अपनी खुशियां कम लिखना।
औरों के भी गम लिखना।
हंसते अधरों के पीछे,
कितनी आंखें नम लिखना।
किसका अब विश्वास करें,
झूठी हुई कसम लिखना।
महलों में तो मौजें हैं,
कुटियों के मातम लिखना।
तंत्र-मंत्र में डूबे सब,
लोकतंत्र बेदम लिखना।
नेताओं के पेट बड़े,
सब कुछ करें हजम लिखना।
मतलब हो तो गैरों की,
भरते लोग चिलम लिखना।
अब तक पूज्य बने थे जो,
वे भी हुए अधम लिखना।
भर दे सबके घावों को,
अब ऐसा मरहम लिखना।
- राहुल सिंह
4 टिप्पणियां:
वाह !! बहुत बढिया !!
भर दे सबके घावों को,
अब ऐसा मरहम लिखना।
बहुत खूब सुन्दर अन्दाज़. सुन्दर भाव
भर दे सबके घाव
..अबके एसा मरहम लिखना...
वाह वाह!! बहुत उम्दा बात कही.
सच लिखा आपने,मगर हो सके तो कुछ झूठ भी लिखना !जरा बहरी है सरकार.. अपनी जो भी कहो जोर से कहना...!बहुत दिनों बाद जोरदार रचना पढने को मिली है..लिखते रहिएगा..
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