एक लड़की थी दीवानी सी

एक लड़की थी दीवानी सी

मोबाइल लेकर चलती थी

नजरें झुका के

कुछ शरमा के



मोबाइल में जाने क्या देखा करती थी

कुछ करना था शायद उसको

पर जाने किस से डरती थी

जब भी मिलती थी मुझसे

येही पूछा करती थी




यह चालू कैसे होता है,
यह चालू कैसे होता है


और मैं सिर्फ़ येही कहता था
ये मोबाइल नही टीवी का रिमोट है

" तेरी मुस्कान ....! "

" तेरी मुस्कान .....,
छीन ली नींद मेरी, तेरी इस मुस्कान ने ,
इरादों को तेरे, मै समज न सका ,

तुझको पाकर भी, पा न सका ,

आज भी मै ,तुझको भुल न सका ,

तेरी मुस्कान ने ...........

दिल मेरा जलाकर ,किसी की डोली में बैठ गई ,

दफ़न करके मेरे प्यार को ,

मुस्कान का तेरी ,कफ़न पहेनाया .........,

तेरी मुस्कान ने ......

जहाँ दफ़न किया प्यार को तुने ,

उस मजार पर आज भी ढूंढ़ता हु ,

तेरी प्यार भरी मुस्कान को ,
तु बेवफा थी , तेरी मुस्कान तो नही ,

तेरी मुस्कान ने .......,

शादी का जोड़ा किसी के नाम पहेनकर,

हमारे प्यार को क्यों "कफ़न" पहेना दिया,

तेरी मुस्कान को पाने हम आज भी ,

हमारे प्यार की मजार पर , सर अपना पटक रहे है "

---- eksacchai " टूटा ताजमहेल "


मैं आंसुओं में हे ठीक हूँ


न मिला करो सर-ऐ-आम मुझे
मैं तनहा तनहा ही ठीक हूँ
मुझे चाहतों से डर लगता है
मैं नफरतों में ही ठीक हूँ
मुझे रास्तों में छोड़ दो
मुझे जुस्तजू-ऐ-मंजिल की नही
न दिखाओ मुझको रास्ता
मैं भटका हुआ ही ठीक हूँ
मेरे दोस्तों मुझे छोड़ दो
न सुलझाओ मेरी उलझनें
मुझे अदावतें ही पसंद हैं
मैं दुश्मनो में ही ठीक हूँ
मुझे खुशी की कोई तलब नही
मुझे अपना ग़म भी नवाज़ दो
मुझे आंसू पीना पसंद हैं
मैं आंसुओं में हे ठीक हूँ

नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें

दीप जलाओ


शिक्षा का शुभ दीप जलाओ।
संस्कृति से अज्ञान भगाओ।।
शिक्षा का सब दीप जलाओ,

ज्ञान प्रकाश सभी फैलाओ।
रहे न कहीं निरक्षरता-तम,
रहे न कोई अशिक्षित, अक्षम।
पढ़ो स्वावलम्बी बन जाओ।
शिक्षा का शुभ दीप जलाओ।।

जग में वही सर्व सुन्दर है,
ज्ञान-ज्योति जिसके अन्दर है।
वही श्रेष्ठ है, वही प्रेष्ठ है, 
जोकि ज्ञान विज्ञान ज्येष्ठ है।
पढ़कर सदा मानधन पाओ।
शिक्षा का शुभ दीप जलाओ।।

जो नर-नारि अपढ़ होते हैं, 
 निज सम्मान सदा खोते हैं।
वे समाज में सुयश न पाते, 
 लज्जित होते हैं लजियाते।
पढ़कर जीवन सफल बनाओ।
शिक्षा का शुभ दीप जलाओ।।

शिक्षित है समाज में ऊँचा, 
उससे बढ़कर कोई न दूजा।
शिक्षित के झण्डे लहराते, 
शिक्षित सदा उच्चपद पाते।
पढ़ो, जगत् में सुयश कमाओ।
शिक्षा का शुभ दीप जलाओ।।

डॉ. नरेनद्र नाथ लाहा का चिन्तन

1. जीवन के संध्या में
सुबह का आनन्द लाओ
किताबों से दोस्ती बाँधो
पन्नों में प्यार पाओ
2. साधारण आदमी
दु:खी है परेशान है
बात-बात पर लड़ता है
प्यार के दो शब्द बोलो
उतना ही झुकता है
3. सम्बन्धों की लड़ाई पर
चितायें मत जलाओ
अगर सम्भव हो सके तो
मरने के बाद भी प्यार फैलाओ
4. मुर्गे की बांग पर
एक पीढ़ी जागती है
एक पीढ़ी सोती है
प्रकृति देख रोती है
5. सुन्दरता का दर्द
उसी को मालूम है
जो मेकअप लगाता है
चेहरा छुपाता जाता है

27, ललितपुर कॉलोनी,
डॉ. पी.एन. लाहा मार्ग, ग्वालियर (म.प्र.)

समीर लाल ‘समीर’ का व्यंग्य : सच का सामना

एक नामी चैनल पर कल शाम ’सच का सामना’ देख रहा था.

कार्यक्रम के स्तर और उसमें पूछे जा रहे सवालों पर तो संसद, जहाँ सिर्फ झूठ बोलने वालों का बोलबाला है, में तक बवाल हो चुका है. इतने सारे आलेख इस विवादित कार्यक्रम पर लिख दिये गये कि अब तक जितना ’सच का सामना’ की स्क्रिप्ट लिखने में कागज स्याही खर्च हुआ होगा, उससे कहीं ज्यादा उसकी विवेचना में खर्च हो गया होगा.

खैर, वो तो ऐसा ही रिवाज है. नेता चुनते एक बार हैं और कोसते उन्हें पाँच साल तक हर रोज हैं. अरे, चुना एक बार है तो कोसो भी एक बार. इससे ज्यादा की तो लॉजिकली नहीं बनती है.

बात ’सच का सामना’ कार्यक्रम की चल रही थी.

इतना नामी चैनल कि अगर वादा किया है तो वादा किया है. नेता वाला नहीं, असली वाला. अगर रात १० बजे दिखाना है रोज, तो दिखाना है.

अब मान लीजिये, रोज के रोज शूटिंग हो रही है रोज के रोज दिखाने को और पॉलीग्राफ मशीन खराब हो जाये शूटिंग में. मशीन है तो मौके पर खराब हो जाना स्वभाविक भी है वो भी तब, जब वो भारत में लगी हो. हमेशा की तरह मौके पर मेकेनिक मिल नहीं रहा. रक्षा बंधन की छुट्टी में गाँव चला गया है, अपनी बहिन से मिलने वरना वहाँ ’सच का सामना’ करे कि भईया, अब तुम मुझे पहले जैसा रक्षित नहीं करते. याने एक धागा न बँधे, तो रक्षा करने की भावना मर जाये. धागा न हुआ, ए के ४७ हो गई.

ऐसे में शूटिंग रोकी तो जा नहीं सकती. अतः, यह तय किया गया कि सच तो उगलवाना ही है तो पुलिस वालों को बुलवा लो. इस काम में उनसे बेहतर कौन हो सकता है? वो तो जैसा चाहें वैसा उगलवा लें फिर यहाँ तो सच उगलवाने का मामला है.

प्रोग्राम हमारा है, यह स्टेटमेन्ट चैनल की तरफ से, याने अगर हमने कह दिया कि ’यह सच नहीं है’ तो प्रूव करने की जिम्मेदारी प्रतिभागी की. हमने तो जो मन आया, कह दिया. पैसा कोई लुटाने थोड़े बैठे हैं. जो हमारे हिसाब से सच बोलेगा, उसे ही देंगे.

पहले ६ प्रश्न तो लाईसेन्स, पासपोर्ट और राशन कार्ड आदि से प्रूव हो गये मसलन आपका नाम, पत्नी का नाम, कितने बच्चे, कहाँ रहते हो, क्या उम्र है आदि. लो जीत लो १०००००. खुश. बहल गया दिल.

आगे खेलोगे..नहीं..ठीक है मत खेलो. हम शूटिंग डिलीट कर देते हैं और चौकीदार को बुलाकर तुम्हें धक्के मार कर निकलवा देते है, फिर जो मन आये करना!! मीडिया की ताकत का अभी तुम्हें अंदाजा नहीं है. हमारे खिलाफ कोई नहीं कुछ बोल सकता.

तो आगे खेलो और तब तक खेलो, जब तक हार न जाओ.

प्रश्न ५ लाख के लिए :’ क्या आप किसी गैर महिला के साथ उसकी इच्छा से अनैतिक संबंध बनाने का मौका होने पर भी नाराज होकर वहाँ से चले जायेंगे.’

जबाब, ’हाँ’

एक मिनट- क्या आपको मालूम है कि आज पॉलीग्राफ मशीन के खराब होने के कारण यहाँ उसके बदले दो पुलिस वाले हैं. एक हैं गेंगस्टरर्स के बीच खौफ का पर्याय बन चुके पांडू हवलदार और दूसरे है मिस्टर गंगटोक, एन्काऊन्टर स्पेश्लिस्ट- एक कसूरवार के साथ तीन बेकसूरवार टपकाते हैं. बाई वन गेट थ्री फ्री की तर्ज पर.

जबाब-अच्छा, मुझे मालूम नहीं था जी. मैने समझा था कि पॉलीग्राफ मशीन लगी है. मैं अपना जबाब बदलना चाहता हूँ.

नहीं, अब नहीं बदल सकते, अब तो ये ही पुलिस के लोग पता करके बतायेंगे कि आपने सच बोला था कि नहीं.

पांडू हवलदार, इनको जरा बाजू के कमरे में ले जाकर पता करो.

सटाक, सटाक की आवाजें और फिर कुछ देर खुसुर पुसुर. फिर शमशान शांति और सीन पर वापसी.

माईक पर एनाउन्समेण्ट: "बंदा सच बोल रहा है."

बधाई, आप ५००००० जीत गये. क्या आप आगे खेलना चाहेंगे?

नहीं..

उसे जाने दिया जाता है. जब प्रशासन (पुलिस वाले) उसके साथ है तो कोई क्या बिगाड़ लेगा. जैसा वो चाहेगा, वैसा ही होगा.

स्टूडियो के बाहर पांडू एवं गंगटोक और प्रतिभागी के बीच २५०००० और २५०००० का ईमानदारी से आपस में बंटवारा हो जाता है और सब खुशी खुशी अपने अपने घर को प्रस्थान करते हैं.

सीख: प्रशासन का हाथ जिस पर हो और जो प्रशासन से सांठ गांठ करने की कला जानता हो, वो ऐसे ही तरक्की करता है. माना कि मीडिया बहुत ताकतवर है लेकिन देखा न!! कहीं न कहीं उन्हें भी दबना ही पड़ता है.

यही है सत्य और यही है 'सच का सामना'!!!!

-समीर लाल 'समीर'

हिंदू हिन्दी हिंदुस्तान



हिंदू हिन्दी हिंदुस्तान 
क्या है भारत की पहचान 
पहले राज किया अंग्रेजों ने 
अब अंग्रेजी के है गुलाम 

देश की आजादी की खातिर 
जाने कितनों ने देदी जान 
हिन्दी को हम भूल रहे है 
अंग्रेजी को समझते शान 

हिन्दी बचाओ के नारे लगाकर 
चला देते हैं हम अभियान 
हालत क्या है हिन्दी की 
इस ओर नहीं है किसी का ध्यान 

अब सब कुछ हिन्दी में होगा 
कहते नेताजी सीना तान 
ख़ुद विदेशी दौरे कर रहे 
छोड़ रहे है अंग्रेज़ी वाण 

उर्दू के खातिर जिन्ना ने 
बना दिया था पकिस्तान 
हिन्दी को हिंगलिश बनाकर 
बोल रहा है हिंदुस्तान 
हिंदू हिन्दी ............. 

विनती सुनलो मातृभूमि की 
ऐ भारत माँ के वीर जवान 
हिन्दी दिवस मनाने से ही 
नहीं बनेगी देश की पहचान 
हिंदू हिन्दी ............. 

हिन्दी आवश्यक भाषा है 
सबको सुना दो ये फरमान 
तभी होगा एक ये भारत 
हिंदू हिन्दी हिंदुस्तान

जय हिन्द !

गुनाह कर के सजा से डरते है


गुनाह कर के सजा से डरते है
ज़हर पीकर दवा से डरते है
हमे दुश्मनों के सितम का खौफ नही
हम तो प्यार की बेवफाई से डरते है.

ज़रूरत नही अल्फाज़ की
प्यार तो चीज़ है एहसास की
पास होते तो बात ही कुछ और थी
दूर से ख़बर है हमे आपकी हर साँस की.

जीते हर बाज़ी तो मशहूर हो गए
आपकी हसी मे हसे तो आसूं दूर हो गए
बस आप जैसे दोस्त की बदोलत हम
कांच से कोहिनूर हो गए.

वो आए उनकी याद आकर वफ़ा कर गई
उनसे मिलने की तमन्ना सुकून तबाह कर गई
आहट हुई सोचा असर दुआ कर गई
दरवाजा खुला तो देखा मज़ाक हमसे हवा कर गई.

यादो की कीमत वोह क्या जाने
जो ख़ुद ही यादों को मिटा दिया करते है
यादों का मतलब तो उनसे पूछो
जो यादों के सहारे ज़िन्दगी बिता दिया करते है

-पूजा, गुडगाँव हरियाणा

चालाक कुत्ता [कहानी]

http://portraitxpress.files.wordpress.com/2008/10/rottie.jpg
एक दिन एक कुत्ता जंगल मैं रास्ता भटक गया? तभी उसाने देखा एक शेर उसकी तरफ़ रहा है? कुत्ते की साँस रूख गई? "आज तो काम तमाम मेरा!" उसने सोचा? फिर उसने सामने कुछ सूखी हड्डियाँ पड़ी देखि? वोह आते हुए शेर की तरफ़ पीठ कर के बैठ गया और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा और ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा, "वह! शेर को खाने का मज़ा ही कुछ और है. एक और मिल जाए तो पूरी दावत हो जायेगी!" और उसने ज़ोर से डकार मारा. इस बार शेर सोच में पड़ गया. उसने सोचा "ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है! जान बचा करा भागो!" और शेर वहां से जान बच्चा के भागा.
पेड़ पर बैठा एक बन्दर यह सब तमाशा देख रहा था. उसने सोचा यह मौका अच्छा है शेर को साड़ी कहानी बता देता हूँ - शेर से दोस्ती हो जायेगी और उससे ज़िन्दगी भर के लिए जान का खतरा दूर हो जाएगा? वोह फटाफट शेर के पीछे भागा. कुत्ते ने बन्दर को जाते हुए देख लिया और समझ गायकी कोई लोचा है. उधर बन्दर ने शेर को सब बता दिया की कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ बनाया है. शेर ज़ोर से दहाडा, "चल मेरे साथ अभी उसकी लीला ख़तम करता हूँ" और बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ़ लपका

http://www.lionking.org/imgarchive/Act_2/RafikisWords.jpg
आप सोच सकते है की अब कुत्ते ने क्या किया होगा......... नही ना......................... चलो आगे देखते है.
कुत्ते ने शेर को आते देखा तो एक बार फिर उसकी तरफ़ पीठ करके बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा, "इस बन्दर को भेजे के घंटा हो गया, साला एक शेर फसा कर नही ला सका अभी तक!"

मोहब्बत दिल पे दस्तक है!


बदन को रूह का रास्ता दिखाती है
मोहब्बत इक दुआ है
जो! हमेशा साथ रह्ती है
मोहब्बत ठंडी छांव है
जो! सहराओं के सफ्फर मैं काम आती है
मोहब्बत उस का पल्लो है
जहाँ उम्मीद के कुछ लफ्ज़ बंधे हैं
मोहब्बत उस की आंखें हैं
की! जिन मैं खुवाब जागते हैं
मोहब्बत उसका चेहरा है
की! दिल की खुवाहिसैं साँस लेती हैं
मोहब्बत दिल पे दस्तक है!

हिन्दी भाषा: भारतीय संस्कृति की एक धरोहर है

भारत को मुख्यता हिन्दी भाषी माना गया है। हिन्दी भाषा का उद्गम केन्द्र संस्कृत भाषा है। लेकिन समय के साथ संस्कृत भाषा का लगभग लोप होता जा रहा है। यही हाल हिन्दी भाषा का भी हो सकता है अगर इसके लिये कोई सार्थक प्रयास नहीं किये गये तो। भारतीय संविधान के तहत सभी सरकारी और गैर सरकारी दफ्तरों में हिन्दी में कार्य करना अनिवार्य माना गया है। लेकिन शायद ही कहीं हिन्दी भाषा का प्रयोग दफ्तर के कायों में होता हो। हर क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है। किसी को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं तो उसको नौकरी मिलना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी होता है। जबकि यह गलत कृत्य है सरासर भारतीय संविधान के कानून की अवहेलना है।
भारत वर्ष में प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को भारत में प्रति वर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन सिर्फ भारत में ही १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष १० जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।
जब भारत देश स्वतंत्र हुआ था तब भारतवासियों ने सोचा होगा कि उनके आजाद देश में उनकी अपनी हिन्दी भाषा, अपनी संस्कृति होगी लेकिन यह क्या हुआ? अंग्रेजों से तो भारतवासी आजाद हो गए पर अंग्रेजी ने भारतवासियों को जकड़ लिया।
भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी भाषी राज्यों को अंग्रेजी की जगह हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए। महात्मा गांधी के समय से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति दक्षिण भारत नाम की संस्था अपना काम कर रही थी। दूसरी तरफ सरकार स्वयं हिन्दी को प्रोत्साहन दे रही थी यानी अब हिन्दी के प्रति कोई विरोधाभाव नहीं था।
अंग्रेजी विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रमुख भाषा है। लेकिन भारतवासियों को अंग्रेजी का प्रयोग पूरी तरह खत्म कर देना चाहिये। क्योंकि यह सच है कि यह हमें साम्राज्यवादियों से विरासत में मिली है।
अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भारत वर्ष में हिन्दी भाषा की अपेक्षा कहीं अधिक ज्यादा किया जाता है। लेकिन क्यों? भारत वर्ष हिन्दी भाषी राष्ट्र है। उसको हिन्दी के प्रचार व प्रसार पर ध्यान देना चाहिये। वैसे इस विषय में हमारे कुछ बुद्धिजीवियों ने गहन विचार-विमर्श कर हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार व प्रयोग इंटरनेट के माध्यम से करना शुरू कर दिया है। हिन्दी भाषा का प्रयोग वर्तमान में ब्लाग पर खूब किया जा रहा है। कई वेबसाइट भी हैं जो हिन्दी भाषा में हैं। यह एक सार्थक प्रयास है हिन्दी भाषा की प्रगति एवं उत्थान के लिये।
अंग्रेजी के इस बढ़ते प्रचलन के कारण एक साधारण हिन्दी भाषी नागरिक आज यह सोचने पर मजबूर है कि क्या हमारी पवित्र पुस्तकें जो हिन्दी में हैं, वह भी अंग्रेजी में हो जाएंगी। हमारा राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, हमारी पूजा-प्रार्थना सब अंग्रेजी में हो जाएंगे। हम गर्व से कहते हैं कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। लेकिन वर्तमान में जो नई पीढ़ी जन्म ले रही है उसको बचपन से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में शिक्षा ग्रहण के लिये भेज दिया जाता है। वह बचपन से ही अंग्रेजी भाषा को पढ़ता व लिखता है और उसी भाषा को अपनी मुख्य भाषा समझने लगता है। क्योंकि उसको माहौल ही वैसा मिलता है। इसमें उसकी क्या गलती। लेकिन किसी न किसी की गलती तो है ही। इस विषय में हमें विचार करना चाहिये। क्या इस प्रकार के रवैये से हमारी यह उम्मीद कि 'हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलान ' कभी संभव हो पाएगा।

हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति की एक धरोहर है जिसे बचाना भारतवासियों का परमकत्र्तव्य होना चाहिये। वर्तमान में हिन्दी भाषा का प्रयोग न कि भारत में बल्कि भारत के बाहर के कई देशों में भी किया जा रहा है। ध्यान, योग आसन और आयुर्वेद विषयों के साथ-साथ इनसे सम्बन्धित हिन्दी शब्दों का भी विश्व की दूसरी भाषाओं में विलय हो रहा है। भारतीय संगीत चाहे वह शास्त्रीय हो या आधुनिक हस्तकला, भोजन और वस्त्रों की विदेशी मांग जैसी आज है पहले कभी नहीं थी। लगभग हर देश में योग, ध्यान और आयुर्वेद के केन्द्र खुल गए हैं। जो दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं। ऐसी संस्कृति जिसे पाने के लिए हिन्दी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार व इसके प्रयोग को बल देने के लिये कई महापुरुषों ने अपने मत इस प्रकार दिये:-

महात्मा गाँधी : कोई भी देश सच्चे अर्थो में तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।

काका कालेलकर : यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है तो वह जनता की भाषा में ही चलाना होगा।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस : प्रांतीय ईष्र्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।

लालबहादुर शास्त्री : राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिन्दी ही हो सकती है।

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : हिन्दी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। हिन्दी राष्ट्रीयता के मूल को सींचकर दृढ़ करती है।

रेहानी तैयबजी : हम हिन्दुस्तानियों का एक ही सूत्र रहे- हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी हमारी लिपि देवनागरी हो।

महर्षि दयानंद सरस्वती : हिन्दी द्वारा सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय : यदि हिन्दी की उन्नति नहीं होती है तो यह देश का दुर्भाग्य है।

अनन्त गोपाल सेवड़े : राष्ट्र को राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रभाषा की आवश्यकता है और वह स्थान हिन्दी को प्राप्त है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक : राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं। मेरे विचार में हिन्दी ही ऐसी भाषा है।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी : यदि भारतीय लोग कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।

लाला लाजपत राय : राष्ट्रीय मेल और राजनीतिक एकता के लिए सारे देश में हिन्दी और नागरी का प्रचार आवश्यक है।

डॉ. भगवान दास : हिन्दी साहित्य चतुष्पुरुषार्थ धर्म-अर्थ काम-मोक्ष का साधन है और इसीलिए जनोपयोगी भी है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र : निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।

मोरारजी देसाई : हिन्दी को देश में परस्पर संपर्क भाषा बनाने का कोई विकल्प नहीं। अँग्रेजी कभी जनभाषा नहीं बन सकती।

महादेवी वर्मा : हिन्दी प्रेम की भाषा है।

महाकवि शंकर कुरूप : भारत की अखंडता और व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए हिन्दी का प्रचार अत्यन्त आवश्यक है।

हाय ! किस्मत


इस कदर हम पे हुआ था, असर उसके प्यार का
ख़बर ख़ुद की थी हमको, होश था संसार का

उसको देखें तो दिल को चैन मिलता कहीं
रोज ही हम ढूंढते थे बहाना दीदार का

अब कहेंगे, तब कहेंगे सोचते थे हर घड़ी
सका फिर भी हम को हौसला इज़हार का

हमने माना उसको पाना काम ये आसन नही
इम्तेहान देना पड़ेगा हमको दरया पार का

कहने को तो कह भी देते हाले दिल उनसे मगर
डर हमे था सह पाते दर्द हम इनकार का

करके हिम्मत एक दिन चले हम, देर पर इतनी हुई
गैर के हाथों में देखा हाथ उस दिन यार का

कुछ लिखना है कुछ कहना है




कुछ लिखना है कुछ कहना है
पर शब्द नहीं मिल पाते है
कलम हाथ में लेकर भी
हम कुछ भी लिख न पाते है

कुछ जहन में है कुछ दिल में है
फ़िर भी कुछ कह नही पाते है
मिलने की कोशिश करते है
पर उनसे मिल नही पाते है

कुछ सोच लिया कुछ बोल दिया
वो कुछ न समझ पाते है
हम कोशिश करते रहते है
वो किसी और से मिलने जाते है

कुछ ठेस लगी कुछ घाव हुए
पर दवा लगा नही पाते है
ऐसे जख्मो पर तो शायद
हकीम भी काम ना आते है

कुछ मजनू थे कुछ राँझा थे
हम कौन है समझ न पाते है
एकतरफा चाहने वालो को
सब पागल पागल बुलाते है

आज की नारी

आज की नारी जो है सबकी प्यारी
मात पिता की बड़ी दुलारी
घर में सुनती सबकी बारी बारी
फिर भी कितनी अकेली हे बेचारी

हर दम उसे ही करना होता बलिदान
अपनी खुशियों और सपनो का
सबकी रखती है वो लाज
होकर विदा जाती ससुराल
खाकर कसम कह देती वो
दुःख सुख में दूँगी पति का साथ

हर बार उसे ही देनी होती हे अग्नि परीक्षा
पति शादी के बाद देखे किसी और नारी की ओर
उसे कोई कुछ नही कहता पत्नी देखे किसी ओर की ओर
उसे सब कहते शर्म नही आती पति के होते हुए देखती हे
किसी ओर को एक नारी कहती हे दूसरी नारी से
क्यों ऑरत ही ऑरत की दुशमन हे
क्यों हे नारी लाचार
सब कुछ सहती गे पत्नी धर्म निभाती हे
परिवार को सुखी ओर खुशहाल बनती हे
सबकी खुशी का कह्यल रखती हे
पैर उसकी क्या खुशी हे ये कोई नही जानता
कितनी हे बेबस नारी
मैं आज की हर नारी से यही कहती हूँ
सभी रिश्ते निबाहो खुशी से
पैर अपनी भी कोई पहचान बनाओ
न जियो किसी की दम पर
खड़ी हो जाओ अपने अपने पैरो पर
छु लो अस्मा किसी से न रहो पीछे
हम क्या नही कर सकते मर्दों का हेर काम अब्ब हम भी हे करते
पर मर्द नही चला सकते हमरी तरह घर न ही बना सकते हे परिवार खुशहाल
अपने सपना न करो कुर्बान बनाओ अपनी अलग पहचान
कितनी हे बेबस नारी

घूंघट

उनकी सेवा
करते करते
थकती नहीं वो
दिन से लेकर
रात तक हर रोज़
उनकी स्थिति
उनकी सम्पन्नता
उनका वैभव
दिखाने को
लाद लेती है
भारी भारी गहने
और कपडे
खूब करती है श्रृंगार
प्रसन्न होकर प्रतिदिन
पूछा जाता है जब
परिचय उसका
बताती है वो
गोत्र उन्ही का
संतान भी उसकी
कहलाती है उनकी
घर, ज़मीन , संपत्ति अंहकार
इन सब से जुड़े
उनके अपराधों को
झेलती है वो -
फिर भी उन्हें
ढकने के लिए
छिपा लेती है
अपना ही मुख
घूंघट की ओट में

(रक्षा शुक्ला )

आज कल

आज कल आँखें कम सोती हैं
बहुत ज़्यादा रोती हैं

आज कल मनन उदास है
बहुत ज़्यादा रोग के पास है

आज कल दिल कम धड़कता है
बहुत ज़्यादा रुकता है

आज कल तुम्हारी याद आती है
बहुत ज़्यादा सताती है

आज कल कुछ नही समझ आता है
बहुत ज़्यादा भूल भुलाया होजाता है

न जाने ये कैसी बीमारी होती जा रही है
अहिस्ता अहिस्ता हमारी जान लेती जारही है....

-पिंकी वालिया
तुर्की

तीर चला नज़र का


जब तीर चला नज़र का 
भेद गया मेरे दिल को 
जब पलके उठाई उसने 
हाय! में कैसे संभालू दिल को 
उसकी भोली सी खूबसूरत आँखे 
जैसे समझाती है मुझको 
झील सी गहरायी है इनमे 
तभी तो डूबा लेती है मुझको 
उसकी आँखों की चमक ये कहती है 
छुपा लू दामन में तुझको 
क्यों डूबता जा रहा हूँ मै 
यह ख़बर नही है मुझको 
जब देखे आँखों में अश्क उसके 
क्यों संभाल नही पाया में ख़ुद को 
खुदा से फरियाद करने लगा मै 
दें दें उस नाजनीन के ग़म मुझको 
ऐ ममता अब तू ही बता 
क्या मिलेंगे उसके ग़म मुझको 

 -ममता अग्रवाल

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