रदय योग कर दे ........