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गीत

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ह्रदय योग कर दे ,हमें मीत कर दे
चलो कोई ऐसा ,लिखें गीत, गायें।
सूखी पडी है, नहर नेह रस की
पतित पावनी गीत गंगा बहायें

दृग्वृत पे मन के दिवाकर जी डूबे
उचटते हुए प्रीत बंधन हैं ऊबे
कुसुम चाव के ,घाव खाए पड़े हैं
गीत संजीवनी कोई इनको सुनाएँ
ह्रदय योग कर दे ......

चकाचोंध चारों तरफ़ ,फ़िर भी कोई
तिमिर के घटाटोप पे आँख रोई
कहींपर निबलता कहीं भूख बिखरी
इन्हे ज्योति के गीत देकर जगाएं
ह्रदय योग कर दे ......

घटाओं को तृप्ति बरस कर ही मिलती
हमीं पड़ गए संचयों में अधिकतम
इसी से हुए प्राण बेसुध विकल कृष
गीत अमृत इन्हें आज जी भर पिलायें
ह्रदय योग कर दे ........

उम्मीदों की नौकाएं


नागफनी आंखों में लेकर, सोना हो पाता है क्या
जज्बातों में उलझ के कोई, चैन कहीं पाता है क्या

सावन के झूले पर उठते ,मीत मिलन के गीत कई
सबकी किस्मत में मिलनेका ,अवसर आपाता है क्या

बीज मोहब्बत के रोपे ,फ़िर छोड़ गए रुसवाई में
दर्द को किसने कैसे भोगा ,कोई समझ पाता है क्या

धूप का टुकडा हुआ चांदनी, खुशबू से लबरेज़ हुआ
चाँद देख कर दूर देश में ,याद कोई आता है क्या

मन के तूफां पर सवार हैं ,,,उम्मीदों की नौकाएं
बनती मिटती लहरें पल-पल, गर्दूं गिन पाता है क्या

क्या पाया

आत्म वंचना करके किसने क्या पाया
कुंठा और संत्रास लिए मन कुह्साया

इतना पीसा नमक झील खारी कर डाली
जल राशिः में खड़ा पियासा वनमाली
नहीं सहेजे सुमन न मधु का पान किया
सर से ऊपर चढ़ी धूप तो अकुलाया

सूर्या रश्मियाँ अवहेलित कर ,निशा क्रयित की
अप्राकृतिक आस्वादों पर रूपायित की
अपने ही हाथों से अपना दिवा विदा कर
निज सत्यों को नित्य निरंतर झुठलाया

पागल की गल सुन कर गलते अहंकार को
पीठ दिखाई ,मृदुता शुचिता संस्कार को
प्रपंचताओं के नागों से शृंगार किया
अविवेकी अतिरेकों को अधिमान्य बनाया

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