चालाक कुत्ता [कहानी]

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एक दिन एक कुत्ता जंगल मैं रास्ता भटक गया? तभी उसाने देखा एक शेर उसकी तरफ़ रहा है? कुत्ते की साँस रूख गई? "आज तो काम तमाम मेरा!" उसने सोचा? फिर उसने सामने कुछ सूखी हड्डियाँ पड़ी देखि? वोह आते हुए शेर की तरफ़ पीठ कर के बैठ गया और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा और ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा, "वह! शेर को खाने का मज़ा ही कुछ और है. एक और मिल जाए तो पूरी दावत हो जायेगी!" और उसने ज़ोर से डकार मारा. इस बार शेर सोच में पड़ गया. उसने सोचा "ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है! जान बचा करा भागो!" और शेर वहां से जान बच्चा के भागा.
पेड़ पर बैठा एक बन्दर यह सब तमाशा देख रहा था. उसने सोचा यह मौका अच्छा है शेर को साड़ी कहानी बता देता हूँ - शेर से दोस्ती हो जायेगी और उससे ज़िन्दगी भर के लिए जान का खतरा दूर हो जाएगा? वोह फटाफट शेर के पीछे भागा. कुत्ते ने बन्दर को जाते हुए देख लिया और समझ गायकी कोई लोचा है. उधर बन्दर ने शेर को सब बता दिया की कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ बनाया है. शेर ज़ोर से दहाडा, "चल मेरे साथ अभी उसकी लीला ख़तम करता हूँ" और बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ़ लपका

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आप सोच सकते है की अब कुत्ते ने क्या किया होगा......... नही ना......................... चलो आगे देखते है.
कुत्ते ने शेर को आते देखा तो एक बार फिर उसकी तरफ़ पीठ करके बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा, "इस बन्दर को भेजे के घंटा हो गया, साला एक शेर फसा कर नही ला सका अभी तक!"

मोहब्बत दिल पे दस्तक है!


बदन को रूह का रास्ता दिखाती है
मोहब्बत इक दुआ है
जो! हमेशा साथ रह्ती है
मोहब्बत ठंडी छांव है
जो! सहराओं के सफ्फर मैं काम आती है
मोहब्बत उस का पल्लो है
जहाँ उम्मीद के कुछ लफ्ज़ बंधे हैं
मोहब्बत उस की आंखें हैं
की! जिन मैं खुवाब जागते हैं
मोहब्बत उसका चेहरा है
की! दिल की खुवाहिसैं साँस लेती हैं
मोहब्बत दिल पे दस्तक है!

हिन्दी भाषा: भारतीय संस्कृति की एक धरोहर है

भारत को मुख्यता हिन्दी भाषी माना गया है। हिन्दी भाषा का उद्गम केन्द्र संस्कृत भाषा है। लेकिन समय के साथ संस्कृत भाषा का लगभग लोप होता जा रहा है। यही हाल हिन्दी भाषा का भी हो सकता है अगर इसके लिये कोई सार्थक प्रयास नहीं किये गये तो। भारतीय संविधान के तहत सभी सरकारी और गैर सरकारी दफ्तरों में हिन्दी में कार्य करना अनिवार्य माना गया है। लेकिन शायद ही कहीं हिन्दी भाषा का प्रयोग दफ्तर के कायों में होता हो। हर क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है। किसी को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं तो उसको नौकरी मिलना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी होता है। जबकि यह गलत कृत्य है सरासर भारतीय संविधान के कानून की अवहेलना है।
भारत वर्ष में प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को भारत में प्रति वर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन सिर्फ भारत में ही १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष १० जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।
जब भारत देश स्वतंत्र हुआ था तब भारतवासियों ने सोचा होगा कि उनके आजाद देश में उनकी अपनी हिन्दी भाषा, अपनी संस्कृति होगी लेकिन यह क्या हुआ? अंग्रेजों से तो भारतवासी आजाद हो गए पर अंग्रेजी ने भारतवासियों को जकड़ लिया।
भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी भाषी राज्यों को अंग्रेजी की जगह हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए। महात्मा गांधी के समय से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति दक्षिण भारत नाम की संस्था अपना काम कर रही थी। दूसरी तरफ सरकार स्वयं हिन्दी को प्रोत्साहन दे रही थी यानी अब हिन्दी के प्रति कोई विरोधाभाव नहीं था।
अंग्रेजी विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रमुख भाषा है। लेकिन भारतवासियों को अंग्रेजी का प्रयोग पूरी तरह खत्म कर देना चाहिये। क्योंकि यह सच है कि यह हमें साम्राज्यवादियों से विरासत में मिली है।
अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भारत वर्ष में हिन्दी भाषा की अपेक्षा कहीं अधिक ज्यादा किया जाता है। लेकिन क्यों? भारत वर्ष हिन्दी भाषी राष्ट्र है। उसको हिन्दी के प्रचार व प्रसार पर ध्यान देना चाहिये। वैसे इस विषय में हमारे कुछ बुद्धिजीवियों ने गहन विचार-विमर्श कर हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार व प्रयोग इंटरनेट के माध्यम से करना शुरू कर दिया है। हिन्दी भाषा का प्रयोग वर्तमान में ब्लाग पर खूब किया जा रहा है। कई वेबसाइट भी हैं जो हिन्दी भाषा में हैं। यह एक सार्थक प्रयास है हिन्दी भाषा की प्रगति एवं उत्थान के लिये।
अंग्रेजी के इस बढ़ते प्रचलन के कारण एक साधारण हिन्दी भाषी नागरिक आज यह सोचने पर मजबूर है कि क्या हमारी पवित्र पुस्तकें जो हिन्दी में हैं, वह भी अंग्रेजी में हो जाएंगी। हमारा राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, हमारी पूजा-प्रार्थना सब अंग्रेजी में हो जाएंगे। हम गर्व से कहते हैं कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। लेकिन वर्तमान में जो नई पीढ़ी जन्म ले रही है उसको बचपन से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में शिक्षा ग्रहण के लिये भेज दिया जाता है। वह बचपन से ही अंग्रेजी भाषा को पढ़ता व लिखता है और उसी भाषा को अपनी मुख्य भाषा समझने लगता है। क्योंकि उसको माहौल ही वैसा मिलता है। इसमें उसकी क्या गलती। लेकिन किसी न किसी की गलती तो है ही। इस विषय में हमें विचार करना चाहिये। क्या इस प्रकार के रवैये से हमारी यह उम्मीद कि 'हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलान ' कभी संभव हो पाएगा।

हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति की एक धरोहर है जिसे बचाना भारतवासियों का परमकत्र्तव्य होना चाहिये। वर्तमान में हिन्दी भाषा का प्रयोग न कि भारत में बल्कि भारत के बाहर के कई देशों में भी किया जा रहा है। ध्यान, योग आसन और आयुर्वेद विषयों के साथ-साथ इनसे सम्बन्धित हिन्दी शब्दों का भी विश्व की दूसरी भाषाओं में विलय हो रहा है। भारतीय संगीत चाहे वह शास्त्रीय हो या आधुनिक हस्तकला, भोजन और वस्त्रों की विदेशी मांग जैसी आज है पहले कभी नहीं थी। लगभग हर देश में योग, ध्यान और आयुर्वेद के केन्द्र खुल गए हैं। जो दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं। ऐसी संस्कृति जिसे पाने के लिए हिन्दी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार व इसके प्रयोग को बल देने के लिये कई महापुरुषों ने अपने मत इस प्रकार दिये:-

महात्मा गाँधी : कोई भी देश सच्चे अर्थो में तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।

काका कालेलकर : यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है तो वह जनता की भाषा में ही चलाना होगा।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस : प्रांतीय ईष्र्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।

लालबहादुर शास्त्री : राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिन्दी ही हो सकती है।

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : हिन्दी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। हिन्दी राष्ट्रीयता के मूल को सींचकर दृढ़ करती है।

रेहानी तैयबजी : हम हिन्दुस्तानियों का एक ही सूत्र रहे- हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी हमारी लिपि देवनागरी हो।

महर्षि दयानंद सरस्वती : हिन्दी द्वारा सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय : यदि हिन्दी की उन्नति नहीं होती है तो यह देश का दुर्भाग्य है।

अनन्त गोपाल सेवड़े : राष्ट्र को राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रभाषा की आवश्यकता है और वह स्थान हिन्दी को प्राप्त है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक : राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं। मेरे विचार में हिन्दी ही ऐसी भाषा है।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी : यदि भारतीय लोग कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।

लाला लाजपत राय : राष्ट्रीय मेल और राजनीतिक एकता के लिए सारे देश में हिन्दी और नागरी का प्रचार आवश्यक है।

डॉ. भगवान दास : हिन्दी साहित्य चतुष्पुरुषार्थ धर्म-अर्थ काम-मोक्ष का साधन है और इसीलिए जनोपयोगी भी है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र : निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।

मोरारजी देसाई : हिन्दी को देश में परस्पर संपर्क भाषा बनाने का कोई विकल्प नहीं। अँग्रेजी कभी जनभाषा नहीं बन सकती।

महादेवी वर्मा : हिन्दी प्रेम की भाषा है।

महाकवि शंकर कुरूप : भारत की अखंडता और व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए हिन्दी का प्रचार अत्यन्त आवश्यक है।

हाय ! किस्मत


इस कदर हम पे हुआ था, असर उसके प्यार का
ख़बर ख़ुद की थी हमको, होश था संसार का

उसको देखें तो दिल को चैन मिलता कहीं
रोज ही हम ढूंढते थे बहाना दीदार का

अब कहेंगे, तब कहेंगे सोचते थे हर घड़ी
सका फिर भी हम को हौसला इज़हार का

हमने माना उसको पाना काम ये आसन नही
इम्तेहान देना पड़ेगा हमको दरया पार का

कहने को तो कह भी देते हाले दिल उनसे मगर
डर हमे था सह पाते दर्द हम इनकार का

करके हिम्मत एक दिन चले हम, देर पर इतनी हुई
गैर के हाथों में देखा हाथ उस दिन यार का

कुछ लिखना है कुछ कहना है




कुछ लिखना है कुछ कहना है
पर शब्द नहीं मिल पाते है
कलम हाथ में लेकर भी
हम कुछ भी लिख न पाते है

कुछ जहन में है कुछ दिल में है
फ़िर भी कुछ कह नही पाते है
मिलने की कोशिश करते है
पर उनसे मिल नही पाते है

कुछ सोच लिया कुछ बोल दिया
वो कुछ न समझ पाते है
हम कोशिश करते रहते है
वो किसी और से मिलने जाते है

कुछ ठेस लगी कुछ घाव हुए
पर दवा लगा नही पाते है
ऐसे जख्मो पर तो शायद
हकीम भी काम ना आते है

कुछ मजनू थे कुछ राँझा थे
हम कौन है समझ न पाते है
एकतरफा चाहने वालो को
सब पागल पागल बुलाते है

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