श्री सम्मेदशिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में कविता।
आभार आपका मोदी जी
क्या अच्छे दिन दिखलाये हैं!
जिसको निज मुल्क समझते थे
उसमें ही आज पराये हैं!
है धन्यवाद श्री अमित शाह
क्या मौन आपने साधा है
बे-इज्ज़त अपने होने दो
लगता है यही इरादा है।
है बड़ा शुक्रिया अख़बारों
आभार मीडिया वालों का
यह मुद्दा कोई मुद्दा है?
स्वागत है सिर्फ़ मसालों का।
हम इसीलिये अपमानित हैं
हम सीधी रेखा वाले हैं?
उनको गिनती में क्या लेना
जो लोग अहिँसा वाले हैं?
तो उतर आयें हम हिंसा पर?
तब ही सुनवाई होगी क्या?
कर दें बवाल यह चमन लाल?
तब बात हमारी होगी क्या?
इस लोकतंत्र के शासन में
क्या यही देखना बाकी है?
क्या यही आपकी नीती है
क्या यही नई परिपाटी है?
हम जैन धर्म के लोगों की
गिरवी धड़कन धड़कन कर दी?
श्रद्धा के उन्नत स्थल पर
अब पहल पर्यटन की कर दी?
अनगिनत महा मुनिराजों ने
जिस धरा से पाई शिवनगरी
जिस पुण्य शिखर से मोक्ष गये
जैनों के बीस जिनेश्वर जी।
सम्मेदशिखर के उस ध्वज पर
वाज़िब है सैर सपाटा क्या?
ग़र रँग - रेलियाँ होने दें!
कर लोगे पूरा घाटा क्या?
कवि अमित जैन मौलिक पूछे
कितना राजस्व कमा लोगे?
*यह ज़िद छोड़ो बोलो हमसे*
*पीछे हटने का क्या लोगे?*
सिंहासन वालो सावधान!!
मत पीना ज़हर भरा प्याला
हम महावीर के वंशज हैं
है रक्त वही हिम्मतवाला।
हमको हल्के में मत लेना
हम ईंट से ईंट हिला देंगे
जो वार करेगा सीने पर
मिट्टी में उसे मिला देंगे।
तो राज्य केंद्र के हाकिम सब
यह कान खोलकर के सुन लें
तत्क्षण यह नोटिस वापिस लें
या शंखनाद रण का चुन लें।
रचनाकार - कवि रजत जैन मोब. 9811635635
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