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ऐ जिंदगी
जी रहे हैं जिंदगी
कि साँसों में तुम हो ......
जब आँखें बंद करते हैं
तो ख़्वाबों में तुम हो ..........
जब बोलते हैं
तो बातों में तुम हो ......
लिखते हैं कुछ तो
हर लफ्ज़ में तुम हो .......
धड़कता हैं दिल
तो हर धड़कन में तुम हो ........
जी रहे हैं अभी तक
क्यों कि जान तुम हो.....
( शशि ,जयपुर )
मेरा दिल कब से भटक रहा है
मौत का खेल .. (६ अगस्त १९४५ नागासाकी)
सोते से वे सब जगे,
उगता आग का गोला देखा..
पर कुछ पलो के लिए.
अचानक गर्मी बढ़ी.
झुलश गए सब चेहरे..
वे चिल्लाये
पर कुछ पलो के लिए..
"लिटिल बॉय" ने कर दिखाया कमाल,
६ अगस्त कि रात को बना दिया शमसान..
लाखो कि चिता जली,
गल गए हड्डी मांस,
कुछ पलो के बाद हो गया सब समाप्त,
बचा सिर्फ एक निशान...
हैवान सिर्फ हैवान....
पल में लाख कॉल के गाल समाये
पर इन अतातइयो को दया नहीं आई.
९ अगस्त कि रात को किया फिर कमाल...
लाख फिर घबराए,चीखे और चिल्लाये,
पर कुछ पलो के लिए,
फिर वे भी बन गए मौत के ग्रास..
हो गयी चारो तरफ शांति...
क्यूकि,
शोर के लिए चाहिए जान....
जो तब हो चुकी थी समाप्त
जो तब हो चुकी थी समाप्त।!!
- ममता अग्रवाल
दिल चाहता है ..................
रोज़ सुबह छुट्टी के बहाने बनाऊ
और असेम्बली में आँखें खोल कर प्रयेर गाऊं....
वोह चुपके चुपके क्लास में टिफिन खोलू
और पकड़े जाने पर पेट -दर्द का झूठ बोलूं ...
दिन भर स्कूल में मस्ती मारूं
और बस में जूनियर्स पर रॉब झाडूं .....
वो हर दिन होमवर्क अधुरा रह जाए
और अगले दिन मेरी कॉपी घर पर रह जाए .....
हर रोज़ दोस्तों से रूठ जाऊं
और ज़िन्दगी भर साथ वाला तुम जैसा
एक साथी बनाऊ ......!!!!!!!
- शशि (शेडो ऑफ़ द मून) जयपुर
न जाने चाँद पूनम का...
कि पागल हो रही लहरें, समुंदर कसमसाता है
हमारी हर कहानी में, तुम्हारा नाम आता है
ये सबको कैसे समझाएँ कि तुमसे कैसा नाता है
ज़रा सी परवरिश भी चाहिए, हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है
ये मेरे और ग़म के बीच में क़िस्सा है बरसों से
जिसे चींटी से लेकर चाँद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर, सबक़ मुझको पढ़ाता है
नहीं है बेईमानी गर ये बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर, जाने कहाँ पानी गिराता है
पता अनजान के किरदार का भी पल में चलता है
कि लहजा गुफ्तगू का भेद सारे खोल जाता है
न जाने चाँद पूनम का...........
- राहुल सिंह
जीने के लिए भी वक़्त नही...
पर एक हँसी के लिए वक़्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िंदगी के लिए ही वक़्त नही.
माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ केहने का वक़्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हे दफ़नाने का भी वक़्त नही.
सारे नाम मोबाईल में हैं
पर दोस्ती के लिए वक़्त नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनो के लिए ही वक़्त नही.
आँखों मे है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नही.
दिल है गमो से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नही.
पैसों की दौड़ मे ऐसे दौड़े,
की आराम का भी वक़्त नही.
पराए एहसासों की क्या क़द्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नही.
तू ही बता ए ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी का क्या होगा,
की हर पल मरनेवालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नही...
-राहुल सिंह
अपनी खुशियां कम लिखना
अपनी खुशियां कम लिखना।
औरों के भी गम लिखना।
हंसते अधरों के पीछे,
कितनी आंखें नम लिखना।
किसका अब विश्वास करें,
झूठी हुई कसम लिखना।
महलों में तो मौजें हैं,
कुटियों के मातम लिखना।
तंत्र-मंत्र में डूबे सब,
लोकतंत्र बेदम लिखना।
नेताओं के पेट बड़े,
सब कुछ करें हजम लिखना।
मतलब हो तो गैरों की,
भरते लोग चिलम लिखना।
अब तक पूज्य बने थे जो,
वे भी हुए अधम लिखना।
भर दे सबके घावों को,
अब ऐसा मरहम लिखना।
- राहुल सिंह
फिर नज़र से ............
दोस्त ... जिसे ढूंढ रही थी ...
अपनी इन पलकों को झपका कर
एक ऐसे साथी को ढूंढ रही थी
जो दिल की हर बात समझ सके
उससे में अपनी हर बात कह सकू
उस पर इतना विश्वास कर सकू
उसको अपना बना सकू
जिसे में जानती नही पहचानती नही
उस स्वप्न की काल्पनिकता को
पलके झपका कर ढूंढ रही हूँ
जब मै उसकी आँखों की तरफ़ देखू
कुआ सा प्यारा लगे वो
बाँट सकू उससे अपने जीवन का हर पहलु
उस दोस्त को जिससे मै कभी मिली भी नही अभी
हर वायदा पूरा करने को हर दूरी मिटा दू
उस ज़िन्दगी में जो इसके रूप में चेतन हो गई है
हर दूरी से दूर जो एक दोस्त मेरा बैठा है
अब वो यहाँ है
मै भी यहाँ हूँ
इस अजनबी दुनिया का करने को आलिंगन
अब ये दुनिया लगती है मुझे सतरंगी
जिसमे है मेरा वो दोस्त अजनबी
हाँ वो तुम्ही हो तुम्ही हो तुम्ही हो
- ममता अग्रवाल
एक मंत्र बस भारत होता
तेरा मेरा कुछ न होता, अब कुछ कितना अच्छा होता।
ये सब होता अपना सबका, कोई फिकर न कोई चिंता
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।
मेरी बोली तेरी भाषा, मेरा प्रान्त तुम्हारा क्षेत्र
मेरा वेश तुमहारी भूषा, मेरा धर्म तुम्हारी जाती
कोई न कहता मेरा तेरा, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।
एक झण्डे के तले खड़े हो, एक राष्ट्र के प्रेम पगे हो
अपनी अपनी बान भुलाकर, आन पर जान लिये चले हो
एक साथ को अपने खुशियाँ, फ़िर कोई दुखी ना होता
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।
समीर में ज्यों गंध घुली हो, नीर क्षीर मिल मित्रता घनी हो
पानी की चंदन से प्रीति, संस्कृतियों की आस मिली हो
अरब दीप मिल बनते भानु, मिलजुल कर सब करना होता
एक मंत्र बस भारत होता, तो फ़िर कितना अच्छा होता।।
आनंद भर के देखिये
सर्जना में कल्पना के छंद भरके देखिये
खिल जाएँगे फिर रेत में संभावना के कमल
अपनी लगन की आप थोंडी गंध भर के देखिए
सारे दुश्मन आपके फिर दोस्त ही बन जाएँगे
प्यार का व्यवहार में मरकंद भर के देखिए
नफरतें इतनी मिलेंगी देश के इतिहास की
आप भूल से ही जयचंद बनके देखिए
सिर्फ घाटे ही मिलेंगे आजकल संबंध में
नए चलन में आप भी अनुबंध बनके देखिए
बहती नदिया कह रही है, जोहड़ों के कान में
आप प्रभु और भक्त का संबंध बनके देखिए।
खुद समंदर आप है, निर्बंध बनके देखिए
बेटा बेटी उम्रभर इज्जत करेगें आपकी
श्रम के आनंद में गुलकंद भरके देखिये
तुम्हारा साथ मिल जाए .................
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....
न्योछावर खवाब करदूंगा तुम्हारे हर इशारे पर ....
कभी पीपल की छावं में कभी नदिया किनारे पर .....
मुझे तुमसे मोहब्बत है मैं लोगों को बताऊंगा ....
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....
मेरी ठंडी सी तन्हाई सुलगती रात जैसी हो .....
मुझे बस साथ ले जाओ भले बरात जैसी हो .....
तुम्हे सुर्ख जोड़े में मैं दुल्हन बना कर लाऊंगा ...
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....
मैं चहुँगा तुम्हें जाना ...उमंगो से उजालो तक
खुदी के चाह से लेकर हमारे सात जन्मों तक
मुझे तुमसे मोहब्बत है में लोगों को बताऊंगा .....
वो कहता था तुम्हें हर सूरत में अपना बनाऊंगा .....
सच का सामना
आया सावन झूम के
क्या करेगा मुझे चूम के
कुछ मेघ ही बर्षा दे
आया सावन झूम के
सावन में सब सुंदर सुंदर
झांक न मेरे मनके अन्दर
घुमड़ घुमड़ आजा अब तो
आया सावन झूम के
अब तो मानसून भी आया
प्यासी है ये मेरी काया
काया की ये प्यास बुझा दे
आया सावन झूम के
थक गए तेरी बात निहारत
इंतज़ार अब नही होता है
रस पावन सा टपका दे
आया सावन झूम के
ये कैसे तेरी लीला है
कहीं गीला कहीं सुखा है
अब तो नीर तो बरसा दे
आया सावन झूम के ......
संपूर्ण दुष्ट्ता संपन्न भीड़तंत्रात्मक नंगा राज
यह विश्वास इसलिए और जमता चला गया कि जिस मंच पर देखो यही सुनते-सुनते हम बड़े हो गए कि ''कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। आज जब सुनने की बजाय देखने की बारी आई है तो जिधर, जिस मंच पर देखो यही, दिखाई दे रहा कि ''कुछ ऐसा करो कि मिट ही जाए हस्ती हमारी। विवाह पूर्व साथ-साथ रहो, समलैंगिकता पर गंभीरता से विचार करो, पबों में नंगी नाचने वालियों के अधिकारों की रक्षा करो, रियलिटी शो के नाम पर यह भी पूछ लो कि क्या आपकी इच्छा कभी किसी गैर के साथ सोने की होती है। यह सब पूरी चिंता के साथ करो। इसमेंं कहीं कोई लापरवाही हो गई तो फिर हम अपनी हस्ती नहीं मिटा पाएंगे।
पूरे देश में इन दिनों 'संपूर्ण दुष्टïता संपन्न भीड़तंत्रात्मक नंगा राज स्थापित होता दिखाई दे रहा है। सत्ता के भूखे, पैसे के भूखे, शरीर के भूखे भेडिय़ों के हाथों समूची व्यवस्था चेरी होती दिखाई दे रही है। इन भेडिय़ों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है और जाहिर है लोकतंत्र बनाम भीड़तंत्र में इस बढ़ती संख्या का मतलब क्या होता है। ताजा उदाहरण है कि आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमले को लेकर भारत सरकार को हरकत में आने में भले ही समय लगा हो, लेकिन समलैंगिकता के समर्थन में एक प्रदर्शन ने सरकार से सहानुभूतिपूर्वक विचार का बयान जारी करवा दिया। सरकार के भीतर इस प्रवृति से किसकी सहानुभूति क्यों है, यह गंभीर विषय है।
इसी कड़ी में मध्यप्रदेश का शहडोल जिला जुड़ गया है, जहां सामाजिक संवेदना के सामने 'होम करते हाथ जलेÓ जैसी स्थिति पैदा कर दी गई है। कथित कौमार्य परीक्षण को लेकर हंगामा सड़क से संसद तक हो रहा है। वैसे तो सरकार की तरफ से स्पष्टï किया जा चुका है कि ऐसा कोई परीक्षण नहीं हुआ है। फिर भी हंगामा मचाने वाले तो मचाएंगे ही। पहले भोपाल में इस बात की जमकर शिकायतें हुईं कि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत सरकारी पैसा लूटने के लिए कई शादीशुदा जोड़े फिर से शादी कर रहे हैं। जांच करने में शिकायत सहीं पाई गईं। तब सरकार ने निर्णय लिया कि इस मामले में सावधानी बरती जाए कि अपात्र लोग इसका दुरूपयोग न कर सकें। ऐसा बताया गया है कि शहडोल जिले में हाल ही में इस योजना के तहत 152 कन्याओं के विवाह की योजना बनी । इस विवाह से पूर्व कुछ डाक्टरों ने पूर्व सावधानी के तौर पर लड़कियों से पूछताछ की तो 14 युवतियों ने गर्भ होना स्वीकार किया और जांच में पाया भी गया। अब इसका क्या कारण होना चाहिए, या तो युवतियां शादीशुदा है या फिर वे शादी से पूर्व शारीरिक संबंधों की समर्थक हैं। अब ऐसे में उन लोगों को जो शहडोल प्रकरण पर हायतौबा कर रहे हैं पहले यह तय कर लेना चाहिए कि वे शादीशुदा की पुन: सरकारी खर्च से शादी कराना चाहते हैं या फिर विवाह पूर्व यौन संबंधों के वकील बनना चाहते हैं।
दलीलें कोई कुछ भी दे सकता है लेकिन विरोध करने वालों में यदि तनिक भी नैतिकता है तो वे अपने आप से पूछें कि इन दोनों में से एक भी परिस्थिति अपनी बहिन बेटी के साथ स्वीकार करेंगे क्या? मर जाएंगे, जमीन में धंस जाएंगे, जब कभी स्वयं के बारे में ऐसी कल्पना भी कर लेंगे। दूसरों के लिए कहना बहुत आसान है लेकिन क्या कोई चाहेगा कि उसका बेटा और बेटी समलैंगिक शादी करके घर में घुस आंए। छाती फट जाएगी, आसमान टूट पड़ेगा, उस घर के ऊपर।
अकेले में बात करो तो इस अपसंस्कृति पर चिंता करने वालों की कमी नहीं मिलेगी। लेकिन फिर भी आज कथित समाज सेवी संस्थाओं और मानवाधिकार वादियों के हाथों में जिनके समर्थन की तख्तियां दिखाई देंगी, वे होंगी, आतंक से जूझ रही सेना के विरोध में, जेल में सजा काट रहे अपराधियों के समर्थन में, पबों में नाचने वाली लड़कियों की अस्मिता (?) बचाने के लिए, यौन शिक्षा के समर्थन में। न तो कभी ये लोग कश्मीरी शरणार्थियों की बात करेंगे। इन्हें बर्फीली पहाडिय़ों पर लडऩे वाले सैनिक का दर्द कभी दिखाई नहीं देता। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जो स्पष्टï करते हैं कि हमारे देश में कुछ पेशेवर हैं, कुछ गद्दार हैं, जिनका अपना एक सशक्त नैटवर्क है। यह नेटवर्क बड़ी चालाकी से हमारे सामाजिक तानेबाने में और सत्ता के गलियारों में विध्वंस की चिंगारियां छोड़ आता है, फिर दूर से तमाशा देखता है, ठहाके लगाता है। देखो देखो ये हिंदुस्तानी खुद की मर्यादाओं, संस्कृति और पुरा वैभव को कैसे धू-धू कर जला रहे हैं। दोषी कौन है? यह तलाश अब पूरी होनी चाहिए।
-लोकेन्द्र पाराशर, संपादक - दैनिक स्वदेश
!! बिना पुस्तक का विमोचन !!
कुछ भी हो सकता है। आखिर हिंदी राष्ट्रभाषा ऐसे ही तो नहीं है। जो राष्ट्र में हो सकता है, वह राष्ट्रभाषा में भी हो सकता है। अब देखिए न, हमारे देश में रोज़ विकास हो रहा है, पर प्रगति नहीं हो रही। जब बिना प्रगति के विकास हो सकता है, तो बिना पुस्तक के विमोचन क्यों नहीं हो सकता?
तो, विमोचन का कार्यक्रम था, पर पुस्तक कोई नहीं थी। चर्चा करने के लिए मंच पर दस विद्वान विराजमान थे। कोई भी असहज महसूस नहीं कर रहा था। असहज महसूस करने का कोई नैतिक कारण भी नहीं था। बहुत-से हिंदी के विद्वान सर्वज्ञानी होते हैं। वे पुस्तक को बिना पढ़े भी उस पर चर्चा कर सकते हैं। हर विमोचन में करीब आधे विद्वान ऐसे होते हैं जिन्होंने वह पुस्तक नहीं पढ़ी होती। फिर भी वे बड़े अधिकार से अपना वक्तव्य देते हैं। इसलिए, यहां कोई समस्या ही नहीं थी। कोई पुस्तक ही नहीं थी कि बोलने के लिए पढ़नी पड़े।
विद्वान गंभीर मुद्रा में मंच पर बैठे थे। हिंदी विद्वानों की यह खास विशेषता है। विषय कैसा भी हो, उनकी मुद्रा हमेशा गंभीर होती है। उनकी गंभीरता की तुलना सिर्फ देश के नेताओं की गंभीरता से की जा सकती है। जिस तरह नेता देश के प्रति गंभीर रहते हैं, उसी तरह हिंदी के विद्वान भी हिंदी के प्रति गंभीर रहते हैं।
तो, दस विद्वान चर्चा करने के लिए मंच पर बैठे थे। दो वक्ता दूसरे शहर से आए थे। वैसे, वे आए किसी और काम से थे, पर विमोचन की खबर मिली, तो यहां भी आ गए। जैसे नेता कभी कुर्सी नहीं छोड़ता, वैसे ही वक्ता कभी बोलने का मौका नहीं छोड़ता। दूसरे शहर के वक्ताओं के आने से विमोचन का स्तर उठ गया। अब वह स्थानीय नहीं रहा, अखिल भारतीय हो गया।
अगर आपने दो-चार विमोचन देख लिए हैं, तो आप पहले से जान सकते हैं कि कौन सा वक्ता क्या बोलेगा। जैसे कि जो कमिटेड किस्म का वक्ता होता है, उसे इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि किताब कैसी है? वह सिर्फ सरोकार से मतलब रखता है। किताब नीरस हो, पठनीय न हो, एकदम बचकानी हो, लेखक को भाषा-शिल्प की जानकारी न हो, पर सरोकार सही हो तो उसके लिए किताब अच्छी है।
कुछ वक्ता राजनीति के गलियारे से आते हैं। वे हमेशा आगे बढ़ने की बात करते हैं। चाहे किताब का विमोचन हो या पार्टी की सभा, वे हर जगह सबको आगे बढ़ाते रहते हैं - 'हमें आगे बढ़ना है, देश को आगे ले जाना है'। पुस्तक को बिना पढ़े भी वे जानते हैं कि यह पुस्तक देश को आगे ले जाएगी। वैसे, देश को आगे ले जाना कोई मुश्किल काम नहीं है। नेता तो यह काम रोज ही करते हैं।
कुछ वक्ता हर दो वाक्य के बाद बात दोहराते हैं कि शाम को उन्हें वापस जाना है -'मैं आप सबका बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे इस मंच से बोलने का अवसर दिया, पर मैं ज्यादा देर तक रुक नहीं सकता, क्योंकि शाम को मुझे वापस जाना है। लेखक ने बड़ी सुंदर पुस्तक लिखी है, पर मैं अभी इसे पढ़ नहीं पाया हूं, क्योंकि शाम को मुझे वापस जाना है। मैं ज्यादा देर बोल नहीं पाऊंगा, क्योंकि शाम को मुझे वापस जाना है।' और वे सचमुच ज्यादा देर नहीं बोलते। सिर्फ पचास मिनट बोलते हैं। जो आदमी आधे घंटे से कम बोलता है, हिंदी में उसे अज्ञानी समझा जाता है।
एक विमोचन में एक ऐसे विद्वान आए जिन्होंने गीता पढ़ रखी थी। वे कोई और किताब पढ़ना जरूरी नहीं समझते थे। जिस पुस्तक की चर्चा होनी थी, उसे भी नहीं। गीता में भी उन्हें एक श्लोक सबसे ज्यादा पसंद था- 'कर्मण्येवाधिकारस्ते...।' बिना पुस्तक के विमोचन पर यह श्लोक बिल्कुल फि़ट बैठता है। श्लोक लेखक से कहता है- 'हे लेखक, विमोचन कर्म है, वह करो। पुस्तक फल है, उसकी इच्छा मत करो।' वैसे, हिंदी की पुस्तक वह फल है जिसकी इच्छा लेखक के सिवाय कोई नहीं करता!
बायें हाथ कर खेल
अब तक ऐसा माना जाता था कि बचपन से हम जिस हाथ से काम करना प्रारंभ करते हैं, उसी हाथ से काम करने की आदत हमें पड़ जाती है। दुनिया में उल्टे हाथ वाले किन्तु सीधी बुद्धि वाले मात्र तेरह प्रतिशत लोगों की एकरुपता को प्रदर्शित करने के लिए तेरह अगस्त को विश्व लेफ्ट हैंडर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
आज तक कोई भी व्यक्ति यह नहीं जान पाया कि दुनिया में कुल कितने लोग बाएं हाथ से लिखते और कार्य करते है पर कुछ समय पूर्व हुए सवेü के नतीजों से ज्ञात हुआ कि विश्व की कूल जनसँख्या में से तेरह प्रतिशत लोग लेफ्ट हैंडर हैं। इसीलिए अगस्त माह की तेरह तारिख को लेफ्ट हैडर्स डे के रूप में मनाया जाने लगा है।
पूरी दुनिया में बाहें हाथ का खेल निराला है। एक विचित्र संयोग यह भी है कि तेरह अगस्त कुल मिलाकर चार और आठ का घोलमेल है। चार- आठ और तेरह के अंक को अधिकाशतज् अशुभ माना जाता है- कारण पता नहीं।
कोई पूछे कौन हूँ मैं तो ...........
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.. ..............
समलेंगिकता पर भोजपुरी गीत
नर नर संगे, मादा मादा संगे जाई .
हाई कोर्ट देले बाटे अइसन एगो फैसला
गे लो के मन बढल लेस्बियन के हौसला
भइया संगे मूंछ वाली भउजी घरे आई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...
खतम भइल धारा अब तीन सौ सतहत्तर
घूमतारे छूटा अब समलैंगिक सभत्तर
रीना अब बनि जइहें लीना के लुगाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...
पछिमे से मिलल बाटे अइसन इंसपिरेशन
अच्छे भइल बढी ना अब ओतना पोपुलेशन
बोअत रहीं बिया बाकि फूल ना फुलाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...
जानवर से यौनाचार के नियम इक दिन टूटी
आदमी से जानवर के रिस्ता ओह दिन जुटी
फेर जे बिआई , ऊहे देश के चलाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई...
यमराज का इस्तीफा
अगर कोई लुटारे आप से जबरदस्ती आप के ATM से पैसा निकलने को मजबूर करे तो ?
शायरी
ऑसुओ मे जो बह जाए वो क्या जिंदगी,
जिंदगी का फलसफां हि कुछ और है,
जो हर किसी को समझ आए वो क्या जिंदगी ।
सूरज पास न हो, किरने आसपास रहती है,
दोस्त पास हो ना हो, दोस्ती आसपास रहती है,
वैसे ही आप पास हो ना हो लेकिन,
आपकी यादें हमेशा हमारे पास रहती है.
सोचते थे हर मोड पर आप का इंतेज़ार करेंगे..
पर, पर, पर, पर, पर, पर, पर, पर, पर,
कम्भाकत सड़क ही सीधी निकली...
हम ने माँगा था साथ उनका,
वो जुदाई का गम दे गए,
हम यादो के सहारे जी लेते,
वो भुल जाने की कसम दे गए!
आपके दिल में बस्जयेंगे एस एम एस की तरह.,.,
दिल में बजेंगे रिंगटोन की तरह.,.,
दोस्ती कम नहीं होगी बैलेंस की तरह.,.,
सिर्फ आप बीजी ना रहना नेटवोर्क की तरह.....
खिड़की से देखा तो रस्ते पे कोई नहीं था,
खिड़की से देखा तो रस्ते पे कोई नहीं था,
रस्ते पे जा के देखा तो खिड़की पे कोई नहीं था...
आंसुओ को लाया मत करो,
दिल की बात बताया मत करो,
लोग मुठ्ठी मे नमक लिये फिरते है,
अपने जख्म किसी को दिखाया मत करो।
यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?
पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?
सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?
अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?
108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?
इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,
लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.
मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?
कब डूबते हुए सुरज को देखा त, याद है?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?
तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है
जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है?
भैंस चालीसा
महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
मजेदार शायरी
काश दुनिया कंप्यूटर होती
जिसमें डू को अन्डू करते
सुख के लम्हे सेव हो जाते
दुःख के लम्हे डिलीट करते
मर्ज़ी की मनचाही विन्डोज़
जब चाहे हम ओपन करते
मुस्तकबिल के ताने बने
अपनी चाह से ख़ुद ही बनते
ख्वाहिसों की होती फाइल
जिसमें कट और कॉपी करते
जब भी होती वायरस पीडा
दुनिया को रिफोर्मेट करते
खुशियों के रगों को लेकर
फीके लम्हे रंगीन करते
काश ये दुनिया कंप्यूटर होती
तो मज़े मज़े मैं दुनिया जीते
निर्भय जैन
खूबसूरत है .......
खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए,
खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए,
खूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समज जाए,
खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो जाए,
खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से, कहानियाँ,
खूबसूरत है वो आँखे जिनमे किसी के खूबसूरत ख्वाब समा जाए,
खूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए,
खूबसूरत है वो सोच जिस मैं किसी कि सारी ख़ुशी झुप जाए,
खूबसूरत है वो दामन जो दुनिया से किसी के गमो को छुपा जाए,
खूबसूरत है वो किसी के आँखों के आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाए......
कुछ यादें
वो भोला सा बचपन, वो अल्हड़ जवानी,
वो सरसों के फूल, वो गेहूँ की फसलें,
वो पुरखों का घर, वो चिड़ियों की नस्लें,
वो सोने का सूरज, वो चाँदी का चंदा,
वो सावन की मस्ती, वो झूलों का फंदा,
वो चमकते सितारे, वो भटकते से मोर,
वो अखाड़े का दंगल, वो पतंगों की डोर,
वो जाड़े की ठंडक, वो गर्मी की लू,
वो बीमारी का दौर, वो हैज़ा वो फ़्लू,
वो भैंसों का दूध, वो बैलों की घंटी,
वो संकरे से रस्ते, वो पतली पगडंडी,
वो पीपल का पेड़, वो बरगद की छाँव
वो मिट्टी की खुशबू, वो पुरखों का गाँव
माँ का दर्द
चुनावी संग्राम में जनता
इस बार चुनाव का हाल निराला है
प्रचार-प्रसार पर रख कर नज़र
चुनाव आयोग ने सबको धो डाला है
चुनावी माहौल में जुट गए पार्टियों के नेता
फिर चुप क्यों बैठे हमारे अभिनेता
वो भी शुरू हो गए इस चुनावी महा संग्राम में
नेता बन गए तो ठीक नही तो मस्त है अपने काम में
चारो तरफ़ यात्राओं के माहौल में
हाथी, साइकिल, पंजा और कमल का फूल है
प्रचार की सभाओं में भीड़ की धूल है
अपने अपने वादों में नेताओं की होड़ है
नाते रिश्ते छोड़ के अब तो वोटो की दोड़ है
कैसे भी मिल जाए हमें संसद की ये सत्ता
कुछ भी करना पड़ जाए कोई फर्क नही अलबत्ता
हद में रहकर बोल रहे है अबतो सारे नेता
जाने किस गलती पर खा जाए उन्हें आचार संहिता
इन सब में मतदाता का हर हाल बेहाला है
इस बार चुनाव का हाल निराला है
'निर्भय'
तुम्हारे इश्क में
तुम्हारी मांग भरने को सितारे तोडकर लाता!
बहा डाले तुम्हारी याद में आंसू कई गैलन!
अगर तुम फोन न करती तो यहां सैलाब आ जाता!
तुम्हारे नाम की चिट्ठियां तुम्हारे बाप ने खोली!
उसे उर्दू अगर आती तो वो कच्चा चबा जाता!
तुम्हारी बेवफाई से बना हूं टॉप का शायर!
तुम्हारे इश्क में पड़ता तो सीधा आगरा जाता!
नये साल में
दिल का हार यार से
ई. सी. जी. कराकर उसने
भेज दिया बड़े प्यार से
मन्दी के दौर में लोगों का हाल है निराला
अब पीते हैं देशी ठर्रा पहले जाते थे मधुशला
जाओ बीते वर्ष
तुम्हारी बहुत याद तड़पाएगी !
जो भी सपने देख्ो हमने
किए तुम्हीं ने पूरे ।
बहुत प्रयास किए लेकिन
अब तक कुछ रहे अधूरे ।
माना नए वर्ष में ये
सपने पूरे हो जाएँगे ।
और हमारी आशाओं के
नए पंख लग जाएँगे ।
किंतु किसी टूटे सपने की
फिर भी याद सताएगी !
जाओ बीते वर्ष,
तुम्हारी बहुत याद तड़पाएगी !
अगर बिछुड़ते हैं कुछ तो
कुछ नए मीत भी मिलते हैं ।
जिनके साथ बैठकर हम
सुख-दुख की बातें करते हैं ।
माना नए मिले साथी भी
मन को भा ही जाएँगे ।
उनके साथ ख्ोल-पढ़ लेंगे
संग-संग मुस्काएँगे ।
किंतु किसी बिछुड़े साथी की
फिर भी याद रुलाएगी !
जाओ बीते वर्ष,
तुम्हारी बहुत याद तड़पाएगी !
लाइसेंस बनवाऊंगा
नव संवत्सर
आज का दिन हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है,
आज ही के दिन हमारा नव संवत्सर प्रारम्भ होता है,
सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शकों का दमन,
आज के दिन स्वामी दयानंद स्वामीजी ने आर्य समाज की स्थापना की थी !!
नवरात्री स्थापना,
महर्षि गौतम का जन्मदिवस,
संत झुलेलाल का प्रकाश पर्व,
चेती चाँद का त्यौहार,
गुडी पडवा त्यौहार (महराष्ट्र)
उगादी त्यौहार (दक्षिण भारत)
आपको विक्रम संवत 2066 एवं समस्त भारतीय त्योहारों के शुभ अवसर पर शत शत बधाइयाँ.
आदर सहित
१६९ सिन्धी कालोनी,
लश्कर, ग्वालियर - ४७४००१
९४२५४-०१४१९
शिव भक्त की जिद
एक आदमी ने घनघोर तपस्या की और शिवजी को प्रसन्न कर लिया।
शिवजी बोले - बेटा, मैं तुझसे बहुत खुश हूं। कोई वरदान मांग ।
भक्त बोला - प्रभु, मुझे एक गिटार दे दो।गिटार !
कैसा गधा है। शिवजी ने सोचा ।
कोई गिटार के लिए भी तपस्या करता है।
बोले - बेटा, तूने बड़ी तपस्या की है। कुछ बड़ा मांग। चिन्ता मत कर, सब कुछ मिलेगा।
भक्त बोला - नहीं प्रभु, मुझे तो सिर्फ एक गिटार चाहिए बस !
शिवजी समझाने लगे - बेटा, कुछ ढंग का मांग। मेरी रेपुटेशन का तो खयाल कर। गिटार भी कोई मांगने की चीज है भला।
परंतु भक्त भी जिद पर अड़ा हुआ था, बोला - नहीं प्रभु, अगर देना है तो बस गिटार ही दो !
अब शिवजी को गुस्सा आ गया, बोले - गिटार ! गिटार ! गिटार ! अबे अगर गिटार मेरे पास होता तो मैं ये डमरू क्यों बजाता फिरता ............ ......... ......... .....
अल्हड बीकानेरी की रचना
जो बुड्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो । बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो । मेरे भाषण के डंडे से भागेगा भूत गरीबी का । मेरे वकत्तव्य सुनें तो झगडा मिटे मियां और बीबी का । मेरे आश्वासन के टानिक का एक डोज़ मिल जाए अगर, चंदगी राम को करे चित्त पेशेंट पुरानी टी बी का । मरियल सी जनता को मीठे, वादों का जूस पिलाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो । |
पिटाई के असीमित आनंद
एक दिन समाचार पत्र में पढ़ा वे पिटे। शान से पिटे।
कई लोगो के लिए पिटाई जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। यह उनकी सफलता का चोर मार्ग भी है। ऐसे लोगो के लिए पिटना नित्यकर्म के समान होता है। वे निरंतर निर्विकार भाव से पिटते रहते है। जिस प्रकार लहर के थपेडे किनारे की गंदगी को दूर कर देते है उसी प्रकार पिटता हुआ व्यक्ति अपनी मनोविकृतियो से शीघ्र मुक्त हो जाता है।
पिटना अद्भुद कला है। इसमें लालित्य के साथ मधुरता घुली मिली होती है। पिटने पर असीमित आनंद की प्राप्ति हेाती है। पिटार्थी (पिटने वाले) को लक्ष्य प्राप्त करने में देरी नहीं लगती। पिटाई भी कई तरह की होती है। एक पिटाई वह है जिसमे किसी पतिवृता को छेड़ दिया और जूते खा लिए। चोरी या जेबकतरी करते हुए पकडे़ गये और बडी बेरहमी से पीटे गये। ट्रेन में बेटिकट पकडे गये और तबियत से धुने गये। इस तरह के पिटने वाले समाज में कोढ़ के समान होते है। दुनियां उन पर थूकती है। चोरी करते, जेबकतरी करते या किसी युवती को छेड़ते पकडे जाने में ग्लानि, निराशा तथा असफलता छिपी होती है। वह पिटाई (जिसका मै समर्थक हूं) उसमें आनंद, श्रद्धा और सम्मान है। पिटने पिटने में फर्क है। जब जी में आये तबियत से पिटे और आनंददायक, सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करें। पिटता हुआ व्यक्ति अपने अनुकूल मार्ग स्वयं खोज लेता है। उच्च श्रेणी के पिटने वाले योजनाद्ध तरीके से पिटते है। इसके लिए उन्हें विशेष प्रयास करने पड़ते है। अन्यथा पिटने का सौभाग्य विरलो को ही प्राप्त होता है।
संत कबीर कहते है कि:- लाठी में गुण बहुत है सदा राखिये संग ---- । प्रत्येक बुद्धिजीवी जो स्वंय को छोड़कर दुनियां के बारे में दिनरात चिन्तन कर पगलाता रहता है। उसे एक अच्छी तेल पिलाई हुई लाठी अपने पास रखना चाहिए। ज्येांही कोई पिटाई लायक विचार सूझे तुरंत अपने आप को दो चार लाठी जड़ ले। वह इससे तुरंत अपने अनुकूल परिणाम प्राप्त सकता है। संत कबीर ने लाठी रखने का सुझाव दिया है। किसी और पर प्रहार करने की सलाह तो उन्होने भूलकर भी नही दी है। यदि लाठी का उपयोग दूसरों पर किया गया तो आप पीटने वाले हो गये। इस स्थिति में आपका पतन सुनिश्चित है।
राजनीति, धर्म, समाजसेवा एवं अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ऐसे कितने ही लोग है जो पिट कर ही उच्च स्थानों पर आसीन है। यदि वे न पिटे होते तो सड़क पर धक्के खा रहे होते। पिटते समय दुखी रहने वाले मन ही मन प्रसन्न होते होगे कि चलो अच्छा हुआ समय रहते पिट लिए। यदि न पिटते तो शिखर पर कैसे पहुचते। अब्राहिम लिकन जीवन भर पिटते रहे। थपेडे खाते रहे। अंत में सफल हुए। अमेरिका के राष्ट्रपति बने।उन्हें साधारण वकील से राष्ट्रपति जैसा महत्वपूर्ण पद पिटने पर ही प्राप्त हुआ। अतः पिटाई वह कला है जो राष्ट्रनायक बना सकती है। वांछित लक्ष्य तक पहुचा सकती है। सभी मनोकामनाएं समय रहते पूरी कर सकती है।
किसी विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय को छात्रो ने उनके कक्ष में जाकर पीटा। छात्र उन्हे पीट पाट कर भाग गये। कुलपति महोदय ने उन छात्रो की रिपोर्ट करना भी आवश्यक नही समझा। वे रातो रात मीडिया की आंखो का तारा बन गये। छात्रों को क्या मिला? अपयश, बदनामी तथा अंधकारपूर्ण जीवन। दूसरी ओर कुलपति महोदय राज्यपाल बनाकर किसी अन्य राज्य मे पदस्थ कर दिये गये। उन्होने मन ही मन सोचा होगा कि पीटने वालो, उल्लू के पटठो, मैं तो चला राज्यपाल बनकर। तुम लटकते रहो सिटी बसो में, खाते रहो
धक्के जीवन भर। अतः कहा जा सकता है कि पिटना और सफल होना समानुपातिक क्रिया है। जो जितना ज्यादा पिटता है वह उतना ही सफल हो जाता है।
एक देहाती कहावत है “गुरूजी मारे धम्म धम्म विद्या आवै छम्म छम्म”। जिन्होने बचपन में गुरूजी के लात घूसों का स्वाद लिया था वे आज सम्मानजनक पदों पर है। जिस व्यक्ति की बचपन में, स्कूलों में, जितनी अधिक पिटाई हुई वह उतना ही निखरता गया। दूसरी ओर जो बचपन में ऐनकेन प्रकारेण पिटाई से बचते रहे क्या हुआ उनका? कोई नाम लेने वाला भी नहीं है। गूलर के फूल के समान जीवन यापन कर रहे ऐसे लोगो के पास कोई फटकना भी नही चाहता।
पीटने वालो को आम जनता जल्दी भूल जाती है। लेकिन जो पिटता है वह जीवन भर याद रहता है।
जैसे चुनाव में हारा हुआ नेता तथा उसकी मुख मुद्रा हमेशा याद रहती हैं। आम जनता को आश्वासनों वायदों तथा नारों से पीटने वाला कितने दिन याद रह पाता है? अगली वार वह धूल चाटता हुआ दिखाई देता है। अतः पीटने वाला क्षणभंगुर है। पिटने वाला नश्वर। पीटने वाला पीटते ही मर जाता है। उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। दूसरी ओर पिटने वाला अमर हो जाता है। दुनियां उसे हर रूप में याद रखना चाहती है।
संस्कृत में श्लोक है -
विद्या ददाति विनयं विनयादृयाति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्रोति धनाद् धर्मम्ततः सुखम।।
विद्या से विनयशीलता लपकती हुई आती है। विनय से व्यक्ति हर प्रकार से योग्य बन जाता है। योग्यता आते ही धन कमाने युक्तियां सूझने लगती है। जिसके पास अनापशनाप धन है वही धर्म कर्म कर सकता है। यदि जाने अनजाने में भी धर्म कर्म किया है तो सुख मिलना सुनिश्चित है। श्लोक के प्रारंभ में विद्या को महत्व दिया गया है। विद्या ही वह कारक है जो विनयशीलता, पात्रता, धन, धर्म तथा सुख का कारण बनती है। लेकिन विद्या किस प्रकार आती है? विद्या बचपन में गुरूजी के हाथों पिटने से आती है। अतः पिटना ही वह कारक हे जिसके बिना सब कुछ असंभव है। जो जीवन मे कभी पिटा नही वह विनम्र्र कैसे हो सकता है?
गांधीजी अफ्रीका में पिटे। भारत में स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो के हाथ कई बार अपमानित किये गये। अंत मे देश को आजाद कराने मे सफल हुए। अनेकों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंगे्रजो की मार खाई। वे सफल रहे। क्या स्वतंत्र भारत की कल्पना उन रणबांकुरो की पिटाई के बिना संभव थी? दूसरी ओर उनका कोई नाम लेने वाला भी नही बचा जिन्होने पीटने वालो (अंग्रेजों) का साथ दिया। पिटने वाले, संघर्ष करने वाले, सर्वत्र नियौछावर कर देने वाले शहीद कहलाये। जिन्होंने पीटने वालो का साथ दिया वे क्षण मात्र के लिए कुकरमुत्ते के समान उदित हुए। फिर हमेशा के लिए नष्ट हो गये।
पिटना हमेशा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। यह स्फूर्ती देता है। इससे वलबीर्य की वृद्धि होती है। पिटने वाले के विकार शरीर से बाहर आ जाते हैं। त्वचा कंचन हो जाती है। पिटना धैर्य मांगता है। यह समय लेता है। इसमें कुछ समय के लिए कष्ट के साथ साथ मानसिक आघात भी सहना पड़ते हैं। पिटने वाले को तत्काल तो पिटाई का स्वाद कडवी कुनैन के समान लगता है। भोजन से अरूचि हो जाती है। लेकिन पिटाई के दीर्घ कालीन फायदों का तो कहना ही क्या? पिटने वाला अच्छा समय आते ही पीटने वालों पर भारी पड़ जाता है। वह स्वच्छ रात्रि में नक्षत्र बनकर चमकता है। धूमकेतु के समान अपनी आभा चारो ओर बिखेरता रहता है।
इसलिए प्रिय पाठको पिटना सीखो। जमकर पिटना सीखो, हॅसकर हॅसकर पिटना सीखो। जितना
अधिक पिटोगे उतनी ही अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करोगे। अपने आप को सर्वोच्च शिखर पर स्थापित कर सकोगे।
सासू स्तोत्र
दोहाः मेरे पति की मात हे सदा करव कल्याण..
तुम्हरी सेवा में न कमी रहू हरदम रखूं ध्यान//
जय जय जय सासू महरानी हरदम बोलो मीठी वाणी.
तुम्हरी हरदम करवय सेवा फल पकवान खिलाउब मेवा//
हम पर ज्यादा करो न रोष हम तुमका देवय न दोष.
तुम्हरी बेटी जैसी लागी तुम्हारी सेवा म हम जागी//
रूखा-सूखा मिल के खाबय करय सिकायत कहू न जावय
पति देव खुश रहे हमेशा उनके तन न रहे क्लेशा.
इतना वादा कय लिया माई फिर केथऊ कय चिंता नाही//
जीवन अपना चम-चम चमके फूल हमरे आंगन म गमके.
जैसी करनी वैसी भरनी तुम जानत हो मेरी जननी//
संस्कार कय रूप अनोखा कभौ न होय हमसे धोखा.
हसी खुशी जिनगी बीत जाये सुख दुख तो हरदम आये//
दोहाः रोग दोष न लगे ई तन मा.जाता रहे कलेश
सासू मॉ की सेवा जो करे खुशी रहे महेश..
बोलो सासू माता की जै,,
वीरेन्द्र जैन की व्यंग्य कविता
जय हो!
जय हो, जय हो, जय हो, जय हो, जय हो जय हो
लूट मार के बाद सभी का अपना हिस्सा तय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो
दल बदलू वोटों की जय हो
संसद में नोटों की जय हो
लोकतंत्र की इस चौपड़ में
अमरीकी गोटों की जय हो
सीनाजोरी करता फिरता हर दलाल निर्भय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो
सच पर प्रतिबंधों की जय हो
जाँचों के अन्धों की जय हो
लोकतंत्र के नाम चल रहे
सब काले धंधों की जय हो
मतलब तो सीधा सपाट पर पेंचदार आशय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो
पंजों की कमलों की जय हो
कांटों के गमलों की जय हो
कन्याओं पर राम नाम की
सेना के हमलों की जय हो
गूंगी जनता बहरा शासन अंधा न्यायालय हो
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो
खुश रहो
जिंदगी है चोटी , हर पल में खुश रहो ...
ऑफिस में खुश रहो
घर में खुश रहो
आज पनीर नही है ,
दाल में ही खुश रहो
आज जिम जाने का समय नही
दो कदम चल के ही खुश रहो
आज दोस्तों का साथ नही
टीवी देख के ही खुश रहो
घर जा नही सकते तो फ़ोन कर के ही खुश रहो
आज कोई नाराज़ है , उसके इस अंदाज़ में भी खुश रहो ....
जिसे देख नही सकते उसकी आवाज़ में ही खुश रहो ...
जिसे पा नही सकते उसकी याद में ही खुश रहो
लैपटॉप न मिला तो क्या
डेस्कटॉप में ही खुश रहो
बिता हुआ कल जा चुका है , उससे मीठी यादें है , उनमे ही खुश रहो ...
आने वाले पल का पता नही ... सपनो में ही खुश रहो
हस्ते हस्ते ये पल बीतेंगे , आज में ही खुश रहो
जिंदगी है चोटी , हर पल में खुश रहो
हलवाई ने कविता लिखी
तुम्हारे रूप की चाशनी में
मन को डुबोया है
माखन सा शरीर
मलाई सा रंग है
मन "खोया खोया" है
गुलाबजामुन सी लग रही हो
जैसे रस मैं डुबोया है
मन "खोया खोया" है
मन "खोया खोया" है
तीन सयाने
एक पुलिस ऑफिसर तीन 'सयानों' से बात कर रहा था जो कि 'जासूसी' का प्रशिक्षण ले रहे थे। व्यक्ति विशेष को पहचानने के उनके कौशल कै परीक्षा लेने के लिए उसने पहले 'सयाने' को एक तस्वीर 5 सेकण्ड तक दिखायी और फिर उसे हटा लिया। "ये संदेहास्पद व्यक्ति है। आप इसे कैसे पहचानेंगे।"
पहले ने जवाब दिया "ये तो आसान है। हम उसे पकड़ लेंगे क्योंकि उसकी केवल एक आंख है।"
पुलिस ऑफिसर ने कहा "अरे वो तो ऐसा इसलिए दिख रहा है क्योंकि तस्वीर इस ढंग से ली गयी है।"
इस ऊटपटांग जवाब से थोड़ा निराश और गु.स्से में आकर उसने वो तस्वीर 5 सेकण्ड दूसरे 'सयाने' को दिखायी और फिर पूछा "ये आपका सन्देहास्पद व्यक्ति है। आप इसे कैसे पहचानोगे।"
दूसरे सयाने ने हंसते हुए कहा "इसे पकड़ना तो बहुत ही आसान है क्योंकि इसका केवल एक ही कान है।"
पुलिस ऑफिसर ने ग़ुस्से में आकर कहा "तुम दोनों के साथ दिक्कत क्या है। ठीक है इस इस तस्वीर में केवल एक कान और एक आंख दिख रही है मगर ऐसा इसलिए है क्योंकि ये तस्वीर बगल से खींची गयी है। क्या यही तुम्हारी सोच है।"
बेहद हताश से पुलिस ऑफिसर ने तीसरे 'सयाने' को तस्वीर दिखायी और अपने को शांत बनाये रखते हुए पूछा "यह तुम्हारा अपराधी है। तुम इसे कैसे पहचानोगे।"
और उसने तुरंत जोड़ा "बेवकूफाना जवाब देने से पहले अच्छी तरह सोचो।"
तीसरे सयाने ने एक क्षण के लिए तस्वीर को देखा और कहा "हूं . . . . . अपराधी कॉन्टेक्ट लेन्स पहनता है।"
पुलिस ऑफिसर स्तब्ध और विस्मित सा हो गया क्योंकि उसे खुद पता नहीं था कि वो कॉन्टेक्ट लेन्स पहने है या नहीं। "ये एक अच्छा जवाब है . . . . । कुछ देर यहीं रूकना तब तक मैं इसकी फाइल की जांच करके मालूम करता हूं। वह अपने ऑफिस गया और कम्प्यूटर पर उस व्यक्ति की फाइल देखी और एक बड़ी सी मुस्कान लिए वापस आया। "वाह। मैं तो विश्वास न्हीं कर पा रहा हूं। यह सही है। अपराधी वास्तव में कॉन्टेक्ट लेन्स पहनता है। बहुत अच्छे। इतना अच्छे निष्कर्ष का तुमने कैसे अनुमान लगाया।"
'ये तो बहुत आसान है।' सयाने ने जवाब दिया। 'वो सामान्य लोगों की तरह चश्मा तो पहन नहीं सकता क्योंकि उसकी केवल एक आंख है और एक कान।"
हुल्लड मुरादाबादी की रचना
अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है
कब्र में है पांव पर
फिर भी पहलवान हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ
सोयी है तक़दीर ही जब पीकर के भांग
मंहगाई की मार से टूट गयी है टांग
तुझे फोन अब नहीं करूंगा
पी सी ओ से हांगकांग
मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग
तू पहले ही है पिटा हुआ ऊपर से दिल नाशाद न कर
जो गयी जमानत जाने दे वह जेल के दिन अब याद न कर
तू रात फोन पर डेढ़ बजे विस्की रम की फरियाद न कर
तेरी लुटिया तो डूब चुकी ऐ इश्क मुझे बरबाद न कर
इक चपरासी को साहब ने कुछ ख़ास तरह से फटकारा
औकात न भूलो तुम अपनी यह कह कर चांटा दे मारा
वह बोला कस्टम वालों की जब रेड पड़ेगी तेरे घर
सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा
राहत इंदौरी की रचना
दुश्मनों की भी राए ली जाए
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में
अब कहां जा के सांस ली जाए
बस इसी सोच में हूं डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए
बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल के भी पी जाए
......................................................
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं
मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं
जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं
.......................................................
चेहरों की धूप आंखों की गहराई ले गया
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया
डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया
हालांकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था
जो शख़्स मुझसे छीन के गोयाई ले गया
इस वक़्त तो मैं घर से निकलने ना पाऊंगा
बस इक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया
झूठे क़सीदे लिखे गए उस की शान में
जो मोतियों से छीन के सच्चाई ले गया
यादों की एक भीड़ में साथ छोड़ कर
क्या जाने वो कहां मेरी तन्हाई ले गया
अब असद तुम्हारे लिए कुछ नहीं रहा
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया
अब तो खुद अपनी सांसे भी लगती हैं बोझ सी
उम्रों का देव सारी तन्हाई ले गया
डॉ कुमार विश्वास की रचना
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है,
मैं तुझसे दूर कैसा हुँ तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है !!!
समुँदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आसुँ प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता ,
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता !!!
मुहब्बत एक एहसानों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूँ हैं
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है !!!
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हँगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पला बैठा तो हँगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे हम किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हँगामा !!!
हिन्दी में लिखिए
बॉलीवुड की पुकार "मैं झुकेगा नहीं साला"
बाहुबली से धीरे धीरे, आई साउथ की रेल रे..... केजीएफ- सुशांत से बिगडा, बॉलीवुड का खेल रे..... ऊपर से कोरोना आया, उसने सबका काम लगाया फिर आया ...
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