जिन्ना का जिन्न

जिन्ना के जिन्न ने
फ़िर किया कला जादू
पार्टी नेता आडवाणी के बाद
जसवंत भी हो गए बेकाबू

जिन्ना का जिन्न
बड़ा निराला है
पहले किए देश के टुकड़े
अब बीज फूट का डाला है

जिन्ना के जिन्न से
अब छुटकारा पाना है
काले जादूगर जिन्ना को
अब दिलो से मिटाना है
- सुमित "सुजान"

गाँधी तेरा राष्ट्र बिगड़ गया |

" गाँधी " तेरा राष्ट्र बिगड़ गया
" आज गांधीजी काफी अच्छे मिजाज में बैठे थे की कुछ स्वतंत्र सेनानी वहां पर आ पहुंचे ,उनके चहेरे पर चिंता दिखाई दे रही थी गांधीजी ने कहा "कैसे आना हुवा सब कुशल मंगल तो हैं ना ? ॥किसीने कुछ जवाब नही दिया ..."आप सब चुप क्यु हो ?"॥चारो तरफ़ एक सन्नाटा सा था कोई कुछ बताता नही था "कुछ बोलो तो सही ? कोई तो कहो की मेरे भारतवासी कुशल तो है ? "" एक स्वतंत्र सेनानी आगे आया, बापू के पास जाकर उसने कहा " बापू, दर्द होता है भारत का नाम सुनकर " बापू जो हमारे "राष्ट्रपिता " है ,वो ये बात सुनकर खामोश हो गए ,उनका चहेरा दर्द से उभर आया बापू के मुह से सिर्फ़ निकला एक अल्फाज़ "मेरा भारत ....",बापू ने अपने चश्मे ठीक किए ...और अपनी लाठी लेकर निकल पड़े ....स्वर्ग की एक छोटीसी खिड़की खोलकर वो "अपना भारत "देखने लगे ""बापू ने देखा की "इश्वर अल्लाह तेरो नाम " कहेनेवाले बापू के देशवासी आज धर्म के नाम पर लड़ रहे है ...एक दुसरे की जान के दुश्मन बन बैठे है तो सिर्फ़ ये देश के नेता के कहने पर ...सायद आज उनके देशवासियोने अपनी आँख पर पट्टी बाँध दी है ...उन्हें सच और झूठ का सायद फासला दिखाई नही देता है ,सायद इस देश के वासियों को सिर्फ़ सुनाई देते है नेता के भाषण .....जगह जगह पर रिश्वत का राज चल रहा है मगर चुप है गाँधी के देशवासी .....जगह जगह गाँधी के पुतले बिठाये है मगर उन पुतलो के पैर के पास रिश्वत भी ली जाती है और बैठकर शराब भी पि जाती है ,कौन रोकता है यहाँ गुनाह करने से ? ....गाँधीजी ने तिन बंदर दिए थे सिख देने के लिए हमे ...मगर बंदर सुधर गए हम बिगड़ते गए ......जगह जगह दिखाई दिया गाँधी को सिर्फ़ बर्बादी का मेला ...दिखाई दिया की बिजली नही है मगर कोई कुछ नही कहेता नेता को ...सायद गुलामी अभी तक गई नही ॥लोगो के दिमाग से ,लोगो के दिल से ....न जा ने कब ये पढ़े लिखे लोग समजेंगे की "भारत का संविधान क्या कहता है ?""गरीबों की हालत देखकर गांधीजी हैरान हो गए उन्होंने अपनी लाठी कसकर पकड़ी ...लम्बी साँस के साथ फ़िर देखने लगे की कैसे मर रहे है गरीब लोग ? सक्कर से लेकर आलू ,आलू से लेकर बिजली ,बिजली से लेकर नेता ...मार रहे है, मगर कुछ न करते भारत के नागरिक को देख रहे थे बापू....सायद,बापू के दिल को दर्द हो रहा था....""क्यु गाँधी दर्द हुवा ?" एक अंग्रेज बोला ,बापू चुप खड़े थे ॥यही सोचते की "क्या मैंने इन लोगो के लिए अपनी छाती पर गोली खाई ? क्या इन लोगो के लिए मैंने सत्याग्रह किया था ,जो अभीभी गुलामी की जंजीरों में कैद है ? जो अपने हक के लिए आवाज़ नही उठा सकते है वैसे लोगो के लिए मैंने किया था जेल भरो आन्दोलन ? " मज़हब नही सिखाता आपस में वैर रखना " ये बात सायद याद नही इनको ,क्या इन्ही लोगो के लिए मैंने कहा था "इश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सम्मति दे भगवान " ""गांधीजी को हुवा दर्द उनके चहरे पर साफ़ नजर आ रहा था .....भारत की ये हालत देखकर ॥महान भारत के राष्ट्रपिता ...याने भारत के महान सपूत महात्मा गाँधी के चश्मे के पीछे से एक गरम आंसू सिर्फ़ यही कहके गिरा " हे राम ....""दोस्तों इस कहानी में मैंने कही सारे सवाल उठाये है ....क्या इनका जवाब है आपके पास ....क्या गांधीजी की आँख के आंसू की कीमत आपकी नजरो में कुछ नही ?
"नोंध : इस कहानी से अगर किसीका दिल दुखता है तो हम उनकी माफ़ी मांगते है ...मगर सोचना ...ये सवालो में सचाई है आपकी कीमती टिप्पणियों के साथ हमे बताओ की इस समस्या पर हम क्या कर सकते है ? ....धन्यवाद्




------ एकसच्चाई { आवाज़ }

साँसों की डोर

जाने क्यूँ वो साँसों की डोर टूटने नही देता,
बस दो कदम और चलने का वास्ता देकर
मुझे
रुकने नही देता.....

बात कहता है वो मुझसे हंस हंस कर जी लेने की,
अजीब शख्स है मुझको
चैन
से रोने नही देता......

आज हौसला देता है मुझे चाँद सितारों को छू लेने का,
वो प्यारा सा चेहरा मुझे
टूटकर
बिखरने नही देता.......

शायद जानता है वो भी इन आंखों में आंसुओ का सैलाब है,
जाने क्यूँ फ़िर भी वो इन आंसुओ को गिरने नही देता........

मुझसे कहता है, "मैं तो मर जाऊंगा तुम्हारे बिना" ,
मैं जिंदा हूँ अब तक के वो मुझे मरने नही देता!!!

क्या पाया

आत्म वंचना करके किसने क्या पाया
कुंठा और संत्रास लिए मन कुह्साया

इतना पीसा नमक झील खारी कर डाली
जल राशिः में खड़ा पियासा वनमाली
नहीं सहेजे सुमन न मधु का पान किया
सर से ऊपर चढ़ी धूप तो अकुलाया

सूर्या रश्मियाँ अवहेलित कर ,निशा क्रयित की
अप्राकृतिक आस्वादों पर रूपायित की
अपने ही हाथों से अपना दिवा विदा कर
निज सत्यों को नित्य निरंतर झुठलाया

पागल की गल सुन कर गलते अहंकार को
पीठ दिखाई ,मृदुता शुचिता संस्कार को
प्रपंचताओं के नागों से शृंगार किया
अविवेकी अतिरेकों को अधिमान्य बनाया

शीर्षक बताइये (प्रतियोगिता)

आजकल पैसे (धन-दौलत) के लिए प्रत्येक पुरूष पाप प्रवृत्ति हैं। वैसे भी प्रकाशवान (ख्याति) होने के लिए पैसे के पावर में वृद्धि के लिए प्रथम प्रयास करना भी चाहिए लेकिन पापा (पिताश्री) पुत्रों के लिए पाप रहित एकत्रित करें तो इस पुण्य का फल आने वाली पीढ़ी के पुत्रों को भी मिलेगा और हमारे पूर्वज भी प्रसन्न होगें। परमात्मा की प्रतिदिन, प्रतिपल, परम-पवित्र कृपा पीढिय़ों तक परिवार पर बनी रहेगी। परिवार पथभ्रष्ट होने से बचा रहेगा और प्राण त्यागते समय हमें किसी प्रकार का प्रायश्चित भी नहीं करना पड़ेगा।
प्राणी पाप रहित जीवन व्यतीत कर पुरूष से परमहँस की पदवी पाते हैं। पूज्यनीय हो जाते हैं। पारे से निर्मित शिवलिंग की पूजा से पापों का क्षय होता है। पैसा और पावर की वृद्धि होती हैं। पति-पत्नि एक दूसरे को पीडि़त कर परमात्मा शिव के अर्घनारीश्वर स्वरूप को खंडित करने का प्रयास करते हैं उन्हें इससे बचना चाहिये। परमार्थ और प्रेम से बड़ी पूजा सृष्टि से अन्य नहीं हैं। परिवर्तन संसार का नियम है यह भगवान श्री कृष्ण का उद्घोष है। पहले पापा (पिता) बनने की चाह सभी में रहती थी। किन्तु अब पैसे के लिए पापी बनने में कोई कमी नहीं छोड़ते पूर्वकाल में पुराने पूर्वज (बुजुर्ग) कहा करते थे कि परेशारियां हम स्वयं ही पैदा करते हैं। पूरी सृष्टि पंचतत्व पंचमहाभूतों से निर्मित, खण्डित और चलाएमान रहती हैं। प्रेमी, प्रेमिका में परमहित देख रहा है पिता के प्रवचन उसे सिरदर्द लगते है। प्रवचन कर्ता अब प्रथ्वी में परमात्मा की तरह पुज रहे हैं।
पूजा पाठ तो व्यर्थ की बात हो गई है ईमानदारी का पैमाना बदल चुका है। पति प्राणनाथ की जगह साढऩाथ हो रहे हैं। पत्ता (जुआ) और पाखण्ड से धरती लबालब है। परमहितेषी मित्र और प्यार-दुलार करने वाले बुजुर्ग घट रहे है। चारों तरफ, चारों पहर पाप पनप रहा है। पुलिस रक्षक नहीं अब भक्षक हो चुकी है। पापियों को पुरुस्कार और पुण्यात्माओं का धिक्कार मिल रहा है। पृथ्वी से पानी कम, और युवाओं की जवानी अब खत्म होती जा रही हैं।
पत्नी जो सदा रहे तनी और पति जिनकी हो गई है भ्रष्ट मती। प्रत्येक परिवार में ऐसी परिस्थितियाँ बन रही हैं। जो पिता पुत्र को प्रारंभ में प्रभु प्रार्थना कराते थे, वे परम्पराऐं छोड़कर अब पिज्जा खिला रहे हैं। बच्चे पुत्र-पुत्रियाँ पिताजी को प्रणाम की जगह हाय डेड कहने लगे हैं। पवन पुत्र हनुमान की जगह अब प्रवचन करने वाले पंडितों का जय-जयकार हो रही हैं। पसंद की प्रेमिकाऐं पत्नी का पद पा रही हैं। पुरुषार्थ पर अब कोई ध्यान नहीं दे रहा हैं। पौरुष दौर्बल्यता दूर करने वाली औषधियों के अत्याधिक प्रयोग से व्यक्ति पुरुषहीन हो रहा हैं। परनारी और परायेधन पर सबकी दृष्टि हैं। पुस्तकों का प्रकाशन और परहित धर्म केवल पैसा या नाम कमाने के लिए किया जा रहा है। पीडि़त लोग प्रश्नों के उत्तर प्राप्ती हेतु दर-दर भटक रहे हैं। कालसर्प-पितृदोष पैसा कमाने का एक आसान तरीका बन चुका हैं। प्रदूषण युक्त वातावरण के कारण पेट की पाचन शक्ति पूर्णत: खराब हो चुकी हैं।

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बाहुबली से धीरे धीरे, आई साउथ की रेल रे..... केजीएफ- सुशांत से बिगडा, बॉलीवुड का खेल रे..... ऊपर से कोरोना आया, उसने सबका काम लगाया फिर आया ...

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