अपनी खुशियां कम लिखना।
औरों के भी गम लिखना।
हंसते अधरों के पीछे,
कितनी आंखें नम लिखना।
किसका अब विश्वास करें,
झूठी हुई कसम लिखना।
महलों में तो मौजें हैं,
कुटियों के मातम लिखना।
तंत्र-मंत्र में डूबे सब,
लोकतंत्र बेदम लिखना।
नेताओं के पेट बड़े,
सब कुछ करें हजम लिखना।
मतलब हो तो गैरों की,
भरते लोग चिलम लिखना।
अब तक पूज्य बने थे जो,
वे भी हुए अधम लिखना।
भर दे सबके घावों को,
अब ऐसा मरहम लिखना।
- राहुल सिंह