मोबाइल में जाने क्या देखा करती थी
कुछ करना था शायद उसको
पर जाने किस से डरती थी
जब भी मिलती थी मुझसे
येही पूछा करती थी
यह चालू कैसे होता है,
यह चालू कैसे होता है
और मैं सिर्फ़ येही कहता था
ये मोबाइल नही टीवी का रिमोट है
कुछ करना था शायद उसको
पर जाने किस से डरती थी
जब भी मिलती थी मुझसे
येही पूछा करती थी
यह चालू कैसे होता है,
यह चालू कैसे होता है
और मैं सिर्फ़ येही कहता था
ये मोबाइल नही टीवी का रिमोट है
1 टिप्पणी:
नटखट कविता।
-----
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )
एक टिप्पणी भेजें