`देवालय' अर्थात् जहां भगवानका साक्षात् वास है । दर्शनार्थी देवालयमें इस श्रद्धासे जाते हैं कि, वहां उनकी प्रार्थना भगवानके चरणोंमें अर्पित होती है और उन्हें मन:शांति अनुभव होती है
२. देवालयमें दर्शनकी योग्य पद्धति
२।१ देवालयमें प्रवेशेसे पहले आवश्यक कृतियां
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शरीरपर धारण की हुई चर्मकी वस्तुएं उतार दें ।
देवालयके प्रांगणमें जूते-चप्पल पहनकर न जाएं; उन्हें देवालयक्षेत्रके बाहर ही उतारें । देवालयके प्रांगण अथवा देवालयके बाहर जूते-चप्पल उतारने ही पडें, तो देवताकी दाहिनी ओर उतारें ।
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देवालयमें व्यवस्था हो, तो पैर धो लें । हाथमें जल लेकर `अपवित्र: पवित्रो वा', ऐसा तीन बार बोलते हुए अपने संपूर्ण शरीरपर तीन बार जल छिडकें ।
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किसी देवालयमें प्रवेश करनेसे पूर्व पुरुषोंद्वारा अंगरखा (शर्ट) उतारकर रखनेकी पद्धति हो, तो उस पद्धतिका पालन करें । (यद्यपि यह व्यावहारिक रूपसे उचित न लगे, तब भी देवालयकी सात्त्विकता बनाए रखने हेतु कुछ स्थानोंपर ऐसी पद्धति है ।)
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देवालयमें दर्शन हेतु जाते समय पुरुष भक्तजनोंको टोपी तथा स्त्रीभक्तोंको पल्लूसे अपने सिरको ढकना चाहिए ।
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देवालयके प्रवेशद्वार व गरुडध्वजको नमस्कार करें । प्रांगणसे देवालयके कलशका दर्शन करें एवं कलशको नमस्कार करें ।
२.२ देवालयके प्रांगणसे सभामंडपकी ओर जाना
प्रांगणसे सभामंडपकी ओर जाते समय हाथ नमस्कारकी मुद्रामें हों । (दोनों हाथ अनाहतचक्रके स्थानपर जुडे हुए व शरीरसे कुछ अंतरपर हों ।) भाव ऐसा हो कि, `अपने परमश्रद्धेय श्री गुरुदेव या आराध्य देवतासे प्रत्यक्ष भेंट करने जा रहे हैं' ।
२.३ देवालयकी सीढियां चढना
देवालयकी सीढियां चढते समय दाहिने हाथकी उंगलियोंसे सीढीको स्पर्श कर हाथ अपने आज्ञाचक्रपर रखें ।
२.४ सभामंडपमें प्रवेश करना
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सभामंडपमें प्रवेश करनेसे पूर्व सर्वप्रथम सभामंडपके द्वारको दूरसे नमस्कार करें ।
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सभामंडपकी सीढियां चढते समय दाहिने हाथकी उंगलियोंसे सीढीको स्पर्श कर हाथ आज्ञाचक्रपर रखें ।
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सभामंडपमें पदार्पण करते समय प्रार्थना करें, `हे प्रभु, आपकी मूर्तिसे प्रक्षेपित चैतन्यका मुझे अधिकाधिक लाभ होने दें' ।
२.५ सभामंडपसे गर्भगृहकी ओर जानेकी पद्धति
सभामंडपकी बाईं ओरसे चलते हुए गर्भगृहतक जाएं । (देवताके दर्शनके उपरांत लौटते समय सभामंडपकी दाहिनी ओरसे आएं ।)
२.६ देवता-दर्शनसे पूर्व आवश्यक कृति
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जहांतक संभव हो घंटानाद न करें । यदि नाद करना ही हो तो, अति मंदस्वर में ऐसे भावसे करें मानो `घंटानादसे अपने आराध्य देवताको जगा रहे हों ।
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शिवालयमें पिंडीके दर्शन करनेसे पूर्व नंदीके दोनों सींगोंको हाथ लगाकर नंदीके दर्शन करें ।
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साधारणत: गर्भगृहमें जानेकी मनाही होती है; परंतु कुछ देवालयोंके गर्भगृहमें प्रवेशकी सुविधा है । ऐसेमें गर्भगृहके प्रवेशद्वारपर श्री गणपति हों, तो उन्हें नमस्कार करनेके उपरांत ही गर्भगृहमें प्रवेश करें।
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देवताके दर्शन करते समय, देवताकी मूर्ति व उनके सामने प्रतिष्ठित कच्छपकी प्रतिमाके बीच तथा शिवालयमें पिंडी व उसके सामने प्रतिष्ठित नंदीकी प्रतिमाके बीच खडे न रहें और न ही बैठें । कच्छप अथवा नंदीकी प्रतिमा तथा देवताकी मूर्ति अथवा पिंडीको जोडनेवाली रेखाकी एक ओर खडे रहें ।
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देवताके दर्शन करते समय पहले चरणमें देवताके चरणोंपर दृष्टि टिकाए, नतमस्तक होकर प्रार्थना करें । दूसरे चरणमें देवताके वक्षपर, अर्थात् अनाहतचक्रपर मन एकाग्र कर देवताको आर्त्तभावसे पुकारें । दर्शनके तीसरे अर्थात् अंतिम चरणमें देवताके नेत्रोंकी ओर देखें व उनके रूपको अपने नेत्रोंमें बसाएं ।
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नमस्कार करते समय पुरुष सिर न ढकें (सिरसे टोपी हटाएं); परंतु स्त्रियां सिर ढकें ।
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देवताको जो वस्तु अर्पित करनी हो, वह देवताके ऊपर न डालें; अपितु उनके चरणोंमें अर्पित करें । यदि मूर्ति दूर हो, तो `मूर्तिके चरणोंमें अर्पित कर रहे हैं', ऐसा भाव रखकर उसे देवताके सामने रखी थालीमें रखें।
४. देवताकी परिक्रमा लगाना
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परिक्रमा आरंभ करनेसे पूर्व गर्भगृहके बाह्य भागमें बाईं ओर खडे रहें । (परिक्रमा पूर्ण करनेपर दाहिनी ओर खडे होकर देवताके दर्शन करें ।)
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देवताकी परिक्रमा करनेसे पहले देवतासे प्रार्थना करें, `हे ..... (देवताका नाम) परिक्रमामें प्रत्येक पगके साथ आपकी कृपासे मेरे पूर्वजन्मोंके पापोंका शमन हो व आपसे प्रक्षेपित चैतन्यको मैं अधिकाधिक ग्रहण कर सकूं ।'
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परिक्रमा मध्यम गतिसे एवं नामजप करते हुए लगाएं ।
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परिक्रमाके दौरान गर्भगृहको बाहरसे स्पर्श न करें । देवताकी मूर्तिके पीछे रुककर नमस्कार करें ।
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साधारणत: देवताओंकी परिक्रमा सम संख्यामें (उदा. २, ४, ६) एवं देवीकी परिक्रमा विषम संख्यामें (उदा. १, ३, ५) करनी चाहिए । यदि अधिक परिक्रमाएं करनी हों, तो न्यूनतम परिक्रमाकी गुणाकार संख्यामें करें (उदा. न्यूनतम संख्या २ है, तो ४, ६, ८, १० परिक्रमाएं कर सकते हैं) ।
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प्रत्येक परिक्रमाके उपरांत देवताको नमन करके ही अगली परिक्रमा लगाएं ।
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परिक्रमा पूर्ण होनेपर शरणागतभावसे देवताको नमस्कार करें व तदुपरांत मानसप्रार्थना करें ।
५. तीर्थ व प्रसाद ग्रहण करना
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परिक्रमाके उपरांत दाहिने हाथसे तीर्थ प्राशन कर, वही हाथ आंखों, ब्रह्मरंध्र, मस्तक व गर्दनपर लगाएं ।
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प्रसादको दाहिने हाथमें लेते हुए नम्रतासे झुकें ।
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देवालयमें ही बैठकर कुछ समय नामजप करें व तदुपरांत प्रसाद ग्रहण करें ।
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खडे होकर देवताको मानस नमस्कार करें ।
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स्वच्छ वस्त्रमें लपेटकर प्रसाद घर ले जाएं ।
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