आप लोगों की दी हुई,
मोहब्बत पर इठलाता हूँ।
मैं इतने दिलों में रहता हूँ,
कि घर का पता भूल जाता हूँ।।
नहीं हुनर किसी में मेरे जैसा,
मैं लोगों को ऊंगलियों पर नचाता हूँ।।
कुछ लोग मुझे फरिश्ता कहते हैं,
मैं नफरत के स्कूलों में मोहब्बत पढ़ाता हूँ।।
खुशियों के बाजार में मेरी भी दुकान सजी है,
मैं आवाज लगा-लगाकर सौदागरों को बुलाता हूँ।।
नहीं यकीं तो तू भी मुझसे मिलकर देख,
देख किस तरह मैं तुझे अपना बनाता हूँ।।
3 टिप्पणियां:
वाह!! बहुत बढिया रचना है। बधाई।
बहुत ही प्यारे भाव हैं, बधाई।
--------------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
बहुत अच्छी ग़ज़ल...वाह...
नीरज
एक टिप्पणी भेजें