कि पागल हो रही लहरें, समुंदर कसमसाता है
हमारी हर कहानी में, तुम्हारा नाम आता है
ये सबको कैसे समझाएँ कि तुमसे कैसा नाता है
ज़रा सी परवरिश भी चाहिए, हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है
ये मेरे और ग़म के बीच में क़िस्सा है बरसों से
मै उसको आज़माता हूँ, वो मुझको आज़माता है
जिसे चींटी से लेकर चाँद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर, सबक़ मुझको पढ़ाता है
नहीं है बेईमानी गर ये बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर, जाने कहाँ पानी गिराता है
पता अनजान के किरदार का भी पल में चलता है
कि लहजा गुफ्तगू का भेद सारे खोल जाता है
न जाने चाँद पूनम का...........
- राहुल सिंह
जिसे चींटी से लेकर चाँद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर, सबक़ मुझको पढ़ाता है
नहीं है बेईमानी गर ये बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर, जाने कहाँ पानी गिराता है
पता अनजान के किरदार का भी पल में चलता है
कि लहजा गुफ्तगू का भेद सारे खोल जाता है
न जाने चाँद पूनम का...........
- राहुल सिंह
3 टिप्पणियां:
bahut hi sundar rachana ....badhaee
बहुत सुंदर कविता, हर एक शब्द में वज़न है.
मुझे लगता है कविता २ अलग अलग विचारों को बतलाती है.
मुझे लगता है पहला भाग प्यार के लिए, दूसरा कर्तव्यों के लिए है.ऐसी मेरी सोच है. कविता सच में बहुत सुंदर है.
ज़रा सी परवरिश भी चाहिए, हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है
बेहद सम्वेदनशील और यथार्थ रचना
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