ये कैसी महोब्बत



ये कैसी महोबत कहां के फसाने
ये पीने पीलाने के सब है बहाने

वो दामन हो उनका सुमसाम सेहरा
बस हम को तो अब है आंसु बहाने

ये किसने मुझे मस्त नजरों से देखा
लगे खुद-बखुद ही कदम लडखडाने

चलो तुम भी गुमनाम अब मयकदे मे
तुम्हे दफ्न करने है कइ गम पुराने

ये कैसी महोबत कहां के फसाने ....

3 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जगजीत सिंह साहब ने कमाल गाया है इस ग़ज़ल को...वाह..
नीरज

ओम आर्य ने कहा…

behatarin rachana.........

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आभार।

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