गजल

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आप लोगों की दी हुई,
मोहब्बत पर इठलाता हूँ।
मैं इतने दिलों में रहता हूँ,
कि घर का पता भूल जाता हूँ।।

नहीं हुनर किसी में मेरे जैसा,
मैं लोगों को ऊंगलियों पर नचाता हूँ।।

कुछ लोग मुझे फरिश्ता कहते हैं,
मैं नफरत के स्कूलों में मोहब्बत पढ़ाता हूँ।।

खुशियों के बाजार में मेरी भी दुकान सजी है,
मैं आवाज लगा-लगाकर सौदागरों को बुलाता हूँ।।

नहीं यकीं तो तू भी मुझसे मिलकर देख,
देख किस तरह मैं तुझे अपना बनाता हूँ।।

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