ख़ामोशी को सुनकर देखो, इसकी भी जुबान होती है
लम्हा लम्हा तनहा-सी, जाने कब कहाँ होती है
ख़ामोशी के आँगन में, तन्हैयाँ जवान होती है,
तन्हाइयों के साए में, सारी खुशियाँ फंना होती है,
ख़ामोशी लगती सपने सी, आती है और जाती है,
पीर रहती है जब तक ये, अपने आप से मिलाती है,
ख़ामोशी में डूब के देखो, अपने आप से मिल पाओगे,
भीड़ से जुदा होकर, हर हक्कीकत को झुट्लाओगे,
ख़ामोशी को सुनकर देखो,इसकी भी जुबान होती है,
लम्हा लम्हा तनहा सी जाने कब कहाँ होती है,...........
- अंजली शर्मा