ह्रदय योग कर दे ,हमें मीत कर दे
चलो कोई ऐसा ,लिखें गीत, गायें।
सूखी पडी है, नहर नेह रस की
पतित पावनी गीत गंगा बहायें ॥
दृग्वृत पे मन के दिवाकर जी डूबे
उचटते हुए प्रीत बंधन हैं ऊबे ।
कुसुम चाव के ,घाव खाए पड़े हैं
गीत संजीवनी कोई इनको सुनाएँ ॥
ह्रदय योग कर दे ......
चकाचोंध चारों तरफ़ ,फ़िर भी कोई
तिमिर के घटाटोप पे आँख रोई ।
कहींपर निबलता कहीं भूख बिखरी
इन्हे ज्योति के गीत देकर जगाएं ॥
ह्रदय योग कर दे ......
घटाओं को तृप्ति बरस कर ही मिलती
हमीं पड़ गए संचयों में अधिकतम ।
इसी से हुए प्राण बेसुध विकल कृष
गीत अमृत इन्हें आज जी भर पिलायें ॥
ह्रदय योग कर दे ........
5 टिप्पणियां:
बहुत ही सारगर्भित गीत, बड़ा ही अच्छा बन पड़ा है। मेरी बधाई स्वीकारें। ऐसा ही लिखते रहें।
बहुत प्रेरक और सार्गर्भित रचना है बधाई
बहुत सुंदर सोच है आप की
सुन्दर गीत. भाव परिपूर्ण
बहुत-बहुत अच्छी रचना. बधाई.
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अंतिम पढ़ाव पर- हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
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