पंचांग - 30 नवम्बर 2022, बुधवार

आप का दिन मंगलमय हो  

  • सूर्योदय :- 06:48  एवं सूर्यास्त :- 17:23 (ग्वालियर शहर )
  • विक्रम संवत - 2079  शाके 1944  एवं  वीरनिर्वाणसंवत - 2549
  • सूर्य- दक्षिणायन  एवं ऋतु- हेमन्त ऋतु

सूर्योदयकालीन तिथि- नक्षत्र -योग आदि :-

  • मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष तिथि सप्तमी प्रात: 08:58 बजे तक पश्चात अष्टमी तिथि है।
  • नक्षत्र - धनिष्ठा नक्षत्र 07:10 बजे ‌तक पश्चात शतभिषा नक्षत्र है।
  • योग व्याघात तथा वणिज -  करण हैं
  • पंचक:- पंचक चल रही है, भद्रा 08:59 बजे से 20:06 बजे तक, गंडमूल नहीं है।
  • अग्निवास:- पृथ्वी पर
  • दिशाशूल: - उत्तर दिशा में
  • राहूकाल-  12:06बजे से 13:25 बजे तक अशुभ समय।
  • अभिजीत मुहूर्त:- 11:41बजे से 12:24* बजे तक शुभ समय
  • शुभ मुहूर्त :- वाहन, व्यवसाय, अन्नप्रासन, नामकरान
  • पर्व-त्योहार -  दुर्गाष्टमी, नरसी मेहता जयंती
  • सूर्योदय समय ग्रह राशि गत विचार :- सूर्य-वृश्चिक, चन्द्र-कुंभ, मंगल- वृषभ, बुध-वृश्चिक, गुरु-मीन, शुक्र-वृश्चिक, शनि-मकर, राहू-मेष, केतु-तुला, प्लूटो-मकर, नेप्च्यून-कुंभ, यूरेनस-मेष में है।

चोघडिया, दिन 

  • लाभ 06:48 - 08:08 शुभ
  • अमृत 08:08 - 09:27 शुभ
  • काल 09:27 - 10:46 अशुभ
  • शुभ 10:46 - 12:06 शुभ
  • रोग 12:06 - 13:25 अशुभ
  • उद्वेग 13:25 - 14:45 अशुभ
  • चर 14:45 - 16:04 शुभ
  • लाभ 16:04 - 17:24 शुभ

चोघडिया, रात

  • उद्वेग 17:24 - 19:04 अशुभ
  • शुभ 19:04 - 20:45 शुभ
  • अमृत 20:45 - 22:26 शुभ
  • चर 22:26 - 24:06 शुभ




अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें:-

ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन राष्ट्रीय गौरव अवॉर्ड प्राप्त मो.9425187186

बॉलीवुड की पुकार "मैं झुकेगा नहीं साला"

बाहुबली से धीरे धीरे, आई साउथ की रेल रे.....
केजीएफ- सुशांत से बिगडा, बॉलीवुड का खेल रे.....

ऊपर से कोरोना आया, उसने सबका काम लगाया
फिर आया इक तगड़ा बूम, मच गई वेब सिरीज़ धूम

चिपक गए सब इंटरनेट से, भूले सिनेमा हॉल - अख़बार 
लॉकडाउन में बचा रह गया, टीवी-खाना और परिवार 

इस आंधी से बॉलीवुड हारा, बनेगा इसका कौन सहारा
मोदी ने वेक्सीन बनवाया, सबका बिगड़ा काम बनाया

होले होले मध्यम मध्यम, सब हो रहा था वेल एंड गुड
फिल्म जगत को उठाया, अक्षय आलिया ने बन रॉबिनहुड

तभी पुष्पा का अल्लू आया, वॉलीवुड को खूब नचाया
तीन आर ने चक्र चलाकर, साउथ का कब्जा जमावाया


बॉलीवुड भी कहाँ पीछे था, ब्रह्मास्त्र में डाला खूब मसाला 
बहुत हो गया रॉकी, विक्रम और कांतारा 
बोल उठा बॉलीवुड सारा 
      मैं झुकेगा नहीं साला



GLT SEMiNAR

LIONS International District 3233E1

आइए आपका इंतज़ार है 

@ वृंदावन 15-16 Jan 2023 

GLT- Nalanda 
( ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है ) 

भागीदारी ₹ : 2750/- प्रति सदस्य 
अंतिम दिनांक 5 जनवरी 2023 

15 दिसम्बर तक शुल्क जमा करने पार भागीदारी शुल्क मात्र ₹ 1950/- 
वैभवशाली आवास, स्वादिष्ट भोजन, प्रभु दर्शन एवं आकर्षक रासलीला 

बोलो राधे राधे 


 

सिद्धचक्र महामण्डल विधान







 

मैं कौन हूँ मैं कहाँ से आया और कँहा मुझे है जाना



 मैं कौन हूँ मैं कहाँ से आया और कँहा मुझे है जाना 

में कौन हूँ …२ 
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम 
हर कोई मुझको जाने कैसे, क्या मेरी पहचान 
में कौन हूँ …२ 

सारी दुनिया हम तो घूमे, घूमे चारो धाम 
इत उत में तो घूम के आया, कहाँ  है मेरा धाम 
में कौन हूँ …२ 

इस दुनिया में क्यू आया में, क्या है मेरा काम 
में कौन हूँ …२
 मैं कौन हूँ मैं कहाँ से आया और कँहा मुझे है जाना 

चारमुखी रुद्राक्ष

  रोगों के उपचार के लिए चिकित्सा शास्त्र में कई औषधियों का वर्णन मिलता है। इनमें से एक है रुद्राक्ष। रुद्राक्ष वैसे तो भगवान शिव के लिए प्रिय है, लेकिन ये बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि इससे कई रोगों का निदान भी संभव है।

रुद्राक्ष से रोगों का उपचार करने के तरीके हमारे धर्मग्रंथों और चिकित्सा आधारित ग्रंथों में उल्लेखित हैं। उन्हीं में से कुछ उपाय यहां दिए जा रहे हैं। इन्हें आजमाकर आप स्वास्थ्य लाभ ले सकते हैं। हालांकि इसके साथ चिकित्सकीय जांच भी जरूर करवाते रहें।


चारमुखी रुद्राक्ष को दूध में उबालकर सुबह खाली पेट पीने से स्मरण शक्ति तेज होती है।

सोमवार के दिन त्रिशूल के आकार का लॉकेट धारण करने से बुद्धि और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

यदि आपके आमाशय में किसी तरह का विकार हो तो तांबे के किसी पात्र में जल भरकर सिरहाने रखें और उसमें पंचमुखी रुद्राक्ष के पांच दाने डाल दें। सुबह उठकर उस जल को पी लें और अगले दिन पुन: यह करें। जब तक रोग ठीक न हों करते रहें।

रक्तचाप यानी ब्लडप्रेशर की रोगियों को पांचमुखी रुद्राक्ष की माला गले में धारण करना चाहिए। ध्यान रखें यह माला ह्दय के पास तक जानी चाहिए।

किसी भी रोग की औषधि आरंभ करने से पहले उसे पहली बार शिव मंदिर में अर्पित करके भगवान आशुतोष से शीघ्र स्वस्थ्य होने की कामना करें। इससे औषधि रोग का शीघ्र निदान करती है।

अतीत में झांकने की जरूरत



   अंतरराष्ट्रीय स्तर अपनी मेहनत और समर्पण से दुनिया की इस आधी आबादी ने पुरुष प्रधान व्यवस्था में अपनी जो एक हैसियत कायम की है, वह एक मिसाल है। आज और बीते दिनों पर नजर डालें तो यह बिल्कुल साफ हो जाता है कि जहां-जहां और जब-जब भी मौका मिला, महिलाओं ने यह साबित कर दिखाया कि वे किसी से कम नहीं। चाहे फिर वह वैदिक काल की विदुषी गार्गी और मैत्रेयी हों, बुद्ध के शांति संदेशों को विदेशी सरजमीं पर फैलाने वाली संघमित्रा हों, मध्यकाल की रजिया सुल्तान हों या फिर भारत की स्वतंत्रता के लिए वीरता के नए मानदंड गढऩे वाली झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, मैडम कामा, सरोजिनी नायडू, विजयालक्ष्मी पंडित जैसे दर्जनों-सैकड़ों नाम।
    अगर हम आज और निकट अतीत में ही थोड़ा झांकने की फुरसत निकालें तो जुबान पर बरबस इंदिरा गांधी, मार्ग्रेट थैचर, बेमिसाल बेनजीर भुट्टो, शेख हसीना के नाम आ जाते हैं। पीटी उषा, अश्विनी नचप्पा, साइना नेहवाल और सानिया मिर्जा के खेल पर खड़े होकर तालियां पीटते लाखों-करोड़ों लोगों के हुजूम का भी एक अक्स उभर आता है। लेकिन, हर वर्ष आठ मार्च को महिला दिवस पर आसपास नजर घुमाते हैं तो विडंबनाओं से भरी कचोटने और कई सवाल खड़े करने वाली एक अलग तस्वीर भी सामने आती है। इस कड़वे सच को नहीं झुठलाया जा सकता है कि आज महिलाएं जहां एक ओर अपनी योग्यता, पराक्रम और उद्यमशीलता से रोज नए प्रतिमान बना रही हैं, वहीं बहुसंख्यक महिलाएं शोषण, अत्याचार और हिंसा का शिकार हैं। महिलाएं कौतुक और विस्मय का विषय बन गई हैं और उसकी सुघड़ता, कुशलता, प्रखरता एवं योग्यता के बदले उसके रंग-रूप, यौवन, आकार, उभार और ऊंचाई की मानसिकता हावी हो गई है।
    इस कुत्सित मानसिकता का भयावह दुष्परिणाम आज हमारे समने बलात्कार, अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्याएं एवं नारी हिंसा के रूप में है। आप तनिक इन आंकड़ों पर गौर कीजिए, आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और आपको सामाजिक मूढ़ता और प्रशासनिक शिथिलता पर शर्म आएगी और एक मार्मिक चीख निकल आएगी। 2012 के बलात्कार आंकड़ें 2011 के मुकाबले 24 प्रतिशत ज़्यादा हैं। एनसीआरबी के 1953 से लेकर 2011 तक के अपराध के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 1971 के बाद से देश में बलात्कार की घटनाएं 873.3 फीसदी तक बढ़ी हैं। इसके अलावा उन मामलों की फेरहिस्त भी काफी लंबी है जिनकी शिकायत थाने तक पहुंचने ही नहीं या पहुंचने ही नहीं दी गई..! बलात्कार के मामलों में 40 साल में करीब 800 फीसदी तक का इजाफा हैरान करने वाला है। देश की विभिन्न अदालतों में बलात्कार एवं यौन अपराध से जुड़े 24,117 मामले लंबित है जिसमें सबसे अधिक 8215 मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हैं। स्वयं कानून मंत्री ने भी माना है कि 30 सितंबर 2012 तक देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में बलात्कार से जुड़े 23,792 और उच्चतम न्यायालय में 325 मामले लंबित है।
    महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए चीखते इन प्रश्नों से कदम-कदम पर हमारा सामना होता है। लेकिन सामाजिक बेशर्मी और प्रशासनिक शिथिलता के कारण इसके उत्तर लापता हैं। क्या हमें बार-बार बलात्कार की घटना हो जाने के बाद प्रतिवावद और आंदोलन की जरूरत है? 16 दिसंबर 2012 को निर्भया बलात्कार कांड के बाद क्या गुबारों का बारूद नहीं फट पड़ा था? लेकिन, देश और दुनिया को दहलाकर रख देने वाली उस घटना के बाद क्या यौन हिंसा रुक गई? नहीं। हम सभी जानते हैं कि हाल ही में एक वरिष्ठ पत्रकार पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगे और मामला अभी कार्ट में विचाराधीन है।
    यह कोई अकेला आरोप नहीं है। ऐसे कई मामले हैं। गुडग़ांव की एक कंपनी में सुकन्या (बदला हुआ नाम) के साथ दुष्कर्म का मामला भी कोर्ट के विचाराधीन है। 25 अक्टूबर, 2013 को एवन हेविट प्रा. लि. के दो प्रबंध निदेशकों ने अपने गुडग़ांव ऑफिस में सुकन्या (बदला हुआ नाम) के साथ बलात्कार किया। वह इन दरिंदों का शिकार केवल इस कारण से हुई कि वह एक साधारण परिवार की थी और ये दरिंदे उसे नौकरी और करियर की धमकी देते थे। इन लोगों ने ऐसा जाल बुना था कि वह उससे निकल नहीं पा रही थी। खास बात ये कि उसे उसके ही सीनियर पूजा ने उसे नोएडा से गुडग़ांव ऑफिस में शिफ्ट किया था। सुकन्या ने बार बार पूजा से गुजारिश की थी कि वहां और लड़कियों के तबादले किए जाएं ताकि माहौल सुरक्षित रह सके। अंत में लगातार दुष्कर्म से परेशान सुकन्या को नौकरी छोडऩी पड़ी।
    सुकन्या के मामले में खास बात ये थी कि उस कंपनी में कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ के खिलाफ विशाखा दिशा-निर्देश नहीं लगा था जो करना सभी कार्यालयों में कोर्ट ने अनिवार्य कर दिया है। इस दिशा-निर्देश में न केवल कार्य स्थल पर यौन उत्पीडऩ पर रोक के प्रावधान हैं, बल्कि ऐसे मामलों में जांच के भी समुचित प्रवाधान व प्रक्रियाओं के उल्लेख हैं। इस तरह की लापरवाही को कैसे माफ किया जा सकता है। यह कोर्ट के दिशा निर्देश का भी उल्लंघन है। इस मामले को उठाने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील किसलय पांडेय बताते हैं कि दुष्कर्म को रोकने और ऐसे मामलों से निपटने के लिए अनेक कानूनों के बावजूद दिल्ली पुलिस अक्षम साबित होती रही है। यदि पीडि़ता असहाय है तो उसे कभी न्याय नहीं मिल पाएगा।
    बदलते हुए वक्त की आवाज सरकार तक भी पहुंची है। अभी इसी सप्ताह बलात्कार पीडि़तों की मानसिक पीड़ा को समझते हुए सरकार ने इलाज और जांच के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने टू फिंगर टेस्ट पर रोक लगा दी है। नए दिशा-निर्देश के अनुसार इसे अवैज्ञानिक और गैर-कानूनी करार दिया गया है। अस्पतालों से कहा गया है कि वे पीडि़तों की फॉरेंसिक और मेडिकल जांच के लिए अलग से कमरे की व्यवस्था करें।
    अब तक बलात्कार पीडि़तों की जांच केवल पुलिस के कहने पर की जाती थी, लेकिन अब यदि पीडि़त पहले अस्पताल आती है तो एफआईआर के बिना भी डॉक्टरों को उसकी जांच करनी चाहिए। डॉक्टरों से 'रेप' शब्द का इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया है, क्योंकि यह मेडिकल नहीं कानूनी टर्म है। अस्पतालों को रेप केस में मेडिको-लीगल मामलों (एमएलसी) के लिए अलग से कमरा मुहैया कराना होगा और उनके पास गाइड लाइंस में बताए गए आवश्यक उपकरण होना जरूरी है। पीडि़त को वैकल्पिक कपड़े उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए और जांच के वक्त डॉक्टर के अलावा तीसरा व्यक्ति कमरे में नहीं होना चाहिए। यदि डॉक्टर पुरुष है तो एक महिला का होना आवश्यक है।
    कानून भी बने और उपाय भी किए गए। लेकिन फिर भी कुछ सवाल अभी भी जवाब ढूंढ रहे हैं। मसलन, भारत को महिलाओं के लिए सुरक्षित कैसे बनाया जाए? भारतीय महिलाओं को सही मायनों में सशक्त बनाने के लिए उसे पूरी आर्थिक स्वतंत्रता, दैहिक स्वतंत्रता व निर्णय लेने की स्वतंत्रता कब मिलेगी? घरेलू हिंसा के लिए मुख्य रूप से कौन जिम्मेदार है? स्त्री कब तक महज एक देह मानी जाती रहेगी? क्या बदलते दौर में आने वाली पीढ़ी के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान को कैसे बढ़ाया जाए?
    इन सवालों के जवाब में ही महिला सशक्तिकरण का कालजयी नुस्खा छिपा है। आइए हम आज से ही इस महान बदलाव के शुरुआत की शपथ लें। माताएं अपने बेटे और बेटियों की परवरिश में अंतर करना छोड़ दें। घर में पिता-पत्नी और बेटी का, और बेटा-मां और बहन का सम्मान करें। बाहर किसी भी स्त्री को कोई भी पुरुष इंसान की तरह मान कर सम्मान करें। साथ ही स्त्रियां भी स्त्री होने का गलत और बेजा उपयोग न करें। अगर हम अपने घर से ही इसकी शुरुआत करते हैं तो हम बदलेंगे, समाज बदलेगा और युग बदलेगा। तभी उस आधी आबादी को, जिसकी आंखों पर शायरों ने लाजवाब नज्म लिखे और जिसके शौर्य और पराक्रम पर कवियों ने वीर रस की ओजपूर्ण कविताएं लिखीं, उन्हें वो हक मिलेगा जिसकी वो हकदार हैं। अब और वक्त नहीं है हमारे पास। अगर इन लम्हों में हमसे कोई खता हुई तो आने वाली सदियों को भुगतना होगा।

"कठोर मोलभाव"

आज सुबह एक छोटा बालक साईकिल पर ढेर
सारी झाड़ू लेकर बेचने निकला था। मैंने
देखा कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू बेच
रहा था और
बच्चा समझकर लोग उससे उन दस रुपयों में
भी मोलभाव करके, दस रुपए की तीन झाड़ू लेने
पर
आमादा थे मैंने भी उससे दो झाड़ू खरीद लीं,
लेकिन जाते-
जाते
उसे सलाह दे डाली कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू
कहने की बजाय 12 रुपए की दो झाड़ू कहकर
बेचे..
और सिर्फ़ एक घंटे बाद जब मैं वापस वहाँ से
गुज़रा तो उस बालक ने मुझे बुलाकर धन्यवाद
दिया.. क्योंकि अब उसकी झाड़ू"10 रुपए में
दो"बड़े
आराम से बिक
रही थी…।
===============
मित्रों, यह बात काल्पनिक नहीं है…। बल्कि मैं
तो आपसे भी आग्रह करता हूँ
कि दीपावली का समय है, सभी लोग
खरीदारियों में जुटे हैं, ऐसे समय सड़क किनारे
धंधा करने
वाले इन छोटे-
छोटे लोगों से मोलभाव न
करें…। मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने,
खील-
बताशे, झाड़ू, रंगोली (सफ़ेद या रंगीन), रंगीन
पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव
करना??
जब हम टाटा-बिरला-अंबा नी-भारती के
किसी भी उत्पाद में
मोलभाव नहीं करते (कर
ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय चार पैसे
कमाने
की उम्मीद में बैठे
इन रेहड़ी-खोमचे-ठे ले वालों से"कठोर
मोलभाव"
करना एक प्रकार
का अन्याय ही है.

भारत निर्माण


सभी देशवासी
तेल बचाये देश बचायें
भारत का   निर्माण करें।
कर्तव्यों से न भागें
भ्रष्टाचार को त्यागें,
शिष्ट आचरण का आव्हान करें
आओ भारत का निर्माण करें।

गृहस्थ
वक्त आ गया सोचें हम
कितना हो परिवार हमारा
बच्चा अब तो एक ही अच्छा
इतना हो परिवार हमारा

नेता
अब न चलायें जूते चप्पल
अब न दें हम गाली
बहुत कर चुके  गलती अब तक
अब लायें खुशहाली

युवा
कितनी और पिओगे दारू
कितना वक्त बर्बाद करोगे
कब तक लूटोगे तुम अस्मत
कित ने युग तुम सुप्त रहोगे

अब तो जागो मेरे भैया 
अब तो सोचो कुछ हो जाये 
अब हम मिलकर तेल बचायें 
आओ मिलकर देश बचायें।


"माँ ” का क़र्ज़


एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन गया .
पिता के स्वर्गवास के बाद माँ ने
हर तरह का काम करके उसे इस काबिल बना दिया था.

शादी के बाद पत्नी को माँ से शिकायत रहने लगी के
वो उन के स्टेटस मे फिट नहीं है.
लोगों को बताने मे उन्हें संकोच होता है कि
ये अनपढ़ उनकी सास-माँ है...!

बात बढ़ने पर बेटे ने...एक दिन माँ से कहा..

"माँ ”_मै चाहता हूँ कि मै अब इस काबिल हो गयाहूँ कि कोई
भी क़र्ज़ अदा कर सकता हूँ
मै और तुम दोनों सुखी रहें
इसलिए आज तुम मुझ पर किये गए अब तक के सारे
खर्च सूद और व्याज के साथ मिला कर बता दो .
मै वो अदा कर दूंगा...!

फिर हम अलग-अलग सुखी रहेंगे.
माँ ने सोच कर उत्तर दिया...

"बेटा”_हिसाब ज़रा लम्बा है....सोच कर बताना पडेगा मुझे.
थोडा वक्त चाहिए.

बेटे ने कहा माँ कोई ज़ल्दी नहीं है.
दो-चार दिनों मे बता देना.

रात हुई,सब सो गए,
माँ ने एक लोटे मे पानी लिया और बेटे के कमरे मे आई.
बेटा जहाँ सो रहा था उसके एक ओर पानी डाल दिया.
बेटे ने करवट ले ली.
माँ ने दूसरी ओर भी पानी डाल दिया.
बेटे ने जिस ओर भी करवट ली माँ उसी ओर पानी डालती रही.

तब परेशान होकर बेटा उठ कर खीज कर.
बोला कि माँ ये क्या है ?
मेरे पूरे बिस्तर को पानी-पानी क्यूँ कर डाला..?

माँ बोली....

बेटा....तुने मुझसे पूरी ज़िन्दगी का हिसाब बनानें को कहा था.
मै अभी ये हिसाब लगा रही थी कि मैंने कितनी रातें तेरे बचपन मे
तेरे बिस्तर गीला कर देने से जागते हुए काटीं हैं.
ये तो पहली रात है
ओर तू अभी से घबरा गया ..?

मैंने अभी हिसाब तो शुरू
भी नहीं किया है जिसे तू अदा कर पाए...!

माँ कि इस बात ने बेटे के ह्रदय को झगझोड़ के रख दिया.
फिर वो रात उसने सोचने मे ही गुज़ार दी.
उसे ये अहसास हो गया था कि माँ का
क़र्ज़ आजीवन नहीं उतरा जा सकता.

माँ अगर शीतल छाया है.
पिता बरगद है जिसके नीचे बेटा उन्मुक्त भाव से जीवन बिताता है.
माता अगर अपनी संतान के लिए हर दुःख उठाने को तैयार
रहती है.
तो पिता सारे जीवन उन्हें पीता ही रहता है.

हम तो बस उनके किये गए कार्यों को
आगे बढ़ाकर अपने हित मे काम कर रहे हैं.
आखिर हमें भी तो अपने बच्चों से वही चाहिए ना ........!

नहले पे दहला


एक लड़का और एक
लड़की की शादी हुई ...
दोनों बहुत खुश थे!
स्टेज पर फोटो सेशन शुरू हुआ!
दूल्हे ने अपने दोस्तों का परिचय
साथ खड़ी अपनी साली से करवाया
" ये है मेरी साली , आधी घरवाली "
दोस्त ठहाका मारकर हंस दिए !
दुल्हन मुस्कुराई और अपने देवर
का परिचय अपनी सहेलियो से करवाया
" ये हैं मेरे देवर ..आधे
पति परमेश्वर "
ये क्या हुआ ....?
अविश्वसनीय ...अकल्पनीय!
भाई समान देवर के कान सुन्न
हो गए!
पति बेहोश होते होते बचा!
दूल्हे , दूल्हे के दोस्तों ,
रिश्तेदारों सहित सबके चेहरे से
मुस्कान गायब हो गयी!
लक्ष्मन रेखा नाम का एक
गमला अचानक स्टेज से नीचे टपक कर
फूट गया!
स्त्री की मर्यादा नाम की हेलोजन
लाईट भक्क से फ्यूज़ हो गयी!
थोड़ी देर बाद एक एम्बुलेंस
तेज़ी से सड़कों पर
भागती जा रही थी!
जिसमे दो स्ट्रेचर थे!
एक स्ट्रेचर पर भारतीय
संस्कृति कोमा में पड़ी थी ...
शायद उसे अटैक पड़ गया था!
दुसरे स्ट्रेचर पर पुरुषवाद
घायल अवस्था में पड़ा था ...
उसे किसी ने सर पर गहरी चोट
मारी थी!
आसमान में अचानक एक तेज़ आवाज़
गूंजी .... भारत
की सारी स्त्रियाँ एक साथ
ठहाका मारकर हंस पड़ी थीं !
_______________ _______________ ______

ये व्यंग ख़ास पुरुष वर्ग के लिए
है जो खुद तो अश्लील व्यंग
करना पसंद करते हैँ पर
जहाँ महिलाओं कि बात आती हैं
वहां संस्कृति कि दुहाई देते
फिरते हैं 
इसे कहते हैं नहले पे दहला


कन्या भ्रूण समस्या का हल

एक स्त्री एक दिन एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ केपास के गई और बोली,
" डाक्टर मैँ एक गंभीर समस्या मेँ हुँ और मेँ
आपकीमदद चाहती हुँ । मैं गर्भवती हूँ,
आप किसी को बताइयेगा नही मैने एक जान
पहचान के सोनोग्राफी लैब से यह जान लिया है
कि मेरे गर्भ में एक बच्ची है । मै पहले से
एकबेटी की माँ हूँ और मैं किसी भी दशा मे
दो बेटियाँ नहीं चाहती ।"
डाक्टर ने कहा ,"ठीक है, तो मेँ
आपकी क्या सहायता कर सकता हु ?"
तो वो स्त्री बोली," मैँ यह चाहती हू कि इस
गर्भ को गिराने मेँ मेरी मदद करें ।"
डाक्टर अनुभवी और समझदार था।
थोडा सोचा और फिर बोला,"मुझे लगता है कि मेरे
पास एक और सरल रास्ता है जो आपकी मुश्किल
को हल कर देगा।" वो स्त्री बहुत खुश हुई..
डाक्टर आगे बोला, " हम एक काम करते है
आप दो बेटियां नही चाहती ना ?? ?
तो पहली बेटी को मार देते है जिससे आप इस
अजन्मी बच्ची को जन्मदे सके और
आपकी समस्या का हल भी हो जाएगा. वैसे
भी हमको एक बच्ची को मारना है तो पहले
वाली को ही मार देते है ना.?"
तो वो स्त्री तुरंत बोली"ना ना डाक्टर.".!!!
हत्या करनागुनाह है पाप है और वैसे भी मैं
अपनी बेटी को बहुत चाहती हूँ । उसको खरोंच
भी आती है तो दर्द का अहसास मुझे होता है
डाक्टर तुरंत बोला, "पहले
कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नही
उसकी हत्या करो दोनो गुनाह
है पाप हैं ।"
यह बात उस स्त्री को समझ आ गई । वह स्वयं
की सोच पर लज्जित हुई और पश्चाताप करते हुए
घर चली गई ।

क्या आपको समझ मेँ आयी ?
अगर आई हो तो SHARE करके दुसरे
लोगो को भी समझाने मे मदद कीजिये
ना महेरबानी. बडी कृपा होगी ।
हो सकता है आपका ही एक
shareकिसी की सोच बदल दे..
और एक कन्या भ्रूण सुरक्षित, पूर्ण विकसित
होकर इस संसारमें जन्म ले.....

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण

1. सादा जीवन, उच्च विचार:- 

उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

२. दयालु प्रवृत्ति:- 

ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

3. नृत्य-संगीत का शौकीन:- 

'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.

4. अनुशासनप्रिय नायक:- 

जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5. हास्य-रस का प्रेमी:- 

उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा'था.

6. नारी के प्रति सम्मान:- 

बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.

7. भिक्षुक जीवन:- 

उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.

8. सामाजिक कार्य: 

डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना तकलीफ सो ज़ाए.

हे केदारनाथ ! हे भोलेनाथ !




मैंने पूछा
हे केदारनाथ !
भक्तों का
क्यों नहीं
दिया साथ ?
खुद का धाम बचा कर
सबको
कर दिया अनाथ |
वे बोले
मैं सिर्फ मूर्ती
या मंदिर में नहीं
पृथ्वी के कण कण में
बसता हूँ
हर पेड़ हर पत्ती
हर जीव हर जंतु
तुम्हारे
हर किन्तु हर परन्तु में
हर साँस में हर हवा में
हर दर्द में हर दुआ में
में बसा हूँ
तुमने प्रकृति को बहुत छेडा
पेड़ों को काटा पहाड़ों को तोड़ा
मुर्गी के खाए अंडे
कमजोरों को मारे डंडे
खाया पशु पक्षियों का मांस
मेरी हर बार तोड़ी साँस
फिर आ गए मेरे दरबार
मेरा अपमान करके
मेरी मूर्ति का किया सत्कार
हे मूर्ति में भगवान को समेटने वालों
संभल जाओ अधर्म को धर्म कहने वालों
मेरी करते हो हिंसा और फिर पूजा
अहिंसा से बढ़ कर नहीं धर्म दूजा
मेरे नाम पर अधर्म करोगे
तो ऐसा ही होगा
दूसरे जीवों को अनाथ करोगे
मंजर इससे भीषण होगा |

याहू-याहू चिल्लायेंगे.....


फेसबुक सा फेस है तेरा, गूगल सी हैं आँखें
एंटर करके सर्च करूँ तो बस मुझको ही ताकें

रेडिफ जैसे लाल गाल तेरे हॉटमेल से होंठ
बलखा के चलती है जब तू लगे जिगर पे चोट

सुराही दार गर्दन तेरी लगती ज्यों जी-मेल
अपने दिल के इंटरनेट पर पढ़ मेरा ई-मेल

मैंने अपने प्यार का फारम कर दिया है अपलोड
लव का माउस क्लिक कर जानम कर इसे डाउनलोड

हुआ मैं तेरे प्यार में जोगी, तू बन जा मेरी जोगिन
अपने दिल की वेबसाईट पर कर ले मुझको लोगिन

तेरे दिल की हार्डडिस्क में और कोई न आये
करे कोई कोशिश भी तो पासवर्ड इनवैलिड बतलाये

गली मोहल्ले के वायरस जो तुझ पर डोरे डालें
एन्टी वायरस सा मैं बनकर नाकाम कर दूँ सब चालें

अपने मन की मेमोरी में सेव तुझे रखूँगा
तेरी यादों की पैन ड्राइव को दिल के पास रखूँगा

तेरे रूप के मॉनिटर को बुझने कभी न दूँगा
बनके तेरा यू पी एस मैं निर्बाधित पावर दूँगा

भेज रहा हूँ तुम्हें निमंत्रण फेसबुक पर आने का
तोतों को मिलता है जहाँ मौका चोंच लड़ाने का

फेसबुक की ऑनलाईन पर बत्ती हरी जलाएंगे
फेसबुक जो हुआ फेल तो याहू पर पींग बढ़ायेंगे

एक-दूजे के दिल का डाटा आपस में शेयर करायेंगे
फिर हम दोनों दूर के पंछी एक डाल के हो जायेंगे

की-बोर्ड और उँगलियों जैसा होगा हमारा प्यार
बिन तेरे मैं बिना मेरे तू होगी बस बेकार

फिर हम आजाद पंछी शादी के सी पी यू में बन्ध जायेंगे
इस दुनिया से दूर डिजिटल की धरती पे घर बनाएँगे

फिर हम दोनों प्यासे-प्रेमी नजदीक से नजदीकतर आते जायेंगे
जुड़े हुए थे अब तक सॉफ्टवेयर से अब हार्डवेयर से जुड़ जायेंगे

तेरे तन के मदरबोर्ड पर जब हम दोनों के बिट टकराएँगे
बिट से बाइट्स, फिर मेगा बाइट्स फिर गीगा बाइट्स बन जायेंगे

ऐसी आधुनिक तकनीकयुक्त बच्चे जब इस धरती पर आयेंगे
सच कहता हूँ आते ही इस दुनिया में धूम मचाएंगे

डाक्टर और नर्स सभी दांतों तले उंगली दबाएंगेहोगे
हमारे 3G बच्चे और याहू-याहू चिल्लायेंगे... याहू-याहू चिल्लायेंगे...

क्या खोया और क्या पाया


कुत्तो को घुमाना याद रहा और, 
गाय की रोटी भूल गये
पार्लर का रास्ता याद रहा और, 
लम्बी चोटी भूल गये

फ्रीज़ कूलर याद रहा और , 
पानी का मटका भूल गये
रिमोट तो हमको याद रहा और, 
बिजली का खटका भूल गये

बिसलेरी पानी याद रहा और , 
प्याऊ का पानी भूल गये
टीवी सीरिअल याद रहे और, 
घर की कहानी भूल गये

हेल्लो हाय तो याद रही और, 
नम्र प्रणाम भूल गये
हिल स्टेशन याद रहे और, 
चारो धाम भूल गये

अंकल आंटी याद रहे और, 
चाचा मामा भूल गये
बरमूडा तो याद रहा और, 
फुल पजामा भूल गये

दोस्त यार सब याद रहे और, 
सगे भाई को भूल गये
साली का जन्मदिन याद रहा और 
माँ दवाई भूल गये

अब तुम्ही बतलाओ कि तुमने 
क्या खोया और क्या पाया है 
कुछ पुराना  याद  आया या 
नया जमाना रास आया है .. 


अभी अभी मेरे दिल में ये सवाल आया है




अभी अभी मेरे दिल में ये सवाल आया है
ये कैसी जिंदगी जिसमें मौत का साया है
क्या लेकर आये थे हम इस दुनिया में
जो कुछ है पास हमारे यही पर कमाया है
         अभी अभी मेरे दिल में--------

रोज़ी रोटी के चक्कर में दुनियादारी भूल गये
दौलत के लालच में जाने कितनो को सताया है
क्या अपना क्या तेरा है ये हमें मालूम नहीं
अपने को ही हमने सदा सच्चा बताया है
         अभी अभी मेरे दिल में--------

अपने खाने की याद रही औरों को हम भूल गये
जाने किसने जाने कबसे कुछ भी नहीं खाया है
सच्चाई क्या होती है इसकी हमे खबर नहीं
बस यही कहते रहते है ये सब उसकी माया है
         अभी अभी मेरे दिल में--------

रात गयी और बात गयी हो गयी है अब सुबह नयी
गमो की इन बरसातों में भी गीत ख़ुशी का गया है
जड़ छोड़कर चेतन बन जा बरना पाछे पछतायेगा 
मिल जाएगी मिटटी में ये तेरी कंचन काया है
         अभी अभी मेरे दिल में--------

चोरी डाका झूठ फरेब भरने लगा तू अपनी जेब 
अत्याचारी बनकर तुने क्या मानव धर्म निभाया है
मानव जन्म लिया है तो कुछ मानवता भी दिख्लादे 
भूल गया तू इस दुनिया में किसलिए आया है 
         अभी अभी मेरे दिल में--------


मन का मन का मीत





मीत मिला ना मन का 
मन का मिला ना मीत 
छेड़ो राग प्यार का 
गाओ ख़ुशी के गीत 


किसी मोड़ पर मिल जायेगा 
गर होगी सच्ची प्रीत 
हार से मत घबरा प्यारे
हार के आगे ही है जीत 

मिलना है तो मिल जायेगा 
यही है दुनिया की रीत 
मिल जायेगा मिल जायेगा
सबको मन का मीत 

मुर्गी भी माँ है !

सड़क..
कसाई की दुकान
पिंजरे में मुर्गे
चाकू से डरते!
ग्राहक की आमद,
मुर्ग़ों की शामत..
जान सबको प्यारी है,
कोने में छुपने की जंग
बाक़ायदा ज़ारी है!
आवाज़ आई
"एक किलो"
दुबक जाओ कोने में
बच लो!
मोटा वाला छुप रहा है,
कसाई का हाथ
ढूँढ रहा है
ये...
पकड़ाया
वो फड़फ़ड़ाया,
चिल्लाया,
पंखों को पकड़ा
टेंटुआ दबाया
आँसू भी नही निकले
तराज़ू के पलड़े
हिलने लगे!
ख़ैर..
उसे तोला,
कम्बख़्त डेढ़ किलो का निकला!
मोटे की जान में जान आई
पर पतले पर,
काल की छाया छाई|


यह तो सब ठीक
वहाँ दूर एक मुर्गी,
ख़ून के आँसू रोती है..
माँ है,
अपने बच्चों को
रोज़ कटने जाते देखती है!
देवकी की छह संतानें मरीं
तो भगवान ख़ुद जन्मे,
पर यह जानवर है
बेज़ुबान..
इसकी पीड़ा कौन सुने?
मुझे चोट लगे
तो माँ बेचैन जाती है
और इसके बच्चों से भरी गाड़ी
रोज़ शहर जाती है!
बेचारी..
अंडे देती है,
सेती है,
दुलारती है
तब चूज़े निकलते है
बेरहम दुनिया खा जाती है!
आह!
कैसी विडंबना..
वो बोल नही सकती
वरना ज़रूर बोलती
महज़ स्वाद के लिए
मेरे बच्चों को मत मारो,
तुम भी किसी के बेटे होगे
मेरी ममता को,
यूँ छुरियों से ना काटो..
अरे इंसानों !
मुझ पर रहम करो
छोड़ दो माँसाहार
बस शाकाहार करो..



shri Panch kalyank Pratishta mahotsav


सिद्धक्षेत्र सोनागिर जी में दिनांक २४ फरवरी से १००८ श्री शांतिनाथ भगवान के पंच्कल्यांक एवं गजरथ महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है ....जिसमे आप सभी सपरिवार, इष्ट मित्रो के साथ सादर आमंत्रित है ....

हाय ये किस्मत!


कल रात मेरा सोना 
हराम हो गया...
पानी में वो भीगी, 
मुझको  जुकाम हो गया...

मेरे प्यार का कैसे  
इजहार हो गया...
मच्छर ने उसे काटा 
और मै बीमार हो गया...

पढ़ते- पढ़ते वो 
इस जिंदगी से हताश हो गई...
पढ़ाई हमने की 
और पास वो हो गई...

हाय ये किस्मत, 
ये कैसा खेल हो गया...
मस्ती उसने मारी 
और फैल मैं हो गया..

हिन्दुस्तानी हो, हिन्दुस्तानी बनो!


कई दशाब्दियों से रेलगाडी यात्रा मेरे लिये जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है. इन यात्राओं के दौरान कई खट्टेमीठे अनुभव हुए हैं, जिनमें मीठे अनुभव बहुत अधिक हैं. इसके साथ साथ कई विचित्र बाते देखने मिलती हैं जिनको देखकर अफसोस होता है कि लोग किस तरह से विरोधाभासों को पहचान नहीं पाते हैं.
उदाहरण के लिये निम्न प्रस्ताव को ले लीजिये:- 
बी इंडियन, बाई इंडियन. यह प्रस्ताव अंग्रेजी में या हिन्दी में अकसर दिख जाता है. अब सवाल यह है कि इसे सीधे सीधे भारतीय अनुवाद में क्यों नहीं दे दिया जाता है. 
“हिन्दुस्तानी हो, हिन्दुस्तानी बनो” (जो इस अंग्रेजी वाक्य का भावार्थ है) हिन्दी में कहने में हमें तकलीफ क्यों होती है. हिन्दुस्तानियों को हिन्दुस्तानी बनाने के लिये एक विलायती भाषा की जरूरत क्यों पडती हैं?
दूसरी ओर, जब “बी इंडियन, बाई इंडियन” लिखा दिखता है तो कोफ्त होती है कि यह किसके लिये लिखा गया है? अंग्रेजीदां लोग तो इसे पढने से रहे क्योंकि उनकी नजर में तो हिन्दी केवल नौकरों गुलामों की भाषा है. आम हिन्दी भाषी जब इसे पढता है तो उसके लिये इसका भावार्थ समझना आसान नहीं है. उसे लगता है कि यहां खरीद फरोख्त की बात (Buy) हो रही है.
जरा अपने आसापास नजर डालें. कितने विरोधाभास हैं इस तरह के
कम से कम दोचार को सही करने की कोशिश करें!

दिल का दर्द




अपने ज़ख्म ज़माने  को दिखता रहा हू मैं
सीने में एक दर्द को छिपाता रहा हू मैं
ज़ालिम ने दिल के बदले दर्द क्यों दिया
छिप छिप के आँसू बहाता रहा हू मैं 

आयेगी वो कभी लौटकर यही आस लिए 
अपने  दिल  को हरपल समझाता रहा हू मैं 
मालूम था मुझे  कि  संगदिल है वो तो 
फिर भी जाने क्यू उसे ही चाहता रहा हू मैं 

गर्व से कहो हम हिंदी है




सबसे सरल जानी पहचानी 
राष्ट्र भाषा वो हिंदी है 
लोकप्रिय हो रही विश्व में 
भारत की गरिमा हिंदी है 


हाहाकार क्यों हिंदी को लेकर 
धर्मो का मंथन हिंदी है 
पैदा हुई संस्कृत की कोख से
भाषा की बड़ी बहन हिंदी है


दुनिया मै डंका बजा दिया
अंग्रेजी का दावा झुठला दिया
अस्तित्व को चुनौती दे करके 
अपना साम्राज्य फैला ही लिया


भाषा तो कई मौजूद यहाँ 
अपनी पहचान तो हिंदी है
भाषा के भेदभाव छोड़कर
गर्व से कहो हम हिंदी है 

इक लड़की को हो गया है प्यार !


पहले
देख कर छुपाती थी वो 
अबके छुप - छुप कर देखती है 
वोह दौर था बचपन का 
  यह दौर है जवानी का 

मन उसका सुमन तन सुकोमल चहेरा माहताब 
कभी अपने हाथ से अपनी ऊंगलियों को छूती है 
तो कभी आईने में देख खुद को
खुद से ही शर्माती है 
अब तो शाम का रंग बिरंगी आसमान भी 
उसे लुभाने लगा है 

रात को आसमान के तारे गिनती है वो 
जिसे तोड़ लाने की बात कही है 
किसी ने देख चाँद को
चौकती है वोह मुस्कराती है और छुपा लेती है 
अपने आपको रात के आगोश में वो
रात को नींद में तकिये को आगोश में ले लेती है
और फिर अचानक आधी रात को 
नींद खुलते ही देख तकिए को मूस्कुराती है 
फिर इक सुखद नींद में सो जाती है 
इक लड़की को हो गया है प्यार !!!!

मेरी प्रेम कहानी


आज वही बस स्टॉप था, जिसके इस पार हम और उस पार वो खड़ी थी
हम भी नज़रें झुकाए खड़े थे और वो भी कुछ शरमाई लग रही थी
मेरी सोच एक उलझान में पड़ी थी,बोल ही दूंगा दिल की हर बात आज
ये हिम्मत काफी देर से दिल के साथ झगड़ रही थी

इतने में देखा एक आंटी जी ,हमारे सामने खड़ी थी
पूछने लगी बेटा पहचाना मुझे, मेरी मुंडी के इशारे में मुड़ी थी
बोली तेरी चचेरी मौसी हु मैं,ये कहते ही उनके चेहरे
की मुस्कान इंच और बड़ी थी

पर हमारा दिल तो उनक पीछे कड़ी उस लड़की के लिए धड़क रहा था
मौसी की हर बात इस धड़कन के शोर में गुम हो रही थी
इतने में मौसी जी बोली उस लड़की से, पीछे मत खड़े हो
आगे आओ अपने चचेरे भाई से मिलो

मौसी जी की इस बात को सुनकर ४४० वोल्ट का झटका लगा
प्यार का महल जो कुछ देर पहले बना था वो टूट गया
ऐसा लगा दो प्यार के पंछी मिलने से पहले बिछड़ गए
दिल रोया पर होठों पर मुस्कान खिल रही थी,
इतने में बस आई और वो दोनों चले गए

तभी हमारी नज़र उसी जगह पे पड़ी जहा कुछ
देर पहले हमारी पहली मोहब्बत खड़ी थी
अभी वहा एक और सुंदरी खड़ी थी
दिल में प्यार की नई कली खिल रही थी
दिल की ख़ुशी मुस्कान बनकर चेहरे पे खिल रही थी,
एक नई प्रेम कहानी करवट ले रही थी

आज वही बस स्टॉप था, जिसके इस पार हम और
उस पार वो खड़ी थी


-रिमी शर्मा

एक मजेदार कहानी


मेरे 4 दोस्त है 
उनK नाम Bरेन्द्र, G तेन्द्र, Kलाश और राJन्द्र है। 
एक दिन हम Uरोप गए। 
वहां G तेन्द्र का घर था 
उसK पिताG और भाEसाहब Aटा गए थे 
वहां हमने अ4 से रोT खाE फिर बाज़ार गए। 
बाजार से Dनर K लिA मैंने Kला, Bरेन्द्र ने Iस्क्रीम, 
Kलाश ने पPता और Gतेन्द्र ने Oरेंज खरीदे। 
घर आते समय रास्ते में हमे Aक मंदिर मिला 
वहां बोर्ड पर लिखा था - G, O और G ने 2 

एक नाज़ुक सी लड़की


एक
नाज़ुक सी लड़की 
नर्म सा एक दिल था 
शर्म उसका सिंगार था 
कर्म मैं ही जीवन था 
धर्म मैं मिलता सकून था 

एक नाज़ुक सी लड़की 
आँखों मैं सपने थे 
आशाओं के गुल्दास्ते थे 
सब को खुश रखने के अरमान थे 
आस्मां को चुहने के इज़हार थे 
 
एक नाज़ुक सी लड़की 
सच का रास्ता ही अपना था 
हर इंसान रब का ही तो रूप था 
मुश्किलों से डरना नही था 
काली घटा मैं भी दीखता सूरज था 

एक नाज़ुक सी लड़की 
जालिमों को नही दिखा उसका प्यार 
बेदर्दी से करदिया वजूद को पार 
दिल मैं थी बोहोत सारी झंकार 
लेकिन ज़िन्दगी ने दिया उसे मार 
  
एक नाज़ुक सी लड़की 
अब कहाँ है उसकी मंजिल 
वो तो होगा ही बे महफ़िल
बस एक ही बात बोले ज़ख़्मी दिल 
ओह मेरे रब--नूर मुझसे मिल.......

चुटकियाँ


********************************
पाकिस्तानी क्रिकेट को करारा झटका
सात खिलाडिय़ों को बाहर पटका
देकर इनको बड़ी बुरी सजा
पीसीबी ने शर्मनाक प्रदर्शन गटका
********************************
सचिन को मिले भारत रत्न
हर कोई कर रहा है प्रयत्न
संसद में भी अब उठी है मांग
नेताओं को मिला काम का प्रश्न
********************************
आईपीएल की गिरी कमाई
आयोजकों ने जुगाड़ भिड़ाई
गंभीर,सचिन,गांगुली पे लगा जुर्माना
कर ली एक झटके मे कमाई
********************************
भारतीय लोकतंत्र
तेरी किस्मत
कितनी खोटी है
पहले होती थी राजनीति
वोटों पर
अब नोटों पर होती है
********************************
सुमित ‘सुजान’, ग्वालियर

नव संवत्सर ...


नव संवत्सर के शुभ अवसर पर शत शत बधाइयाँ.
प्रिय साथियों ..........  
 आज का दिन हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है,  आज ही के दिन हमारा नव संवत्सर प्रारम्भ होता है,  प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक,  सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शकों का दमन,  आज के दिन स्वामी दयानंद स्वामीजी ने आर्य समाज की स्थापना की थी !!  नवरात्री स्थापना,  महर्षि गौतम का जन्मदिवस,  संत झुलेलाल का प्रकाश पर्व,  चेती चाँद का त्यौहार,  गुडी पडवा त्यौहार (महराष्ट्र)  उगादी त्यौहार (दक्षिण भारत)  आपको विक्रम संवत  एवं समस्त भारतीय त्योहारों के शुभ अवसर पर शत शत बधाइयाँ.  आदर सहित  
-निर्भय जैन

मैं और मिसेज खन्ना




मैं और मिसेज खन्ना 
अक्सर चाय पीते है रोजाना शाम को 
उस वक़्त भूल जाते है हर किसी काम को

मौसम बदला वक़्त गुजरा
पर नहीं बदला हमारा चलन 
युही चुसकिया लेते रहे हम 
  एक दिन सहसा मेरा बेटा पास आया 
चाय के वक़्त ही उसने हमें डराया
वह बोला डेडी 
कल चाय के वक़्त मेरी शादी है 
जाना
मै घबराया और पूछा
बता रहा है या बुला रहा है 
बेटा ये कैसा गजब ढाता है 
तू भूल गया मै तेरा पिता 
और ये तेरी माता है 

भला अपनी शादी मै
कोई माँ बाप को ऐसे बुलाता है
तभी मन मै ख्याल आया
जमाना बदल रहा है
 ये तो बुला भी रहा है 
अब तो शायद .......

आज़ादी का गीत


हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल। 
चाँदी सोने हीरे मोती से सजती गुड़ियाँ। 
इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियाँ 
इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले 
हमने तोड़ अभी फेंकी हैं बेड़ी हथकड़ियाँ 
परंपरा गत पुरखों की हमने जाग्रत की फिर से 
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम किरीट उज्जवल 
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल। 
चाँदी सोने हीरे मोती से सजवा छाते 
जो अपने सिर धरवाते थे वे अब शरमाते 
फूलकली बरसाने वाली टूट गई दुनिया 
वज्रों के वाहन अंबर में निर्भय घहराते 
  इंद्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से 
ओटे छत्र हमारा निर्मित करते 
साठ कोटि करतल हम ऐसे 
आज़ाद हमारा झंडा है बादल। 
 - हरिवंश राय बच्चन

गद्दी के कद्दू होशियार


टी वी दर्शन आपके स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है

जर्नल आफ अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार गद्दी पर बैठ प्रतिदिन प्रत्येक घन्टे टी वी देखने वाले को हृदय की रक्त वाहिनियो के रोगो से मृत्यु का खतरा बढता जाता है।
आस्ट्रेलियाई अनुसंधानियो ने ८८०० वयस्को के जीवन शैली का अवलोकन किया और पाया कि टी वी के सामने बिताए गए प्रत्येक घन्टे ने उनके सभी बीमारियो से पैदा मृत्यु के खतरे को ११ % बढाया, और् कैन्सर से मृत्यु के खतरे को ९ %, तथा हृदय की रक्त वाहिनियो के रोगो से मृत्यु के खतरे को १८ % बढाया। अर्थात टीवी दर्शन न केवल हृदय की रक्त वाहिनियो के रोगो को बढाता है वरन अन्य सभी रोगो के खतरे को भी बढाता है!!
प्रतिदिन दो घन्टे से कम देखने वालो की तुलना में ४ घन्टे देखने वालो को सभी कारणो से मृत्युका खतरा ४६ % अधिक था, और हृदय की रक्त वाहिनियो के रोगो से खतरा ८० % अधिक था!! और् ऐसा भी पाया कि उपरोक्त खतरे का बढना हृदय की रक्त वाहिनियो के रोगो के अन्य कारणो जैसे सिगरेट पीने, उच्च रक्त चाप, जंक भोजन, तोद और व्यायाम आदि से प्रभावित नहीं था, अर्थात यह दोनो कार्य एक दूसरे से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं।
उपरोक्त अवलोकन यह भी इंगित करते हैं कि कोई भी लम्बे बैठे- बैठे किए गए दैनिक कार्य, जैसे कम्प्यूटर पर कार्य, स्वास्थ्य पर खतरा बढा सकते हैं। विक्टोरिया (आस्ट्रेलिया) में एक हृदय एवं मधुमेह संस्थान है, उसमें उपापचय (मेटाबोलिज़म) तथा मोटापा विभाग है, जिसके शारीरिक गतिविधि अनुभाग के प्रोफ़ैसर एवं अध्यक्ष तथा डा (पीएचडी) डेविड डन्स्टन का कहना है कि मानव शरीर का विकास लम्बे समय तक बैठने के लिये नहीं वरन गतिशील रहने के लिये हुआ है।
उस लेख के प्रथम लेखक डन्स्टन ने कहा कि प्रौद्योगिकी, सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तनो के फ़लस्वरूप अब मनुष्य को अपनी पेशियां का उपयोग करने का अवसर कम मिलता है।अधिकांश मनुष्य तो एक कुर्सी से दूसरी कुर्सी, एक कार से दूसरी कार – बल्कि कार की सीट से टीवी के सामने की कुर्सी तक ही हिलते डोलते है।

उन्होने कहा कि, “यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ्य है, और उसका वजन ठीक है, वह भी यदि लम्बे समय तक बैठे ठाले कार्य करता है तब उसके शरीर की रक्त शर्करा तथा वसा पर बुरा असर पडता है!!

इस शोध में ग्लूकोज़-सह्यता की मौखिक तथा रक्त के नमूनो की रासायनिक जांच की गई है।उऩ्होने कहा कियद्यपि यह शोध आस्ट्रेलियाई वयक्तियो पर की गई है, तथापि यह सभी मनुष्यो पर लगती है।आस्ट्रेलियाई औसतन तीन घन्टे प्रतिदिन टीवी देखता है और अमरीकी आठ घन्टे; अमेरिका में अधिक वजन तथा मोटापे से पीडित लोगो का अनुपात दो तिहाई है।
उनका निष्कर्ष सीधा साधा है - “ अधिक बैठना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है"।

-विश्व् मॊहन तिवारी

साभार - कल्किओंन.कॉम


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