ख़ामोशी को सुनकर देखो, इसकी भी जुबान होती है
लम्हा लम्हा तनहा-सी, जाने कब कहाँ होती है
ख़ामोशी के आँगन में, तन्हैयाँ जवान होती है,
तन्हाइयों के साए में, सारी खुशियाँ फंना होती है,
ख़ामोशी लगती सपने सी, आती है और जाती है,
पीर रहती है जब तक ये, अपने आप से मिलाती है,
ख़ामोशी में डूब के देखो, अपने आप से मिल पाओगे,
भीड़ से जुदा होकर, हर हक्कीकत को झुट्लाओगे,
ख़ामोशी को सुनकर देखो,इसकी भी जुबान होती है,
लम्हा लम्हा तनहा सी जाने कब कहाँ होती है,...........
- अंजली शर्मा
4 टिप्पणियां:
उम्दा रचना । बधाई
khamoshi par khubsurat najm...badhiya laga..dhanywaad..
सुन्दर भाव हैं इस रचना के. नियमित लिखिये.
खामोशी मे डूब कर देखो------ बहुत सही कहा आदमी खुद के पास तभी आता है जब खामोश रहता है ,तन्हाई मे रहता है
अच्छा लगता है
कभी दिल का दिल से बतियाना
खुद का खुद के पास लौट आना
सुन्दर कविता शुभकामनायें
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