अबके छुप - छुप कर देखती है
वोह दौर था बचपन का
यह दौर है जवानी का
मन उसका सुमन
तन सुकोमल चहेरा माहताब
कभी अपने हाथ से अपनी
ऊंगलियों को छूती है
तो कभी आईने में देख खुद को;
खुद से ही शर्माती है
अब तो शाम का रंग बिरंगी आसमान भी
उसे लुभाने लगा है
रात को आसमान के तारे गिनती है वो
जिसे तोड़ लाने की बात कही है
किसी ने
देख चाँद को;
चौकती है वोह
मुस्कराती है और छुपा लेती है
अपने आपको रात के आगोश में वो
रात को नींद में तकिये को
आगोश में ले लेती है,
और फिर
अचानक आधी रात को
नींद खुलते ही
देख तकिए को मूस्कुराती है
फिर इक सुखद नींद में सो जाती है
इक लड़की को हो गया है प्यार !!!!