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एक नाज़ुक सी लड़की


एक
नाज़ुक सी लड़की 
नर्म सा एक दिल था 
शर्म उसका सिंगार था 
कर्म मैं ही जीवन था 
धर्म मैं मिलता सकून था 

एक नाज़ुक सी लड़की 
आँखों मैं सपने थे 
आशाओं के गुल्दास्ते थे 
सब को खुश रखने के अरमान थे 
आस्मां को चुहने के इज़हार थे 
 
एक नाज़ुक सी लड़की 
सच का रास्ता ही अपना था 
हर इंसान रब का ही तो रूप था 
मुश्किलों से डरना नही था 
काली घटा मैं भी दीखता सूरज था 

एक नाज़ुक सी लड़की 
जालिमों को नही दिखा उसका प्यार 
बेदर्दी से करदिया वजूद को पार 
दिल मैं थी बोहोत सारी झंकार 
लेकिन ज़िन्दगी ने दिया उसे मार 
  
एक नाज़ुक सी लड़की 
अब कहाँ है उसकी मंजिल 
वो तो होगा ही बे महफ़िल
बस एक ही बात बोले ज़ख़्मी दिल 
ओह मेरे रब--नूर मुझसे मिल.......

आज कल

आज कल आँखें कम सोती हैं
बहुत ज़्यादा रोती हैं

आज कल मनन उदास है
बहुत ज़्यादा रोग के पास है

आज कल दिल कम धड़कता है
बहुत ज़्यादा रुकता है

आज कल तुम्हारी याद आती है
बहुत ज़्यादा सताती है

आज कल कुछ नही समझ आता है
बहुत ज़्यादा भूल भुलाया होजाता है

न जाने ये कैसी बीमारी होती जा रही है
अहिस्ता अहिस्ता हमारी जान लेती जारही है....

-पिंकी वालिया
तुर्की

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