अपने ज़ख्म ज़माने को दिखता रहा हू मैं
सीने में एक दर्द को छिपाता रहा हू मैं
ज़ालिम ने दिल के बदले दर्द क्यों दिया
छिप छिप के आँसू बहाता रहा हू मैं
आयेगी वो कभी लौटकर यही आस लिए
अपने दिल को हरपल समझाता रहा हू मैं
मालूम था मुझे कि संगदिल है वो तो
फिर भी जाने क्यू उसे ही चाहता रहा हू मैं
सीने में एक दर्द को छिपाता रहा हू मैं
ज़ालिम ने दिल के बदले दर्द क्यों दिया
छिप छिप के आँसू बहाता रहा हू मैं
आयेगी वो कभी लौटकर यही आस लिए
अपने दिल को हरपल समझाता रहा हू मैं
मालूम था मुझे कि संगदिल है वो तो
फिर भी जाने क्यू उसे ही चाहता रहा हू मैं
2 टिप्पणियां:
दिल के बदले दर्द ही मिलता है भाई,
अच्छी भावनाएं
bahut khub
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