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ज़िन्दगी

बहुत अजीब है ये ज़िन्दगी
कब किस मोड़ पे आकार रुक जाती है
बगैर कोई रुकावट की आगाह किए

लड़खड़ाते…सँभालते
अपने आप को समझाते
कि ये अनुभव भी हमे
कुछ न कुछ तो निश्चित रूप से
सिखलाएगा ही

ह्रदय को निचोडती है कुछ पल
जब खालीपन डट कर बैठ जाता है
शुन्य को केन्द्र बनाये
मन हताश …कौन समझाए!

घड़ी के काँटों को जैसे किसी बलवान ने
दबोच लिया है अपने पूरी शक्ति से
न छत्त रहे हैं उदासीनता के बादल
न ठंडक मिल रही है ह्रदय को
सुबह की ओस की ताजगी से

न उम्मीद झांक रही है
खिलते पंखुड़ियों की तरह
न बसंत आस पास फटक रही है
जैसे की कोई शिकवा हो

बस यही आसरा है कि
ऐसे दिनों का भी अंत होता है
समय मरहम लगता है
और एक दिन गेहेरे घाव भी
एक दाग बन कर रह जाते हैं.

तीर चला नज़र का


जब तीर चला नज़र का 
भेद गया मेरे दिल को 
जब पलके उठाई उसने 
हाय! में कैसे संभालू दिल को 
उसकी भोली सी खूबसूरत आँखे 
जैसे समझाती है मुझको 
झील सी गहरायी है इनमे 
तभी तो डूबा लेती है मुझको 
उसकी आँखों की चमक ये कहती है 
छुपा लू दामन में तुझको 
क्यों डूबता जा रहा हूँ मै 
यह ख़बर नही है मुझको 
जब देखे आँखों में अश्क उसके 
क्यों संभाल नही पाया में ख़ुद को 
खुदा से फरियाद करने लगा मै 
दें दें उस नाजनीन के ग़म मुझको 
ऐ ममता अब तू ही बता 
क्या मिलेंगे उसके ग़म मुझको 

 -ममता अग्रवाल

मुझे याद रखना

मेरी तुमसे बस इतनी सी है इल्तेज़ा
हमेशा मुझे याद रखना
मेरे साथ जो पल बीते है तुम्हारे
कम से कम उन्हें तो यद् रखना
जो भी प्यार करते है आपको
उनमे मेरा नाम याद रखना
अगर मुश्किल हो याद करना
तो बस एक काम करना
बना लेना कोई और हमसाया
फ़िर उसे ही याद रखना
भूले से भी आजाये याद हमारी
तो ये समझना
की बड़ा मुश्किल है मुझे याद रखना

कैसा ये रिश्ता है ?


ख्वाब और हकीकत में
इश्क और नजाकत में
दिल और दिमाग में
कागज़ और किताब में
फूल और खुशबू में
दिल की धुकधुक में
एक अजीब सा रिश्ता है
एक के बिना दूसरा अधूरा है
एक चलता है एक रुकता है
एक बढ़ता है एक झुकता है
क्यों ख्वाब हकीकत बनना चाहता है
क्यों इश्क में नज़ाक़त होती है
क्यों दिल पैर दिमाग हावी है
क्यों कागज़ बिना किताब बेभावी है
क्यों फूल ही खुशबु देता है
महबूब के छूटे ही
क्यों दिल धुकधुक करता है
कैसा ये रिश्ता है ?
बोल ममता बोल
कैसा ये रिश्ता है ?

मौत का खेल .. (६ अगस्त १९४५ नागासाकी)

सहसा हुआ एक धमाका....
सोते से वे सब जगे,
उगता आग का गोला देखा..
पर कुछ पलो के लिए.
अचानक गर्मी बढ़ी.
झुलश गए सब चेहरे..
वे चिल्लाये
पर कुछ पलो के लिए..
"लिटिल बॉय" ने कर दिखाया कमाल,
६ अगस्त कि रात को बना दिया शमसान..
लाखो कि चिता जली,
गल गए हड्डी मांस,
कुछ पलो के बाद हो गया सब समाप्त,
बचा सिर्फ एक निशान...
हैवान सिर्फ हैवान....
पल में लाख कॉल के गाल समाये
पर इन अतातइयो को दया नहीं आई.
९ अगस्त कि रात को किया फिर कमाल...
लाख फिर घबराए,चीखे और चिल्लाये,
पर कुछ पलो के लिए,
फिर वे भी बन गए मौत के ग्रास..
हो गयी चारो तरफ शांति...
क्यूकि,
शोर के लिए चाहिए जान....
जो तब हो चुकी थी समाप्त
जो तब हो चुकी थी समाप्त।!!
- ममता अग्रवाल

दोस्त ... जिसे ढूंढ रही थी ...

इस वीरान अँधेरी दुनिया में
अपनी इन पलकों को झपका कर
एक ऐसे साथी को ढूंढ रही थी
जो दिल की हर बात समझ सके
उससे में अपनी हर बात कह सकू
उस पर इतना विश्वास कर सकू
उसको अपना बना सकू
जिसे में जानती नही पहचानती नही
उस स्वप्न की काल्पनिकता को
पलके झपका कर ढूंढ रही हूँ
जब मै उसकी आँखों की तरफ़ देखू
कुआ सा प्यारा लगे वो
बाँट सकू उससे अपने जीवन का हर पहलु

उस दोस्त को जिससे मै कभी मिली भी नही अभी
हर वायदा पूरा करने को हर दूरी मिटा दू
उस ज़िन्दगी में जो इसके रूप में चेतन हो गई है
हर दूरी से दूर जो एक दोस्त मेरा बैठा है
अब वो यहाँ है
मै भी यहाँ हूँ
इस अजनबी दुनिया का करने को आलिंगन
अब ये दुनिया लगती है मुझे सतरंगी
जिसमे है मेरा वो दोस्त अजनबी
हाँ वो तुम्ही हो तुम्ही हो तुम्ही हो
- ममता अग्रवाल

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