कई दशाब्दियों से रेलगाडी यात्रा मेरे लिये जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है. इन यात्राओं के दौरान कई खट्टेमीठे अनुभव हुए हैं, जिनमें मीठे अनुभव बहुत अधिक हैं. इसके साथ साथ कई विचित्र बाते देखने मिलती हैं जिनको देखकर अफसोस होता है कि लोग किस तरह से विरोधाभासों को पहचान नहीं पाते हैं.
उदाहरण के लिये निम्न प्रस्ताव को ले लीजिये:-
बी इंडियन, बाई इंडियन. यह प्रस्ताव अंग्रेजी में या हिन्दी में अकसर दिख जाता है. अब सवाल यह है कि इसे सीधे सीधे भारतीय अनुवाद में क्यों नहीं दे दिया जाता है.
“हिन्दुस्तानी हो, हिन्दुस्तानी बनो” (जो इस अंग्रेजी वाक्य का भावार्थ है) हिन्दी में कहने में हमें तकलीफ क्यों होती है. हिन्दुस्तानियों को हिन्दुस्तानी बनाने के लिये एक विलायती भाषा की जरूरत क्यों पडती हैं?
दूसरी ओर, जब “बी इंडियन, बाई इंडियन” लिखा दिखता है तो कोफ्त होती है कि यह किसके लिये लिखा गया है? अंग्रेजीदां लोग तो इसे पढने से रहे क्योंकि उनकी नजर में तो हिन्दी केवल नौकरों गुलामों की भाषा है. आम हिन्दी भाषी जब इसे पढता है तो उसके लिये इसका भावार्थ समझना आसान नहीं है. उसे लगता है कि यहां खरीद फरोख्त की बात (Buy) हो रही है.
जरा अपने आसापास नजर डालें. कितने विरोधाभास हैं इस तरह के
कम से कम दोचार को सही करने की कोशिश करें!