क्या करू अब मै जमी पर अटक गया
निकला था मैं स्वर्ग जाने को मगर
जाने कैसे रास्ता मैं भटक गया
किए थे कई पुण्य
पिछले जन्म मे मैंने
उनके फल से
स्वर्ग का टिकट कट गया
जाने कौनसा पाप
बीच मे आ गया
रस्ते मे ही
मेरा भेजा सटक गया
स्वर्ग जाना था मुझे,
पर ये क्या होगया
जाने कौन मुझे
इस धरती पर पटक गया
शायद स्वर्ग किस्मत को मंज़ूर नही था
इसलिए मैं
स्वर्ग और नरक के बीच लटक गया
- निर्भय जैन
6 टिप्पणियां:
ांच्छा है न पृत्वि पर अटक गये कम से कम हमे एक कविता तो पढने के लिये मिली। बहुत बहुत बधाई स्वागत है आपका पृथ्वि पर हम सब के बीच
बहुत खुब, बहुत बढ़िया लगी आपकी ये रचना । बधाई
funny
वाह जी, ये अंदाज भी निराला है...अब तो अटक ही गये. :)
स्वर्ग और नरक के बीच लटकते रहिये और बीच बीच मे ऐसे ही कविता पटकते रहिये
" bahut hi badhiya rachana "
------ eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
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